Tuesday, December 23, 2025
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एक है तो सेफ है का मतलब है कि अडानी मोदी तक सेफ हैं: राहुल

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मुंबई: राहुल ने भाजपा के नारे एक है तो साफ है का मजाक उड़ाया और कहा कि यह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके उद्योगपति मित्रों पर लागू होता है। उन्होंने कहा कि जब तक मोदी हैं तब तक अडानी सुरक्षित हैं. महाराष्ट्र के बाकी लोग असुरक्षित हैं.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए आज शाम प्रचार खत्म होने से पहले मुंबई में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ऐलान किया कि अगर हम सत्ता में आए तो 50 फीसदी आरक्षण की ऊपरी सीमा हटा देंगे और महाराष्ट्र में जाति जनगणना कराएंगे.

बीजेपी के एक है तो सेफ है नारे का मजाक उड़ाते हुए राहुल गांधी ने कहा कि जब तक मोदी और उद्योगपति एकजुट हैं तब तक वह खुद सुरक्षित हैं. सेफ को अंग्रेजी में सेफ कहते हैं राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में नानकड़ी सेफ खोली से प्रधानमंत्री और गौतम अडानी का पोस्टर निकाला और इस नारे का मजाक उड़ाया. उन्होंने कहा कि भाजपा एक है तो सुरक्षित है का नारा देती है लेकिन कौन किसके साथ सुरक्षित है, कौन किसके साथ सुरक्षित है, यह छिपाती है। देखिए, हम घोषणा करते हैं कि जब तक बीजेपी है, जब तक मोदी है, जब तक अमित शाह है, अडानी सुरक्षित हैं। इस नारे का मतलब है कि अगर मोदी उनके साथ हैं तो उनके उद्योगपति दोस्त सुरक्षित हैं. लेकिन, तब तक महाराष्ट्र की जनता असुरक्षित है.

मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए लोकसभा के विपक्षी नेता ने कहा कि फॉक्सकॉन और एयरबस समेत 7 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट महाराष्ट्र से गुजरात पहुंचा दिए गए हैं. महाराष्ट्र के युवाओं की नौकरियां जा रही हैं. मुंबई की बात करें तो धारावी पुनर्विकास परियोजना को गौतम अडानी के हाथों में देने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी को काम पर लगा दिया गया था। इस प्रकार सत्तारूढ़ सरकार राज्य के लोगों के हितों को खतरे में डालकर उद्योगपतियों के हितों की रक्षा करती है। इसीलिए हमारे लिए विधानसभा चुनाव विचारधारा की लड़ाई है, हम मुट्ठी भर अरबपतियों के खिलाफ गरीबों की रक्षा के लिए मैदान में उतरे हैं। उन्होंने कहा कि महाविकास का लक्ष्य महाराष्ट्र में कांग्रेस समेत अघाड़ी के घटक दलों के हितों की रक्षा करना है.

राहुल गांधी छोटा तोता: बीजेपी

राहुल गांधी ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक है तो सेफ है नारे का मजाक उड़ाया तो भारतीय जनता पार्टी ने पलटवार करते हुए उन्हें तोता करार दिया. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि राहुल गांधी को छोटा पोपट नाम शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे ने दिया था. बाला साहेब कहते थे ‘छोटा पापा ने किया है कांग्रेस को चौपट।’ पात्रा ने कहा कि गांधी-नेहरू परिवार ने वर्षों तक देश का खजाना लूटा है, कई घोटाले किये हैं, उन्होंने इस खजाने को बर्बाद कर दिया है.

Gandeya Assembly Seat: गांडेय सीट पर कल्पना सोरेन के टक्कर में उतरी मुनिया देवी, समझिए समीकरण

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झारखंड विधानसभा चुनाव की 81 सीटों पर 2 चरणों में मतदान होना है। जिनमें से पहला फेज 13 नवंबर और दूसरा फेज 20 नवंबर को होगा। वहीं 23 नवंबर को वोटों की गिनती होगी। राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से एक सीट गांडेय विधानसभा सीट है। इस बार गांडेय विधानसभा सीट पर दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है। यह राज्य की हाई प्रोफाइल सीट है। जिस पर 20 नवंबर 2024 को मतदान होना है।
जेएमएम ने कल्पना सोरेन को बनाया प्रत्याशी
झारखंड की गांडेय विधानसभा सीट से हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनावी मैदान में हैं। वह झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। इस साल हुए उपचुनाव में भी कल्पना सोरेन ने जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा के दिलीप वर्मा को शिकस्त दी थी। कल्पना सोरेना झामुमो की स्टार प्रचारक मानी जाती हैं। वहीं कल्पना सोरेन को टक्कर देने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मुनिया देवी पर भरोसा जताया है। झारखंड में भाजपा और आजसू साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।

