
डोमिनिका ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपना सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान देने की घोषणा की

क्या ट्रंप कर रहे हैं पीएम मोदी की नकल? इन निर्णयों में समानता

नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग नामक एक नया मंत्रालय बनाया है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी सरकार को कुशल बनाना है। यह मोदी सरकार के सुशासन प्रयासों के समान है। इस मंत्रालय का उद्देश्य सरकारी खर्चों को कम करना और अनावश्यक कानूनों को खत्म करना है। ट्रम्प इसे मैनहट्टन प्रोजेक्ट भी कहते हैं।
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल जनवरी में पदभार संभालेंगे। राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी टीम तैयार कर रहे हैं. वे एक के बाद एक अपॉइंटमेंट ले रहे हैं. उन्होंने अपनी टीम में एलन मस्क और विवेक रामास्वामी को भी शामिल किया है. उन्हें एक ऐसा मंत्रालय सौंपा गया है जो बिल्कुल नया है। दरअसल, ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) नाम से एक मंत्रालय बनाया है। ये एक ऐसा मंत्रालय है जिसकी कार्यप्रणाली पीएम मोदी के विचारों से मिलती जुलती है. पिछले 10 साल में उन्होंने अपनी सरकार में ऐसे ही काम किए हैं.’
क्या होगा ट्रंप के नए मंत्रालय का काम?
ट्रम्प के नए मंत्रालय को सरकारी दक्षता विभाग कहा जाता है। इसका काम अगले 2 वर्षों में अमेरिकी सरकार को कुशल बनाना है। उन्हें नौकरशाही के चंगुल से मुक्त कराना होगा. मंत्रालय को सरकारी खर्च में कटौती करने, अनावश्यक कानूनों को हटाने और सरकारी एजेंसियों को पुनर्गठित करने का काम सौंपा जाएगा।
इसे सरकार को और अधिक प्रभावी बनाने का काम भी दिया गया है. यह मंत्रालय 4 जुलाई, 2026 को अमेरिका की आजादी के 250 वर्ष पूरे होने तक कार्य करेगा। ये ट्रंप का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. वे इसे मैनहट्टन प्रोजेक्ट कहते हैं। यह वही परियोजना है जिसके तहत द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी शोधकर्ताओं ने परमाणु बम बनाने का प्रयास किया था।
भारत में भी इसी तरह के कदम उठाए गए
भारतीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसे सुशासन मंत्रालय कहा जा सकता है। हालाँकि भारत में ऐसा कोई अलग मंत्रालय नहीं है, लेकिन पिछले 10 वर्षों में कई कदम उठाए गए हैं, जिनमें अप्रभावी और अनावश्यक कानूनों को हटाना, नियमों को सरल बनाना और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देना शामिल है।
सरकारी हस्तक्षेप को कम करने का प्रयास किया गया। मंत्रालयों के बीच आपसी समन्वय बढ़ाया गया। न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन पर काम किया गया। सरकार में पेशेवर लोगों की भर्ती की गई।
मैनहट्टन परियोजना क्या थी?
ब्रिटेन और कनाडा के सहयोग से अमेरिका के नेतृत्व में ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पहला परमाणु बम बनाने के लिए शुरू किया गया एक कार्यक्रम था। रॉबर्ट ओपेनहाइमर सहित हजारों वैज्ञानिक ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ का हिस्सा थे। ओपेनहाइमर के अलावा, इस परियोजना में अल्बर्ट आइंस्टीन, एनरिको फर्मी और नील्स बोह्र सहित दुनिया के कुछ सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक एक साथ आए। यह ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ ही था जिसने दो परमाणु बम बनाए थे, जिन्हें अगस्त 1945 में जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराया गया था, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे।
अमेरिकी सेना कोर ऑफ इंजीनियर्स के मेजर जनरल लेस्ली ग्रोव्स ने 1942 से 1946 तक इस परियोजना का नेतृत्व किया। ओपेनहाइमर लॉस एलामोस लैब के निदेशक थे जिसने बम डिजाइन किया था। इस परियोजना को न्यूयॉर्क के मैनहट्टन जिले में डिज़ाइन किया गया था और इसलिए इसे यह नाम दिया गया था। ऐसा कहा जाता है कि यह परियोजना एक समय में लगभग 130,000 लोगों को रोजगार प्रदान करेगी। उस समय इसकी कीमत लगभग 2 बिलियन डॉलर थी।
चुनाव: झारखंड रैली में वोटिंग से पहले अमित शाह ने लीक किया पेपर

गिरिडीह में रैली को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा कि चुनाव का पहला चरण खत्म हो गया है. अगर आप लोग कहें तो मैं वोटिंग पेपर पहले ही लीक कर देता हूं। झारखंड से झामुमो का सफाया हो गया है. बीजेपी सरकार आ रही है.
