Wednesday, July 16, 2025
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China’s Annexation Around the world Part 4 | लोन देकर कैसे चीन किसी देश को अपने जाल में फंसाता है?

कहते हैं कि किसी को अपना गुलाम बनाना है तो उसके सिर्फ दो ही तरीके हैं। या तो उसे जंग के मैदान में मात तो या फिर उसे इतना कर्ज दो कि वो कभी लौटा ही न सके। चीन इसी नीति पर काम कर रहा है जिसे दुनिया विस्तारवाद कहती है। खास बात ये है कि चीन की इस चाल से लगभग पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन फिर भी पाकिस्तान या श्रीलंका जैसे कई देश ऐसे हैं जो या तो चीन के आर्थिक गुलाम बन गए या फिर बनने की तैयारी में है। चीन दूसरे देशों में कब्जा जमाने के लिए पहले अपनी कंपनियों को भेजता है। फिर उस देश को कर्ज देता है और फिर धीरे धीरे उसे अपने वश में कर लेता है। इसे आप श्रीलंका के उदाहरण से समझ सकते हैं। इसके साथ ही साथ चीन बांग्लादेश को भी अपने कर्ज के जाल में फंसा रहा है। चीन का सदाबहार मित्र पाकिस्तान भी इससे अछूता नहीं है। कुछ अफ्रीकी देशों में भी चीन की यही प्रवृत्ति देखने को मिली है। इसलिए कई अफ्रीकी देश भी चीन की महत्वकांक्षी परियोजना का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में चीन की छवि एक साम्राज्यवादी देश की तरह उभर रही है। जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन के लिए घातक सिद्ध होगी और चीन अलग थलग पड़ जाएगा। 

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चीन का सस्ता कर्ज जाल 

चीन का पुराना फार्मूला है इन्वेस्टमेंट और व्यापार के लुभावने वादे। श्रीलंका हो या मालदीव पाकिस्तान हो या नेपाल, इन देशों में खूब इनवेस्ट करता है और तरक्की के सपने बेचता है और फिर इसी कर्ज की राह अपने सामरिक हित साधता है। आर्थिक व्यवस्था के बुरे दौर से उबरने में नाकाम साबित होने वाले देश इसके लिए दूसरों से मदद मांगते हैं। ये मदद उन्हें इंटरनेशनल मॉनिट्री फंड और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों और अन्य देशों की तरफ से मिलती है। आर्थित संकट से जूझ रहे देश को उसकी इकोनॉमी को उबारने के लिए कर्ज दिया जाता है। लेकिन आईएमएफ, विश्व बैंक और ज्यादातर देश इस कर्ज के साथ ही कई कड़ी शर्तें लगाते हैं। इन शर्तों का उद्देश्य होता है कि कर्ज लेने वाले देश की सरकार इस धन का उपयोग अपने यहां लोक-लुभाने फायदे देने में न करे। बल्कि इसकी मदद से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करे। लेकिन कर्ज देने वाले देशों में चीन की शर्तें सबसे आसान होती हैं। इस लोन के साथ ज्यादातर आर्थिक सुधार से जुड़ी कड़ी शर्तें नहीं होती हैं। चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिये पूरी दुनिया को चीन से जोड़ने का है। इसके लिए वो कई देशों में भारी मात्रा में निवेश कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो इसके तहत उसने सलाना 85 अरब डॉलर के करीब खर्च किए हैं। चीन की महत्वकांक्षा अब 42 देशों के लिए मुसबीत बनती जा रही है। 

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श्रीलंका के लिए भस्मासुर बना चीन 

चीन ऐसा देश है जो किसी पर अपना हाथ रख दे तो उसे कंगाल बना देता है। क्योंकि चीन का कर्ज और उस देश की कंगाली दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती है। सालभर पहले श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से ज्यादा हुआ करता था और यह वह 1 अरब डॉलर तक आ चुका है। डॉलर का भाव 200 श्रीलंकाई रुपए से भी ज्यादा हो गया। श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय ट्रेड रूट में काफी अहम रोल रखता है। शायद यही वजह है कि 2000 से 2020 के बीच चीन ने श्रीलंका को करीब 12 बिलियन डॉलर बतौर कर्ज दिए। चीन कर्ज के एवज में हमेशा जमीन हड़प लेता है। जैसा कि उसने तीन साल पहले श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट पर किया था। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद महासागर में एक रणनीतिक महत्व देती है और इसी वजह से चीन उसपर नजर बनाए हुए है। 