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झामुमो का गढ़ है गांडेय सीट
गांडेय विधानसभा की सीट को झारखंड मुक्ति मोर्चा का गढ़ भी माना जाता है। साल 1977 में यह विधानसभा सीट अस्तित्व में आई थी। तब से लेकर अब तक झामुमो इस सीट पर 6 बार जीत हासिल कर चुकी है। जबकि कांग्रेस पार्टी ने दो बार जीत हासिल की है। साल 1977 में जनता पार्टी के लक्ष्मण स्वर्णकार ने इस सीट से जीत हासिल की थी। फिर साल 1985 में पहली बार जेएमएम ने पहली बार इस सीट पर झंडा गाड़ा था। जेएमएम के सालखन सोरेन इस सीट पर 4 बार विधायक रह चुके हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव
बता दें कि साल 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान गांडेय सीट से झामुमो के सरफराज अहमद ने जीत हासिल की थी। इस चुनाव में सरफराज को कुल 64,795 वोट मिले थे। तो वहीं भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार जय प्रकाश वर्मा 56,116 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे।

घूस नहीं तो मकान नहीं! क्या है JMM के अबुआ योजना की सच्चाई? Himanta Biswa Sarma ने हेमंत सोरेन को घेरा

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झारखंड के दूसरे चरण के चुनाव के लिए प्रचार खत्म हो गया है। 20 नवंबर को राज्य में मतदान होगा और 23 नवंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) आदिवासियों के अधिकारों और कल्याण के मुद्दे के साथ चुनावी मैदान में है। लेकिन उनपर सवाल उठ रहे हैं। खुद को आदिवासियों की सशक्त आवाज और उनके अधिकारों की रक्षा करने वाली पार्टी क्या अपने कार्यकाल के दौरान उनके जीवन में कोई ठोस बदलाव ला पाई है?
हेमंत सोरेन की सरकार ने आदिवासी समाज के लिए कई योजनाएं और वादे किए थे, लेकिन क्या उन्होंने इन्हें धरातल पर उतारा? अबुआ आवास योजना, भूमि अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मोर्चे पर आदिवासी समाज को क्या मिल रहा है?
भाजपा ने अबुआ आवास योजना को लेकर हेमंत सोरेन सरकार को घेरा है। झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने इसको लेकर एक बयान दिया है। उन्होंने कहा, ”झारखंड सरकार की ‘अबुआ आवास योजना’ ‘बाबू आवास योजना’ बन गई है। जब तक घूस नहीं देंगे, तब तक मकान नहीं मिलेगा।”
 

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अबुआ आवास योजना का उद्देश्य और जमीनी हकीकत
अबुआ आवास योजना की शुरुआत 15 अगस्त 2023 को हुई थी। तब हेमंत सोरेन ने वादा किया था कि हम 25 लाख से अधिक झारखंडियों को अबुआ आवास के माध्यम से अपना पक्का छत देंगे। इस योजना के तहत झारखंड के गरीब वर्ग को 2 लाख रुपये में 3 कमरे वाला पक्का मकान देने का वादा किया गया है।
इस योजना का उद्देश्य आदिवासी समुदाय को उनका हक देना और उन्हें सुरक्षित, सस्ते और अच्छे घर मुहैया कराना था। लेकिन जब इस योजना की हकीकत पर नजर डालते हैं, तो यह साफ हो जाता है कि हेमंत सोरेन सरकार के तहत आदिवासी समाज को अपने हक के लिए न केवल संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि कई बार उन्हें इस योजना के तहत लाभ पाने के लिए घूस देने की मजबूरी भी उठानी पड़ रही है।
सिर्फ अबुआ आवास योजना के लिए ही नहीं बल्कि आपको सोशल मीडिया पर कई ऐसे आदिवासियों के वीडियो मिल जाएंगे जिसमें दावा किया जा रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली पीएम आवास योजना के लिए भी उन्हें रिश्व देनी पड़ रही है।
राज्य सरकार के आंकड़े दावा करते हैं कि अबुआ आवास योजना के तहत हजारों आदिवासी परिवारों को घर दिया गया है। झारखंड की अबुआ आवास योजना के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में दो लाख आवास निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है। जून 2024 में अबुआ आवास योजना की समीक्षा के दौरान ये जानकारी दी गई थी कि अबुआ आवास योजना के तहत पहले चरण में स्वीकृत किए गए 2 लाख आवास की पहली किस्त की राशि जारी हो गई है। लेकिन ये 2 लाख घर कब तक बनेंगे इसकी जानकारी अब तक सामने नहीं आई है।
अबुआ आवास योजना की अधिकारिक वेबसाइट  पर भी इसके तहत कितने घर बनाए गए हैं, इसकी जानकारी नहीं दी गई है। वहां लिखा है कि राज्य सरकार वर्ष 2026 तक सभी बेघर और जीर्ण-शीर्ण घरों में रहने वाले ग्रामीण परिवारों को बुनियादी सुविधाओं सहित पक्का आवास उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। वर्ष 2016 से प्रधानमंत्री आवास योजना – ग्रामीण (PMAY-G) अंतर्गत लगभग 16 लाख घर उपलब्ध कराए गए हैं एवं बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर आवास योजना अंतर्गत लगभग 50 हजार आवास बनाए गए हैं।
 