झारखंड के गिरिडीह में अमित शाह ने भारत गठबंधन पर निशाना साधा है. शाह ने कहा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल राज्य को एटीएम की तरह मान रहे हैं. एनडीए की सरकार आने पर यहां विकास कार्य किये जायेंगे. इस दौरान शाह ने राहुल गांधी पर भी हमला बोला. शाह ने अपने संबोधन में कहा कि केंद्र की योजना को लागू करने के बजाय हेमंत सोरेन की सरकार घुसपैठियों को बसाने में लगी है. झारखंड में डबल इंजन की सरकार बनने से विकास की गति तेज होगी.
मोदी सरकार ने नक्सलवाद को खत्म किया
अमित शाह ने अपने संबोधन में कहा कि झारखंड लंबे समय से नक्सलवाद से जूझ रहा है. नक्सली यहां लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहे थे. नक्सलवाद ने झारखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन मोदी सरकार आते ही नक्सलियों पर नकेल कस दी गई. केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि 10 साल के शासनकाल में हमने देश को नक्सलवाद से मुक्ति दिलाने का काम किया है. छत्तीसगढ़ हो या झारखंड, हर जगह नक्सली अब आखिरी सांसें गिन रहे हैं.
पहले चरण में जीत का दावा किया
रैली में लोगों से बात करते हुए अमित शाह ने कहा कि यहां पहले चरण का मतदान हो चुका है. झारखंड की जनता ने 43 सीटों पर वोट कर दिया है. चलिए अब मैं आपको नतीजा बताता हूं. इस पर भीड़ से हाँ की गर्जना हुई। अमित शाह ने कहा कि अगर आप लोग कहेंगे तो मैं पेपर लीक कर दूंगा. पहले चरण में झामुमो का सफाया हो गया है. भाजपा सरकार भारी मतों से आ रही है।
हम घुसपैठियों को उल्टा लटका देंगे- शाह
अमित शाह ने कहा कि झारखंड में घुसपैठिये आते हैं, लड़कियों से शादी करते हैं और उनकी जमीन हड़प लेते हैं. कमल के फूल की सरकार बनाएं जहां कोई घुसपैठिया न घुस सके। उन्होंने आगे कहा कि हम ऐसा कानून लाएंगे कि जिन्होंने आदिवासियों की जमीन हड़पी है, उन्हें जमीन वापस करनी होगी.
इंडिगो फ्लाइट में फिर बम की धमकी, रायपुर में हुई इमरजेंसी लैंडिंग

छत्तीसगढ़ के रायपुर में इंडिगो की एक फ्लाइट में बम होने की धमकी मिली है. नागपुर से कोलकाता जा रहे विमान की आपात लैंडिंग हुई. घटना की सूचना मिलते ही एयरपोर्ट पर सुरक्षा बढ़ा दी गई और बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया और मामले की जांच की जा रही है.
भारत में विमानों को बम से उड़ाने की धमकियों का सिलसिला थम नहीं रहा है। इंडिगो की एक और फ्लाइट की छत्तीसगढ़ के रायपुर में इमरजेंसी लैंडिंग हुई। नागपुर से कोलकाता जा रही फ्लाइट में बम होने की सूचना मिलने के बाद यह कदम उठाया गया। फ्लाइट में बम होने की जानकारी मिलते ही एहतियात के तौर पर फ्लाइट को रायपुर एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग कराई गई और तत्काल प्रभाव से सुरक्षा उपाय लागू कर दिए गए.
बम की सूचना मिलते ही एयरपोर्ट पर सुरक्षा बढ़ा दी गई और तलाशी अभियान चलाया गया. विमान से यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकाला गया और विमान को खाली कराया गया. इसके बाद बम निरोधक दस्ते को बुलाया गया और जांच की जा रही है.
30 साल में दोगुना हुए डायबिटीज के मरीज, नहीं संभले तो 2050 तक 130 करोड़ लोग होंगे जद में
डायबिटीज. एक ऐसा नाम जो अब हर किसी की जुबां पर है. हर गली, हर मुहल्ले, और हर परिवार में इसका ज़िक्र आम बात हो गई है. पहले ये समझा जाता था कि यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों को ही होती है, मगर अब इसकी जद में सभी है. क्या बच्चे, युवा और बुजुर्ग. आपको यहा जानकर ताज्जुब हो सकता है कि 1990 में डायबिटीज के मरीजों की संख्या केवल 7 प्रतिशत थी, लेकिन 2022 तक यह बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई है. यानी 30 साल में मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है!