श्रीलंका की राह पर चला पाकिस्तान 

जनवरी 2023 तक पाकिस्तान का कुल कर्ज 62.46 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपया (274 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के आसपास है। जो पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 79 प्रतिशत है। अक्टूबर, 2022 की आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान का विदेशी कर्ज 100 बिलियन डॉलर के ऊपर है और इसमें से 30 बिलियन डॉलर से ज्यादा कर्ज चीन का दिया हुआ है। 

कंबोडिया 

चीन कंबोडिया का विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट परियोजनाओं में। जबकि इन निवेशों ने कंबोडिया के आर्थिक विकास में योगदान दिया है, देश के बढ़ते ऋण और इसकी संप्रभुता और रणनीतिक हितों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएं जताई गई हैं। 

केन्या 

केन्या में बुनियादी ढांचे के विकास के प्रयासों के कारण रेलवे और बंदरगाहों जैसी परियोजनाओं में चीन ने काफी निवेश किया है। इन निवेशों का उद्देश्य केन्या की कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को बढ़ाना है। हालांकि, देश के बढ़ते कर्ज के स्तर ने पुनर्भुगतान को प्रबंधित करने और राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने की इसकी क्षमता के बारे में चिंताएं पैदा की हैं। 

नेपाल 

अब भारत के ऐसे पड़ोसी देश की बात करेंगे जिसके साथ हमारा रोटी-बेटी का संबंध कहा जाता है। नेपाल ने बीआरआई पर 2017 में साइन किया। चीनी राष्‍ट्रपति की साल 2019 में हुई नेपाल यात्रा के दौरान 20 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुआ था। वांग यी ने कहा था कि चीन सीमा पार रेलवे प्रॉजेक्‍ट के व्यवहार्यता अध्‍ययन पर ठोस प्रगति करेगा, ट्रांस हिमालय कनेक्‍टविटी नेटवर्क को सुधारेगा और नेपाल की परेशानियों को दूर करके उसका सपना पूरा करने में मदद करेगा। नेपाल स्वयं में एक छोटा राष्ट्र है जो एक तरफ भारत तथा दूसरी तरफ चीन से घिरा हुआ है। चूंकि भारत एवं चीन मौलिक रूप से एक दूसरे के परस्पर विरोधी साबित हुए हैं, इसके चलते आधुनिक समय में नेपाल के अंदर किसी भी प्रकार की अस्थिरता उत्पन्न होने की प्रबल संभावना बनी होती है। 

पैसों के दम 16 मुस्लिम देश चीन के सामने नतमस्तक 

चीन ने पिछले 15 वर्षों और मौजूदा और भविष्य के लिए जो इन देशों के साथ करार कर रखे हैं, उसके हिसाब से उसने इन मुस्लिम देशों में करीब 1,300 अरब डॉलर का या तो निवेश कर रखा है या कर्ज के रूप में दिया हुआ है। अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट एंड द हेरिटेज फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक 2005 से लेकर 2020 के बीच में चीन ने पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, यूएई, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अल्जीरिया, मिस्र और तुर्की में कुल 421.59 अरब डॉलर के निवेश कर रखे हैं या करार किया हुआ है। जबकि, ईरान, पाकिस्तान, मलेशिया, सऊदी अरब, बांग्लादेश और मिस्र के साथ उसने मौजूदा समय में भी और भविष्य के लिए भी अरबों डॉलर की डील की हुई है। कुल मिलाकर यह आंकड़ा 1.3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का है। इसलिए चीन में रह रहे मुसलमानों के हित में आवाज उठाने के मामले में ये तमाम मुस्लिम देश चीन के ‘बंधक’ के रोल में आ चुके हैं और उनकी बोलती बंद हो चुकी है। 

चीन दुनिया का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता 

चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऋण संग्रहकर्ता है। विकासशील देशों से उस पर बकाया राशि $1.1tn (£889bn) और $1.5tn के बीच बढ़ गई है। वैश्विक दक्षिण में चीन के विदेशी ऋण पोर्टफोलियो का अनुमानित 80% अब वित्तीय संकट में देशों का समर्थन कर रहा है। 2017 से चीन दुनिया का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता रहा है। इसके मुख्य डेवलपमेंट बैंकों ने 2008 और 2021 के बीच लगभग 500 बिलियन डॉलर जारी किए। हालांकि इसमें से कुछ बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) से पहले का है।

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China’s Annexation Around the World Part 5 | जब माओ ने रूस को धमकाया, क्या है रूस चीन का सीमा विवाद?