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अबुआ आवास योजना: भ्रष्टाचार और घोटालों की संभावना
हेमंत सोरेन सरकार के तहत झारखंड में आदिवासी कल्याण के नाम पर कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन इन योजनाओं का वास्तविक लाभ उन्हें पहुंचाने में जो सबसे बड़ी रुकावट आई है, वह है भ्रष्टाचार। अबुआ आवास योजना के मामले में भी आदिवासी समुदाय को घूस की दरारों में धकेल दिया गया है। स्थानीय अधिकारी, जो आदिवासियों के लिए घर देने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, वे खुद को रिश्वत के बदले काम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां आदिवासी परिवारों ने खुलासा किया कि योजना के तहत आवास पाने के लिए उन्हें एक विशेष राशि अधिकारियों को देनी पड़ी है। इसके बिना आवास निर्माण के लिए न तो फंड जारी होते हैं और न ही कोई प्रगति होती है।
अबुआ आवास योजना की जमीन पर वास्तविकता बिल्कुल अलग है। वनइंडिया हिंदी के ग्राउंड रिपोर्ट में नाम न छापने की शर्त पर कई आदिवासी परिवारों का कहना है कि उन्हें योजना का लाभ उठाने के लिए न केवल लंबी नौकरशाही प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ रहा है, बल्कि कई स्थानों पर यह भी आरोप है कि आवास की स्वीकृति के लिए उन्हें रिश्वत देनी पड़ती है। यह रिश्वत सरकारी अधिकारियों, ठेकेदारों और पंचायत नेताओं को दी जाती है ताकि वे आवास निर्माण के लिए फंड स्वीकृत करें और काम को समय पर पूरा करने की व्यवस्था करें।
अबुआ आवास योजना के तहत कितने घर बने, इस सवाल का उत्तर फिलहाल स्पष्ट नहीं है। राज्य सरकार ने शुरू में दावा किया था कि योजना के तहत लाखों आदिवासी परिवारों को घर मिलेंगे, लेकिन अब तक के आंकड़े बताते हैं कि इस योजना का वास्तविक प्रभाव बहुत ही कम रहा है। जमीन पर स्थिति कुछ और ही दिखती है। अधिकांश आदिवासी इलाकों में लोग यह शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें योजना का कोई वास्तविक लाभ नहीं मिला।
हेमंत सोरेन सरकार के तहत कई बार यह आरोप लगाए गए हैं कि राज्य में आवास योजना के तहत भारी भ्रष्टाचार हो रहा है। ठेकेदारों और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से योजना के तहत आवंटित फंड का गलत उपयोग किया जा रहा है। कई इलाकों में निर्माण कार्य आधे-अधूरे हैं और बिना गुणवत्ता की निगरानी के हुए हैं। इससे यह सवाल उठता है कि आदिवासी समुदाय के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता कितनी सच्ची और ईमानदार है। बजट का सही तरीके से उपयोग न होने के कारण हजारों परिवारों को फायदा तो दूर, नुकसान हुआ है।
अधिकारियों का भ्रष्टाचार न केवल योजना के लक्ष्य को विफल कर रहा है बल्कि यह आदिवासियों को और भी कठिनाई में डाल रहा है। कई स्थानों पर तो यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि सरकार ने योजना के तहत आवंटित राशि को न केवल गलत तरीके से बांटा है, बल्कि कई ठेकेदारों और अधिकारियों ने योजना का लाभ उठाकर खुद को और अपने परिवारों को फायदा पहुंचाया है। कागजी और ऑनलाइन प्रक्रिया की जानकारी ना होने की वजह से भी आदिवासी समुदाय भ्रष्टाचार का शिकार हो रहे हैं।
अधिकारियों का भ्रष्टाचार न केवल योजना के लक्ष्य को विफल कर रहा है बल्कि यह आदिवासियों को और भी कठिनाई में डाल रहा है। कई स्थानों पर तो यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि सरकार ने योजना के तहत आवंटित राशि को न केवल गलत तरीके से बांटा है, बल्कि कई ठेकेदारों और अधिकारियों ने योजना का लाभ उठाकर खुद को और अपने परिवारों को फायदा पहुंचाया है। कागजी और ऑनलाइन प्रक्रिया की जानकारी ना होने की वजह से भी आदिवासी समुदाय भ्रष्टाचार का शिकार हो रहे हैं।
 