और यह आंकड़े किसी सामान्य रिपोर्ट से नहीं, बल्कि विश्व प्रसिद्ध जर्नल ‘द लैंसेट’ में छपी एक स्टडी से सामने आए हैं.आज लगभग 80 करोड़ लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं, और विशेषज्ञों का कहना है कि अगर स्थिति यही रही, तो 2050 तक यह आंकड़ा 130 करोड़ से भी ज्यादा हो सकता है.
यह डराने वाले आंकड़े सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक सख्त सच्चाई हैं, जो हमें इस बीमारी के बढ़ते प्रभाव को समझने के लिए मजबूर करते हैं. और आज तो विश्व मधुमेह (डायबिटीज) दिवस भी है. यह डायबिटीज़ को लेकर जागरूकता लाने के लिए विश्व का सबसे बड़ा अभियान है.
आखिर संख्या में उछाल की वजह क्या है?
यह अध्ययन एनसीडी रिस्क फैक्टर कोलैबोरेशन’ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किया गया है. इसमें बताया गया है कि जो देश समृद्ध है, वहां इसका प्रसार कम हो रहा है. इस अध्ययन में 1,000 से ज्यादा पुराने अध्ययनों का विश्लेषण किया गया है, जिनमें 14 करोड़ से ज्यादा लोगों के आंकड़े शामिल हैं.
साल 1990 में डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों की संख्या 20 करोड़ थी, जो साल 2022 में बढ़कर 83 करोड़ हो गई. 1980 में वयस्कों में डायबिटीज़ का दर 4.7% था, जो बढ़कर 8.5% हो गया है. डायबिटीज में इतनी बढ़ोतरी लोगों की जीवनशैली में हो रहे बदलावों की वजह से हो रही है. रिसर्च के लेखकों ने मोटापे और खानपान को ही टाइप-2 डायबिटीज का मुख्य कारण बताया. ये आमतौर पर मध्यम उम्र या बुजुर्ग लोगों में होती है.
टाइप-1 डायबिटीज जो आमतौर पर कम उम्र में होता है ठीक होना ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि इसमें शरीर में इंसुलिन की कमी हो जाती है. यह समस्या विशेष रूप से उन देशों में गंभीर है जहां तेजी से शहरीकरण और आर्थिक विकास के चलते खानपान और दिनचर्या में बदलाव हुआ है. महिलाओं पर इसका असर बहुत ज्यादा हो रहा है.
इलाज में बढ़ता ही जा रहा है अंतर
लैंसेट की स्टडी के मुताबिक 30 साल और उससे अधिक उम्र के वयस्कों में से 59 फीसदी यानी लगभग 44.5 करोड़ लोगों को 2022 में डायबिटीज का कोई इलाज नहीं मिला. सब-सहारा अफ्रीका में तो केवल 5 से 10 फीसदी लोगों का ही इलाज हो पा रहा है. ये हाल तब है जब डायबिटीज के लिए दवाइयां उपलब्ध हैं. जानकारों का कहना है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच इसके इलाज में बाधा बनती है.
भारत तो वैसे ही ‘डायबिटीज कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ कहलाता है. यानी हमारे देश में डायबिटीज के सबसे ज्यादा मामले हैं. पिछले साल यानी 2023 तक भारत में 10 करोड़ से ज्यादा डायबिटीज के मामले थे. और दुनिया में जिन लोगों को इलाज नहीं मिला, उनके करीब 14 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में ही रहते हैं.
भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी लगभग एक तिहाई महिलाएं अब डायबिटीज की शिकार हैं, जबकि 1990 में यह आंकड़ा 10 फीसदी से भी कम था. कुछ विकसित देशों ने डायबिटीज के मामलों में स्थिरता या गिरावट दर्ज की है. जापान, कनाडा, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों में डायबिटीज के प्रसार में कम इजाफा देखा गया है.
फिर समाधान क्या है?
इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि दुनिया के कई हिस्सों में में डायबिटीज के इलाज की ऊंची लागत भी एक बड़ी बाधा बनती जा रही है. मिसाल के तौर पर, सब सहारा अफ्रीका में इंसुलिन और दवाइयों का खर्च इतना ज्यादा है कि कई मरीजों को ढंग का तो छोड़िए, पूरा इलाज ही नसीब नहीं होता. और बिना सही इलाज के लाखों लोगों को गंभीर जटिलताओं का सामना करने पर मजबूर होना पड़ता है.
इसलिए डायबिटीज से निपटने के लिए एक वैश्विक रणनीति की जरूरत है. खासकर से उन देशों में जहां स्वास्थ्य संसाधनों की कमी है. इसमें सस्ती दवाइयों की उपलब्धता बढ़ाने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने और डायबिटीज के प्रति जागरूकता बढ़ाने जैसी पहलें शामिल हो सकती हैं. इनकी वजह से डायबिटीज का बोझ कम किया जा सकता है और इलाज में बढ़ते अंतर को जल्द ही पाटा जा सके.