साल 2015 में चीन में एक फिक्शन फिल्म आई थी वुल्फ वॉरियर। इस फिल्म में चाइनीज मार्शल आर्ट खूब देखने को मिला था। फिल्म में लोकप्रिय अभिनेता वू जिंग मुख्य भूमिका में नजर आए थे। फिल्म में एक चीनी कमांडो अफ्रीका और अफगानिस्तान में अमेरिकियों की जान लेता है। फिल्म की सबसे खास बात ये रही कि कर्मिशल होने के बाद भी ये पीपुलिस लिबरेशन ऑफ आऱ्मी के लोगों की जांबाजी दिखाती है। इसके लिए सेना की भी मदद ली गई। फिल्म में चीनी सेना भयानक आक्रमक और चालाक रही। यही तरीका अब चीन की सरकार असल में भी अपनाती नजर आ रही है। इसलिए इसे वुल्फ वारियर डिप्लोमेसी कहा जा रहा है। वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी जैसे शब्दों का इस्तेमाल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2019 में चीन के लिए बढ़ते अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों के बीच किया था। 

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वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी का क्या अर्थ है? 

जब कोई देश दूसरे देश के साथ वार्ता करता है या फिर किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने राष्ट्रीय हितों को लेकर चलता है उसे ही डिप्लोमेसी कहते है। इस दुनिया में किसी भी देश का न तो कोई परमानेंट दोस्त होता है और न ही परमानेंट दुश्मन होता है। वक्त के साथ दोस्त दुश्मन हो जाते हैं और दुश्मन दोस्त। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण भारत और अमेरिका के रिश्ते हैं। जब कोई देश अपनी राष्ट्र के हितों के लिए बहुत ज्यादा एग्रेसिव मूव अपनाता है। जब किसी देश के डिप्लोमैट, लीडर या एम्बेसडर दूसरे देशों के साथ एग्रेसिव अप्रोच रखते हैं और उन्हें धमकी, बैलकमेल या डरा कर अपना एजेंडा पूरा करने वाले देश वुल्फ वॉर डिप्लोमेसी को फॉलो करते हैं। 

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रूस और चीन का सीमा विवाद 

रूस के सुदूर पूर्व में चीन और व्लादिवोस्तोक की सीमा से लगा अमूर क्षेत्र शामिल है। इन्हें 19वीं शताब्दी के मध्य में रूस द्वारा चीन से लिया गया था, जब रूसी जनरल निकोलाई मुरावेव-अमर्सकी ने चीन को हराने के लिए रूस की अधिक मारक क्षमता और अधिक आधुनिक सेना का उपयोग किया था। लेकिन क्षेत्र में क्षेत्रों की स्थिति विवादास्पद बनी रही। 1969 में चीन और सोवियत संघ ने सीमा मुद्दों पर सात महीने तक अघोषित युद्ध लड़ा। 1991 के बाद, चीन और रूस ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई दौर की वार्ता और संधियाँ कीं कि उनके बीच की सीमा को दोनों पक्षों द्वारा अनुमोदित किया गया था, आखिरी संधि 2004 में हुई थी। फिर भी, चीन के भीतर सभी समूह परिणामों को स्वीकार नहीं करते हैं। चीन में पाठ्यपुस्तकों में अभी भी रूस को 1.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर के नुकसान का उल्लेख है। 

माओ ने कहा था- रूस को चुकानी होगी कीमत 

ध्यान दें कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओत्से तुंग ने कहा था कि रूस को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्‍होंने कहा था कि यह चीनी क्षेत्रों की चोरी है। अब कई रूसी लोगों का मानना है कि चीन रूस के इस फॉर ईस्‍ट इलाके को अपना उपनिवेश बना सकता है। चीन यहां मिलने वाले कच्‍चे माल जैसे हीरे और सोने का इस्‍तेमाल कर सकता है। कुछ रूसियों और पश्चिम के लोगों के बीच डर यह है कि चीन रूस के सुदूर पूर्व को अपने उपग्रह में बदल सकता है, इसे हीरे और सोने जैसे कच्चे माल के साथ-साथ तेल और गैस के स्रोत के रूप में उपयोग कर सकता है।

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असमिया लोगों को ख़त्म करने का जिहाद… असम में जनसांख्यिकीय बदलाव पर बोले हिमंत बिस्वा सरमा