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अधिकारों का उल्लंघन और प्रशासनिक लापरवाही
अबुआ आवास योजना के तहत आदिवासी समुदाय को जो अधिकार मिल रहे थे, वह भी पूरी तरह से प्रशासनिक लापरवाही का शिकार हो रहे हैं। कई क्षेत्रों में यह देखा गया कि पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता का भारी अभाव है।
ज्यादातर आदिवासी परिवारों का आरोप है कि उन्हें योजना के बारे में कोई सही जानकारी नहीं दी जाती और उन्हें लंबे समय तक कागजी कार्रवाई और दस्तावेजी मामलों में उलझाकर रखा जाता है। इसके बाद जब वे किसी तरह से आवास की स्वीकृति प्राप्त करते हैं, तो उन्हें काम करने के लिए ठेकेदारों या सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। यह न केवल आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि इसे सरकार की नाकामी और लापरवाही के तौर पर भी देखा जा सकता है।
क्या हेमंत सोरेन सरकार आदिवासियों के साथ धोखा कर रही है?
हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासी समुदाय के लिए कई घोषणाएं की थीं, लेकिन इन घोषणाओं को लागू करने में सरकार कहीं न कहीं नाकाम रही है। आदिवासी समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखने का वादा करने वाली सरकार, आज उन्हीं अधिकारों को पाने के लिए आदिवासियों को घूस देने की स्थिति में ला खड़ा कर रही है। यह न केवल एक गंभीर प्रशासनिक विफलता है, बल्कि यह आदिवासी समाज के साथ धोखा करने के बराबर है।
झारखंड राज्य में हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ आदिवासी समुदाय के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है। उनकी कई मांगें पूरी नहीं हो पा रही हैं और योजना के नाम पर उन्हें कोई ठोस लाभ नहीं मिल रहा है। वे यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान करने के बजाय, सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। इस असंतोष ने राज्य के राजनीतिक माहौल को और भी तंग कर दिया है और कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन बढ़े हैं।
झारखंड राज्य में हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ आदिवासी समुदाय के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है। उनकी कई मांगें पूरी नहीं हो पा रही हैं और योजना के नाम पर उन्हें कोई ठोस लाभ नहीं मिल रहा है। वे यह महसूस कर रहे हैं कि उनकी समस्याओं का समाधान करने के बजाय, सरकार उनके अधिकारों का उल्लंघन कर रही है। इस असंतोष ने राज्य के राजनीतिक माहौल को और भी तंग कर दिया है और कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन और आंदोलन बढ़े हैं।

Amalner Assembly Seat: अलमनेर सीट पर एक समय BJP का रहा है दबदबा, जानिए इस बार किस करवट बैठेगा ऊंट

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है। ऐसे में राज्य के तमाम सियासी दलों ने जोरों-शोरो से प्रचार करना शुरूकर दिया है। राज्य में कुल 288 विधानसभा सीटे हैं। इन सभी सीटों के लिए 20 नवंबर 2024 को मतदान होने हैं। जबकि चुनावी परिणामों की घोषणा 23 नवंबर 2024 को जारी की जाएगी। राज्य की इन्हीं 288 सीटों में से एक सीट अमलनेर की विधानसभा सीट भी है। यह सीट जलगांव जिले में पड़ती है। एक जमाने में इस सीट पर भाजपा ने हैट्रिक लगाई थी। लेकिन फिर दो चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने झंडा गाढ़ा था। फिलहाल इस सीट पर NCP के अनिल भाईदास पाटिल विधायक हैं।
पाटिलों का दबदबा
महाराष्ट्र की जलगांव लोकसभा सीट के तहत आने वाली अमलनेर विधानसभा सीट 6 सीटों में से एक है। अमलनेर सीट पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वोटरों का दबदबा है। यानी की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वोटर ही उम्मीदवारों के जीत-हार को तय करते हैं। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। लेकिन अमलनेर सीट पर सबसे ज्यादा पाटिलों की संख्या है। ऐसे में NCP ने इस बार भी अनिल भाईदास पाटिल पर भरोसा जताया है।

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निर्दलीय प्रत्याशियों को भी मिल चुकी है जीत
बता दें कि साल 1951 से लेकर 1972 तक हुए विधानसभा चुनावों में अमलनेर सीट से कांग्रेस के उम्मीदवारों की जीत मिली है। तो वहीं साल 1978 और 1980 में इस सीट पर जनता पार्टी के प्रत्याशी ने दांव मारा था। तो इसके बाद साल 1985 में विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर अपना कब्जा जमाए रखा। लेकिन 1990 में यह सीट एक बार फिर जनता दल के खाते में चली गई। इसके बाद साल 1995, 1999 और 2004 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने कमल खिलाया था। तो वहीं साल 2009 और 2014 के चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल करते हुए सभी को चौंका दिया था। हालांकि 2019 के चुनाव में NCP के अनिल भाईदास पाटिल ने जीत हासिल की।

Kopri Pachpakkhadi Assembly Seat: कोपरी पाचपाखाडी सीट पर फिर जीत हासिल करेंगे एकनाथ शिंदे या केदार दिघे बदलेंगे समीकरण

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव इस बार काफी दिलचस्प है। क्योंकि राज्य की दो राजनैतिक पार्टियां शिवसेना और एनसीपी इस बार अपने करीबियों के गुटबंदी से परास्त होकर दो भागों में बंट गई। शिवसेना की कमान राज्य के सीएम एकनाथ शिंदे के हाथों में आ गई, तो वहीं एनसीपी की कमान अजित पवार के हाथों में। ऐसे में मजबूरन उद्धव ठाकरे और शरद पवार को नई पार्टी बनानी पड़ी और जिन्हें अब शिवसेना UBT और एनसीपी SP के नाम से जानते हैं। इस विधानसभा चुनाव में महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों के लिए यह चुनावी लड़ाई प्रतिष्ठा का सवाल और साख बचाने की लड़ाई बन गई है। महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों में से एक सीट कोपरी पाचपाखाडी सीट है, यह राज्य की हॉट सीट में आती है। 
सीएम शिंदे का दबदबा
राज्य की 288 विधानसभा सीटों में एक सीट कोपरी पाचपाखाडी सीट है। यह सीट महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की पारंपरिक सीट बन चुकी है। बता दें कि इस सीट से 5वीं बार जीत हासिल करने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं। एकनाथ शिंदे के खिलाफ शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट ने केदार दिघे को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। उद्धव ठाकरे गुट के केदार दिघे शिवसेना के दिग्गज नेता आनंद दिघे के भतीजे माने जाते हैं।

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चुनावी इतिहास
साल 1978 और 1980 के चुनावी इतिहास की बात करें, तो कोपरी पाचपाखाडी सीट INC (I) के हिस्से में आई थी। इसके बाद साल 1985 से लेकर 1999 तक इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी। फिर साल 1995 में इस सीट पर कांग्रेस ने झंडा गाड़ा था। वहीं साल 2009 से लेकर 2019 तक इस सीट पर शिवसेना का दबदबा कायम रहा है। 2004 में एकनाथ शिंदे पहली बार थाने सीट से विधायक बने थे। जब साल 2009 में कोपरी पाचपाखाडी सीट बनी, तब से एकनाथ शिंदे यहां पर अपना दबदबा बनाए हुए हैं। ऐसे में इस बार यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि क्या इस बार भी एकनाथ शिंदे यहां पर अपना जादू बरकरार रख पाएंगे या नहीं।