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने मंगलवार को राज्य में जनसांख्यिकीय बदलाव के अपने दावों को और पुख्ता करते हुए कहा कि स्थानीय समुदाय दबाव में हैं। उन्होंने इसे एक धर्म के लोगों द्वारा रणनीतिक अतिक्रमण बताया। गुवाहाटी में मीडिया को संबोधित करते हुए, मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि ये प्रवासी राजनीतिक प्रभाव हासिल करने के इरादे से विभिन्न क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय रूपरेखा को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।
 

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हिमंत के अनुसार, राज्य सरकार ने मई 2021 से अब तक कई बेदखली अभियानों के ज़रिए 1.19 लाख बीघा से ज़्यादा अतिक्रमित ज़मीन को खाली कराया है। हालाँकि उन्होंने सीधे तौर पर उस समुदाय का नाम नहीं बताया जिसकी ओर वे इशारा कर रहे थे, लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि बेदखल किए गए लोगों में से कई बंगाली भाषी मुसलमान हैं। एक प्रेस वार्ता में बोलते हुए, मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वन और सरकारी ज़मीन से बेदखल किए गए ज़्यादातर लोगों के पास पहले से ही अपने मूल ज़िलों में ज़मीन है, लेकिन वे किसी कथित मकसद से असम के दूर-दराज़ के इलाकों में जा बसते हैं। 
उन्होंने कहा कि वन विनाश इन मुद्दों में से एक है। ये लोग उस जगह की जनसांख्यिकी बदलने के लिए पलायन करते हैं। उन्होंने आगे बताया कि प्रवासी बाद में अपने नए ठिकानों पर मतदाता के रूप में अपना नाम दर्ज कराते हैं। उन्होंने दावा किया, “और जब उनकी संख्या हज़ारों में हो जाती है, तो वे एक बड़ा वोट बैंक बन जाते हैं, और राजनीतिक नेता जंगल या सरकारी ज़मीन पर उनके शुरुआती अतिक्रमण के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं करते।” उन्होंने समुदाय का नाम लिए बिना कहा, “ये सभी लोग एक ही धर्म के हैं।”
 

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असम के मुख्यमंत्री ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “यह सिर्फ़ ज़मीन जिहाद नहीं है, बल्कि असमिया लोगों को ख़त्म करने का जिहाद है… निचले और मध्य असम में जनसांख्यिकीय अतिक्रमण के बाद, अब यह ऊपरी असम में हो रहा है।” हिमंत ने आरोप लगाया कि अतिक्रमण की इस लहर को कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। उन्होंने कहा कि कुछ इलाकों में पार्टी के वोट शेयर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसे उन्होंने जनसांख्यिकीय बदलावों से जोड़ा।

संसद के मानसून सत्र में आठ नए बिल ला सकती है मोदी सरकार, मणिपुर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने का प्रस्ताव भी होगा शामिल?

मोदी सरकार संसद के मानसून सत्र में आठ नए बिल ला सकती है। 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के आगामी मानसून सत्र के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित संभावित कार्यों में शामिल हैं। मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाने के लिए प्रस्ताव लाने की मंशा को शामिल करने से यह संकेत मिलता है कि सरकार की पूर्वोत्तर राज्य में 13 फरवरी को लागू किए गए उपाय को तत्काल वापस लेने की कोई योजना नहीं है। संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति शासन की घोषणा के लिए हर छह महीने में संसद की मंजूरी लेनी होती है और वर्तमान समय सीमा 13 अगस्त को समाप्त हो रही है।

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इसके अलावा, 2025-26 के लिए अनुदान मांगों (मणिपुर) से संबंधित विनियोग विधेयक संसद के समक्ष लाया जाएगा। सरकार आयकर विधेयक, 2025 भी लाने की योजना बना रही है, इस उम्मीद के साथ कि प्रवर समिति मानसून सत्र के दौरान अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। यह विधेयक 13 फरवरी को लोकसभा में पेश किया गया था और जांच के लिए प्रवर समिति को भेजा गया था।

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अस्थायी सूची में असैन्य परमाणु दायित्व व्यवस्था में बदलाव संबंधी बहुप्रतीक्षित विधेयकों का उल्लेख नहीं है। हालाँकि, सरकार सत्र के दौरान एक विधेयक ला सकती है, भले ही वह अस्थायी सूची में न हो। नए विधेयकों में मणिपुर वस्तु एवं सेवा कर (संशोधन) विधेयक 2025, जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक 2025, भारतीय प्रबंधन संस्थान (संशोधन) विधेयक 2025, कराधान विधि (संशोधन) विधेयक 2025 और खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) संशोधन विधेयक 2025 शामिल हैं।