Gangster Lawrence Bishnoi के भाई अनमोल पर अमेरिका ने ले लिया बड़ा एक्शन, सलमान के घर फायरिंग केस से जुड़े हैं तार

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जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के भगोड़े भाई अनमोल बिश्नोई को सोमवार को संयुक्त राज्य अमेरिका में हिरासत में लिया गया था। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, अनमोल, जो एक खूंखार गैंगस्टर भी है और भारत में कई हाई-प्रोफाइल हत्या के मामलों में वांछित था, को पहले ही दिन कैलिफोर्निया में हिरासत में ले लिया गया था। अनमोल बिश्नोई  पिछले साल भारत से भाग गया था, अपने भाई लॉरेंस बिश्नोई की गिरफ्तारी के बाद बिश्नोई गिरोह द्वारा संचालित आपराधिक नेटवर्क में एक प्रमुख नाम बन गया। अनमोल भारत में कई आपराधिक मामलों में वांछित है, जिसमें बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान के आवास के बाहर गोलीबारी की घटना और 2022 में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या भी शामिल है।

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वह इस साल अक्टूबर में महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और एनसीपी नेता बाबा सिद्दीकी की हाल ही में हुई हत्या में भी शामिल हैं। अनमोल बिश्नोई को मुंबई पुलिस अपराध शाखा इकाई द्वारा उसके प्रत्यर्पण की प्रक्रिया शुरू करने के कुछ सप्ताह बाद अमेरिका में हिरासत में लिया गया था। अनमोल पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दर्ज दो मामले और 18 अन्य आपराधिक मामले भी हैं। हाल ही में आतंकी जांच एजेंसी ने उस व्यक्ति के लिए 10 लाख रुपये के इनाम की घोषणा की जो अनमोल बिशोई के बारे में जानकारी देगा जिससे उसकी गिरफ्तारी होगी।

दिल्ली में जहरीली हवा का कहर, पंजाब में थम नहीं रहे पराली जलाने के केस, आज तो बन गया नया रिकॉर्ड

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राष्ट्रीय राजधानी में गंभीर वायु प्रदूषण के कारण पंजाब में सोमवार को पराली जलाने के 1,250 मामले सामने आए। यह इस मौसम में एक ही दिन में पराली जलाने की सबसे अधिक संख्या है। इसके साथ ही राज्य में पराली जलाने के मामलों की कुल संख्या 9,655 तक पहुंच गई। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण के सबसे प्रमुख कारणों में से एक पराली जलाना रहा है। 6 नवंबर को, केंद्र सरकार ने किसानों को रोकने के लिए पराली जलाने पर जुर्माना दोगुना कर दिया। पांच एकड़ से अधिक भूमि वाले लोगों के लिए जुर्माना बढ़ाकर 30,000 रुपये कर दिया गया। दो एकड़ से कम जमीन वाले किसानों को अब 2,500 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये पर्यावरण मुआवजा देना होगा।
 

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आठ नवंबर को  पंजाब में खेतों में पराली जलाने की 730 घटनाएं सामने आईं थी। आंकड़ों के अनुसार सोमवार को मुक्तसर जिले में पराली जलाने की 247 घटनाएं दर्ज की गईं, जो राज्य में सबसे अधिक है, इसके बाद मोगा (149), फिरोजपुर (130), बठिंडा (129), फाजिल्का (94) और फरीदकोट (88) का स्थान है। आंकड़ों के अनुसार, 2022 और 2023 में इसी दिन राज्य में पराली जलाने के क्रमशः 701 और 637 मामले दर्ज किए गए। 15 सितंबर से 18 नवंबर तक, पंजाब मेंपराली जलाने के 9,655 मामले आए, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में दर्ज आंकड़ों की तुलना में लगभग 71 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। 
 

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पंजाब में 2022 और 2023 में इसी अवधि के दौरान पराली जलाने के क्रमशः 48,489 और 33,719 मामले आए। अक्टूबर-नवंबर में धान की कटाई के बाद दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए अक्सर पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने को जिम्मेदार ठहराया जाता है। चूंकि धान की कटाई के बाद रबी की फसल गेहूं बोने के लिए समय बहुत कम होता है, इसलिए कुछ किसान नयी फसल की बुवाई के लिए फसल अवशेषों को जल्दी से साफ करने के लिए अपने खेतों में आग लगा देते हैं।