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राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक 2025 और राष्ट्रीय डोपिंग रोधी (संशोधन) विधेयक 2025 को भी इस सत्र में पारित किया जाना प्रस्तावित है, जो 21 अगस्त को समाप्त होगा। सत्र के दौरान कुल 16 विधेयक पारित किए जाने हैं, जिनमें लोकसभा और राज्यसभा में लंबित तीन-तीन विधेयक शामिल हैं। इनमें से तीन लोकसभा द्वारा पारित हो चुके हैं और राज्यसभा में लंबित हैं, जबकि तीन लोकसभा में पेश किए गए हैं और वहां लंबित हैं। इन विधेयकों में मर्चेंट शिपिंग विधेयक 2024, भारतीय बंदरगाह विधेयक 2025, तटीय नौवहन विधेयक 2025 और लदान बिल विधेयक 2025 शामिल हैं। सत्र में पहलगाम आतंकवादी हमले और उसके बाद के घटनाक्रम और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर महाभियोग चलाने के प्रयास सहित अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होने की उम्मीद है।

कांवड़ यात्रा पथ पर ढाबों पर फिलहाल लगाना ही होगा क्यूआर कोड, SC ने यूपी-उत्तराखंड सरकार से जवाब तो मांगा, लेकिन रोक नहीं लगाई

सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार की बड़ी जीत हुई है। क्यूआर कोड मामले को लेकर याचिकाकर्ता ने याचिका दाखिल की थी, उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 2 मिनट की सुनवाई हुई। कांवड़ यात्रा शुरू हो चुकी है और 23 तारीख तक खत्म हो जाना है। लेकिन याचिकाकर्ता को इस मामले में अंतरिम राहत की उम्मीद थी। लेकिन सुनवाई की शुरुआत के समय ही उत्तराखंड सरकार और यूपी सरकार के वकील जितेंद्र कुमार सेठी ने कहा कि मामला संगीन है और हमें दो हफ्ते का वक्त चाहिए। जिसके बाद इस मामले में 22 तारीख की सुनवाई की वक्त मुकर्रर कर दी। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और शिक्षाविद् अपूर्वानंद झा एवं अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई 22 जुलाई के लिए स्थगित कर दी। 

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शीर्ष अदालत ने पिछले साल भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश द्वारा जारी इसी तरह के निर्देशों पर रोक लगा दी थी, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्गों पर स्थित भोजनालयों को अपने मालिकों, कर्मचारियों के नाम और अन्य विवरण प्रदर्शित करने के लिए कहा गया था। 25 जून को उत्तर प्रदेश प्रशासन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए झा ने कहा कि नए उपायों में कांवड़ मार्ग पर सभी भोजनालयों पर क्यूआर कोड प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है, जिससे मालिकों के नाम और पहचान का पता चलता है, जिससे वही भेदभावपूर्ण प्रोफाइलिंग प्राप्त होती है जिस पर पहले इस न्यायालय ने रोक लगा दी थी। 

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याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार का निर्देश, जिसमें स्टॉल मालिकों को कानूनी लाइसेंस आवश्यकताओं के तहत धार्मिक और जातिगत पहचान बताने के लिए कहा गया है, दुकान, ढाबा और रेस्टोरेंट मालिकों के निजता के अधिकार का उल्लंघन है। हिंदू कैलेंडर के ‘श्रावण’ माह में शिवलिंगों का ‘जलाभिषेक’ करने के लिए कई भक्त गंगा से पवित्र जल लेकर विभिन्न स्थानों से कांवड़ लेकर आते हैं। कई श्रद्धालु इस महीने में मांसाहार से परहेज़ करते हैं। कई लोग तो प्याज़ और लहसुन वाला भोजन भी नहीं खाते। 

Gaza में लड़ते-लड़ते थक गए नेतन्याहू के सैनिक? 43 IDF जवानों ने खुद लेने लगे अपनी जान, होश उड़ाने वाली खबर

गाजा की जंग में इजरायल बुरी तरह से फंस चुका है। भले ही पश्चिमी मीडिया में इजरायल की जीत या बढ़त जैसी दिखाई जा रही हो। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। दरअसल,ये जंग सीमा पर ही नहीं बल्कि इजरायल के भीतर भी लड़ी जा रही है। इस बार मोर्चा मन का है। उत्तरी इजरायल के सैन्य अड्डे पर एक और सैनिक ने खुद की जान दे दी। ये घटना ऐसे समय में सामने आई है जब पिछले हफ्ते गाजा से लौट रहे एक अन्य जवान ने भी खुद को मौत के गले लगा लिया था। ये एक आइसोलेटेड घटनाएं नहीं बल्कि गहरे मानसिक संकट का एक बड़ा संकेत है। रिपोर्ट्स के मुताबिक गाजा में अक्टूबर 2023 से युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक 43 इजरायली सैनिकों ने खुद का जीवन समाप्त कर लिया है।

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इज़राइल के हारेत्ज़ अख़बार ने सूत्रों के हवाले से बताया कि सबसे ताज़ा मामला गोलानी ब्रिगेड के एक सैनिक का है, जिसने इसी हफ़्ते एसडी यमन सैन्य अड्डे पर खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली।

सैनिक ने एक पूर्व जाँच के तहत सैन्य पुलिस द्वारा पूछताछ के बाद आत्महत्या कर ली। वह गाज़ा से एक रिफ्रेशर प्रशिक्षण सत्र के लिए लौटा ही था कि उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया। कुछ ही दिन पहले, इज़राइली समाचार साइट वाल्ला ने बताया कि गाजा और लेबनान में लंबे युद्ध के दौरान देखी गई भयावहता से महीनों तक मानसिक पीड़ा झेलने के बाद एक और सैनिक ने आत्महत्या कर ली। उसका आघात 7 अक्टूबर, 2023 को दो करीबी दोस्तों को खोने के साथ शुरू हुआ और “युद्ध के लंबे महीनों के दौरान उसकी निरंतर पीड़ा और युद्ध के मैदान में देखी गई भयावहता” के साथ और गहरा गया।

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सेना कथित तौर पर संकट की गंभीरता को छिपाने के लिए इनमें से कुछ सैनिकों को बिना किसी सैन्य अंतिम संस्कार या सार्वजनिक घोषणा के दफना रही है। इस बीच, हिब्रू भाषा के दैनिक समाचार पत्र मारिव की रिपोर्ट के अनुसार, सैनिकों के परिवारों के दबाव के बाद, इज़राइली संसद नेसेट एक आपातकालीन सत्र आयोजित करने की तैयारी में है। इन परिवारों ने गाजा में भारी संख्या में तैनात प्यूमा लड़ाकू वाहनों में गंभीर खामियों और सुरक्षा खामियों पर चिंता जताई है। इस वाहन की मुख्य समस्याओं में पीछे से आपातकालीन निकास का अभाव, सीमित परिधीय कैमरे और अन्य बख्तरबंद वाहनों की तुलना में कमज़ोर सुरक्षा शामिल है।

वोलोदिमीर, क्या आप मास्को पर अटैक कर सकते हो? हथियार हमसे ले लो…पुतिन से खीज ट्रंप अब जेलेंस्की को उकसा रहे हैं

इजरायल और ईरान के बीच की जंग से तो पूरी दुनिया वाकिफ है। जिसने कभी दुनियाभर के युद्धों को फटाफट खत्म करवाकर शांति दूत बनने की मंशा रखने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी जंग में उतरने पर मजबूर कर दिया था। ट्रंप के युद्ध रोको अभियान में टॉप प्रॉयरिटी लिस्ट में रूस और यूक्रेन के बीच की जंग थी। जिसे कभी उन्होंने 24 घंटे में ही रुकवाने वाला जोक भी मार दिया था। कभी पुतिन को अपना दोस्त बताने वाले ट्रंप अब लगता है रूसी राष्ट्रपति के बेरुखी भरे रवैये से नाराज चल रहे हैं। तभी तो कभी व्हाइट हाउस से बड़े बेआबरू होकर जेलेंस्की को रुकसत करने वाले ट्रंप अब रूस पर हमला करने के लिए उन्हें उकसाते नजर आ रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कथित तौर पर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की से पूछा कि यदि यूक्रेन को हथियार दिए जाएं तो क्या वह मास्को सहित रूसी क्षेत्र में अंदर तक हमला कर सकता है। 