Erandol विधानसभा सीट पर शिवसेना ने Amol Patil को चुनावी रण में उतारा, क्षेत्र में पाटिल समाज का रहा है दबदबा

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का संग्राम अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है। चुनाव आयोग की घोषणा की के अनुसार, पूरे राज्य में वोटिंग 20 नवंबर को होगी। जिसकी मतगणना 23 तारीख को मतगणना की जाएगी। महाराष्ट्र में कुल 288 विधानसभा हैं जिनमें से जीत के लिए गठबंधन को 145 सीट का आंकड़ा छूना है। इस बार बहुत कुछ सियासी उलटफेर भी राज्य के लोगों के सामने हुआ है। ऐसे में इस बार के चुनाव खासे दिलचस्प होने वाले हैं और नतीजे शायद उससे भी ज्यादा दिलचस्प। महाराष्ट्र की 16वें नंबर की विधानसभा सीट है एरंडोल सीट। जहाँ से महायुति गुट के शिवसेना ने अमोल पाटिल को टिकट दिया है।
इस विधानसभा सीट पर पिछले कई सालों से सिर्फ पाटिल सरनेम का ही हमेशा से बोलबाला रहा है। फिलहाल इस सीट से शिवसेना के चिमनराव पाटिल विधायक हैं। इससे पहले यह सीट एनसीपी के अन्नासाहेब डॉ. सतीश भास्करराव पाटिल के पास थी। उनसे पहले भी यह सीट शिवसेना के गुलाब रघुनाथ पाटिल के पास थी। गुलाब रघुनाथ पाटिल इस विधानसभा सीट पर 1999 और 2004 में जीते थे। 
2019 चुनाव के परिणाम
पिछले विधानसभा चुनावों की बात की जाए तो चुनावों के दौरान शिवसेना एसएचएस से चिमनराव पाटिल एरंडोल सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। उनके सामने इस सीट पर अपनी अच्छी पकड़ रखने वाले एनसीपी के अन्नासाहेब डॉ. सतीश भास्करराव पाटिल मैदान में थे। इस चुनाव में चिमनराव को कुल 82650 वोट मिले थे जबकि उनके सबसे निकटमत प्रतिद्वंद्वी डॉ. सतीश को 64648 वोट मिले थे। इनके अलावा तीसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार शिरोले गोविंद एकनाथ रहे। उन्हें इस चुनाव में 24587 वोट मिले थे। शिवसेना एसएचएस के चिमनराव पाटिल ने एनसीपी के डॉ. सतीश को 18002 वोटों से हरा दिया।
जानिए राजनीतिक समीकरण
एरंडोल विधानसभा सीट पर शुरुआत से लेकर अभी तक पाटिल समाज की तूती बोलती हुई आई है। यहां पर जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो यहां सिर्फ पाटिल समाज ही 33 प्रतिशत के आस-पास है। इसके बाद दूसरे नंबर पर यहां मुस्लिम समुदाय है। इस विधानसभा सीट पर करीब साढ़े नौ प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं। इनके बाद इस सीट पर भील और महाजन समुदाय के वोटर्स आते हैं।
अमोल पाटील की जीवनी
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में एरंडोल विधानसभा सीट में 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में है। एरंडोल विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा जबकि नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। यह विधानसभा क्षेत्र जलगांव जिले के अंतर्गत आती है। एरंडोल विधानसभा सीट से 2019 में शिवसेना के चिमण रुपचंद पाटील , 2014 में एनसीपी से डॉ सतीश भास्कर पाटील, उससे पहले 1999,2004 में शिवसेना के गुलाब रघुनाथ पाटील और 2009 में शिवसेना के चिमण रुपचंद पाटील ने जीत दर्ज की थी। 
इस बार के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने अमोल चिमण पाटील और एनसीपी एसपी की ओर से डॉ सतीश भास्कर पाटील चुनावी मैदान में है। दोनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। 46 वर्षीय अमोल पाटील के पिताजी का नाम चिमणराव पाटील है जो पूर्व में इस सीट से विधायक रह चुके है। उनका निवास स्थल साक्षी बिल्डिंग गजानन हाउसिंग सोसाइटी, परोला जिला जलगांव है। अमोल की पत्नी का नाम मृणाल पाटील है। उनकी पत्नी नौकरी और गृह कार्य करती है। अमोल का व्यवसाय व्यापार और खेती है। अमोल की शिक्षा की बात की जाए तो उन्होंने महाराष्ट्र विद्यापीठ जलगांव से बीएसएल किया हुआ है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए बनीं भाजपा की मैनिफेसटो एवं आरोप पत्र समितियों की बैठकें सम्पन्न