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4 जुलाई को एक फ़ोन कॉल के दौरान, ट्रंप ने पूछा कि वोलोदिमीर, क्या आप मॉस्को पर हमला कर सकते हैं? क्या आप सेंट पीटर्सबर्ग पर भी हमला कर सकते हैं? कहा जाता है कि ज़ेलेंस्की ने जवाब दिया, बिल्कुल। अगर आप हमें हथियार दें तो हम कर सकते हैं। सूत्रों ने फ़ाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि ट्रंप इस विचार का समर्थन करते हुए दिखाई दिए और कहा कि यह रूसियों को दर्द का एहसास कराने और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर बातचीत के लिए दबाव बनाने की योजना का हिस्सा था। यह कॉल ट्रंप और पुतिन के बीच हुई फ़ोन कॉल के ठीक एक दिन बाद हुई थी। 

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अमेरिका ने चुपचाप यूक्रेन के साथ लंबी दूरी के हथियारों की लिस्ट कर दी शेयर
बातचीत के बाद, अमेरिकी अधिकारियों ने ज़ेलेंस्की को संभावित लंबी दूरी के हमलावर हथियारों की एक सूची दी, जिन्हें तीसरे पक्ष के माध्यम से आपूर्ति किया जा सकता है, जिससे नाटो देशों को अमेरिका की ओर से ये प्रणालियाँ प्रदान करने की अनुमति मिल जाएगी, और इस प्रकार प्रत्यक्ष सहायता पर कांग्रेस द्वारा लगाई गई रोक को दरकिनार किया जा सकेगा। यूक्रेन ने टॉमहॉक मिसाइलों का अनुरोध किया था, जिनकी मारक क्षमता 1,600 किलोमीटर है। हालाँकि, ट्रम्प और बाइडेन, दोनों ही प्रशासन कीव को लंबी दूरी के हथियार देने से कतरा रहे हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर यूक्रेन ने रूसी धरती पर इनका इस्तेमाल किया तो तनाव बढ़ सकता है।

MP में कांग्रेस विधायक के बेटे ने मार दी पुलिस कॉन्सटेबल को टक्कर, हत्या के प्रयास का मामला दर्ज

अलीराजपुर जिले में एक बस स्टैंड के पास देर रात गश्त के दौरान, कथित तौर पर कांग्रेस विधायक महेश पटेल के बेटे पुष्पराज पटेल द्वारा चलाई जा रही एक तेज़ रफ़्तार एसयूवी ने दो पुलिस कांस्टेबलों को घायल कर दिया। यह घटना शनिवार और रविवार की दरम्यानी रात को हुई जब दोनों कांस्टेबल ड्यूटी पर थे। अलीराजपुर के पुलिस अधीक्षक राजेश व्यास के अनुसार, वाहन तेज़ रफ़्तार से अधिकारियों के पास पहुँचा और पुलिस की मौजूदगी के बावजूद अपनी गति कम नहीं की। सीसीटीवी में कैद एक नाटकीय दृश्य में, एसयूवी एक बैरिकेड तोड़कर सीधे अधिकारियों की ओर मुड़ती हुई दिखाई दे रही है। एसपी व्यास ने बताया कि एक कांस्टेबल ने ड्राइवर को रुकने का इशारा किया, लेकिन एसयूवी तेज़ रफ़्तार से चलती रही, तेज़ी से बाईं ओर मुड़ी और सीधे पुलिसकर्मियों की ओर बढ़ी।

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कांस्टेबल रास्ते से कूदकर सीधी टक्कर से बच गए, लेकिन एक अधिकारी को कथित तौर पर चोटें आईं, इससे पहले कि गाड़ी एक बिजली के खंभे से टकराती। सोमवार को सोशल मीडिया पर सामने आई इस घटना का वीडियो वायरल हो गया है और लोगों में आक्रोश फैल गया है। अधिकारियों ने पुष्पराज पटेल के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 109 (हत्या का प्रयास) के तहत मामला दर्ज किया है। वह फिलहाल फरार है और पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू कर दिया है।

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पटेल का यह पहला मामला नहीं है जब वह कानून के शिकंजे में फंसा है। सितंबर 2024 में, एक युवती को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के एक अलग मामले में उसका नाम आया था। रिपोर्टों में दावा किया गया था कि पटेल 25 वर्षीय युवती को धमका रहा था और उस पर शादी का दबाव बना रहा था, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली। उस मामले की अभी भी जाँच चल रही है।