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नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव से जुड़ी दिल्ली भाजपा की मैनिफेसटो समिति की पहली बैठक संयोजक सांसद रामवीर सिंह बिधूडी के निवास पर सम्पन्न हुई जिसमे राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम ने अपना मार्गदर्शन एवं विभिन्न प्रभार राज्यों का मैनिफेसटो अनुभव सांझा किया।
तीन घंटे से अधिक चली बैठक में मैनिफेसटो समिति सदस्यों डा. हर्षवर्धन, विजय गोयल, सरदार अरविंदर सिंह लवली, सतीश उपाध्याय, श्रीमति मीनाक्षी लेखी, प्रवेश साहिब सिंह, अजय महावर, प्रवीण शंकर कपूर, राजकुमार फुलवारिया, सुनीतू डबास एवं अभिषेक टंडन ने समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े मुद्दे रखे और सभी ने उन पर चर्चा कर मुद्दों की शार्ट लिस्टिंग का कार्य शुरू किया।
 

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रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा है कि आज दिल्ली के लोग बहुत उम्मीद से भाजपा की ओर देख रहे हैं और हमारा मैनिफेसटो सभी वर्गों से जुड़ा होगा और हम शीघ्र अपनी विस्तृत मैनिफेसटो निर्माण योजना एक पत्रकार सम्मेलन में घोषित करेंगे।
दिल्ली भाजपा ने आम आदमी पार्टी पर नियमित हमले करने के लिए विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजेन्द्र गुप्ता के संयोजन में समिति गठित की है जिसकी भी आज प्रथम बैठक हुई जिसमा दिल्ली भाजपा के विधानसभा चुनाव प्रभारी बैजयंत पांडा ने समिति के लिए दिशानिर्देश सभी उपस्थित सदस्यों को समझाये।
 

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बैठक में दिल्ली विधानसभा चुनाव संचालन समिति संयोजक हर्ष मल्होत्रा, सह संयोजक दुष्यंत गौतम, राष्ट्रीय मंत्री मंजिनद्र सिंह सिरसा, पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी, प्रदेश मंत्री हरिश खुराना और अन्य सदस्य सम्मिलित हुए।

सीएम पिनरई विजयन पर बरसी कांग्रेस और IUML, लगाया भाजपा-आरएसएस का साथ देने का आरोप

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केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के प्रमुख पनक्कड़ सादिक अली शिहाब थंगल के खिलाफ अभद्र टिप्पणी करने के बाद ताजा विवाद खड़ा कर दिया। पलक्कड़ उपचुनाव के लिए एलडीएफ समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार पी सरीन के लिए रविवार को एक अभियान रैली में पिनाराई ने थंगल की अत्यधिक आलोचना की। उन्होंने कहा कि थंगल जमात-ए-इस्लामी के नियमित अनुयायी की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

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IUML केरल के कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) में दूसरा सबसे बड़ा गठबंधन भागीदार है। विधानसभा में विपक्ष के नेता वीडी सतीसन ने कहा कि मुख्यमंत्री ने ‘संघ परिवार’ को खुश करने के लिए ये टिप्पणियां कीं। सतीसन ने कहा कि थंगल जैसे धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के खिलाफ मुख्यमंत्री की अपमानजनक टिप्पणी, सच में संघ परिवार को खुश करने के लिए है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने हाल ही में पूछा था कि क्या वे थंगल की आलोचना नहीं कर सकते। उन्होंने कहा था, ‘हम थंगल की आलोचना करेंगे।

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सतीसन ने पिनाराई विजयन पर भाजपा के राज्य प्रमुख के समान आवाज़ में बोलने का आरोप लगाया। कांग्रेस नेता ने कहा कि दोनों एक ही तरह से बात कर रहे हैं। इस बीच, IUML के मलयालम मुखपत्र चंद्रिका ने भी पिनाराई की आलोचना की। चंद्रिका में एक राय लेख में कहा गया है कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का थंगल की योग्यता का मूल्यांकन करने का प्रयास सांप्रदायिक ताकतों के साथ उनके और उनकी पार्टी के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है।