Golden Temple को बम से उड़ाने की धमकी, लगातार दूसरे दिन आया धमकी भरा ईमेल

अमृतसर के गोल्डन टेंपल को बम से उड़ाने की धमकी फिर से मिली है। धमकी भरा ईमेल लगातार दूसरे भी आया है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) को ईमेल के ज़रिए मिली बम की धमकी के बाद स्वर्ण मंदिर परिसर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। मंदिर परिसर में विस्फोटक रखे होने की चेतावनी वाले इस ईमेल के बाद एसजीपीसी अधिकारियों और पंजाब पुलिस दोनों ने तुरंत और समन्वित कार्रवाई शुरू कर दी है।

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धमकी भरे ईमेल में आरडीएक्स का ज़िक्र, तत्काल कार्रवाई का आदेश

एसजीपीसी के मुख्य सचिव कुलवंत सिंह मन्नान ने पुष्टि की कि धमकी भरे ईमेल में आरडीएक्स की मौजूदगी और पवित्र स्थल को संभावित नुकसान का ज़िक्र था। हालाँकि ईमेल में समय का स्पष्ट विवरण नहीं था, फिर भी हमले की संभावित तारीख के रूप में सोमवार का अस्पष्ट उल्लेख था। एसजीपीसी ने अधिकारियों को सूचित करने में ज़रा भी देर नहीं की। शिकायत दर्ज होने के तुरंत बाद अमृतसर के पुलिस आयुक्त और स्थानीय थाना प्रभारी (एसएचओ) ने दरगाह का दौरा किया। एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी को भी जानकारी दी गई और सुरक्षा स्थिति का आकलन करने के लिए एक उच्च-स्तरीय समीक्षा बैठक बुलाई गई। 

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मंदिर परिसर के आसपास सतर्कता बढ़ा दी गई है

मन्नान ने कहा कि हालाँकि यह ईमेल डर फैलाने के इरादे से भेजा गया एक झूठ हो सकता है, “हम कोई जोखिम नहीं उठा रहे हैं। पूरे मंदिर में खासकर परिक्रमा (परिक्रमा पथ) और गलियारा (आसपास की गलियों) के आसपास सुरक्षा गश्त बढ़ा दी गई है। सीसीटीवी निगरानी भी बढ़ा दी गई है और हालिया फुटेज की विस्तृत समीक्षा की जा रही है। दीर्घकालिक उपायों के बारे में, मन्नान ने कहा कि प्रमुख चौकियों पर सुरक्षा स्कैनर लगाने का काम चल रहा है और आने वाले दिनों में इसमें प्रगति होने की उम्मीद है।

Hijab Controversy: नर्सिंग कॉलेज के खिलाफ CM सिद्धारमैया लेंगे एक्शन? छात्र संगठन ने हिजाब प्रतिबंध को लेकर की ये अपील

जम्मू और कश्मीर छात्र संघ (जेकेएसए) ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से बेंगलुरु के एक नर्सिंग कॉलेज में कथित धार्मिक भेदभाव की घटना में तत्काल हस्तक्षेप करने की अपील की है। मुख्यमंत्री को लिखे एक पत्र में, जेकेएसए ने कहा कि श्री सौभाग्य ललिता कॉलेज ऑफ नर्सिंग में कश्मीरी छात्राओं को कक्षाओं में आने से रोक दिया गया और हिजाब या बुर्का पहनने पर उन्हें निष्कासित करने की धमकी दी गई। यह कॉलेज राजीव गांधी स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (आरजीयूएचएस) से संबद्ध है। एसोसिएशन ने पत्र में कहा कि इन कश्मीरी छात्राओं को व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया है, अपमानित किया गया है और शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार से वंचित किया गया है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने बुर्का या अबाया पहनने का विकल्प चुना है।

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जेकेएसए के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहामी ने दावा किया कि कॉलेज के अध्यक्ष ने एक कक्षा में प्रवेश किया और हिजाब पहने छात्राओं को बाहर जाने का आदेश दिया। पूछताछ करने पर, अध्यक्ष ने कथित तौर पर कहा, यह हमारा कॉलेज है; यहाँ केवल हमारे नियम लागू होते हैं और छात्राओं को चेतावनी दी कि अगर वे ऐसा नहीं करेंगी तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा और उनके रिकॉर्ड जब्त कर लिए जाएँगे। एसोसिएशन ने ज़ोर देकर कहा कि कोई भी क़ानून या विश्वविद्यालय नीति कक्षाओं में हिजाब या बुर्का पहनने पर प्रतिबंध नहीं लगाती है, और इस तरह के प्रतिबंध को लागू करना अवैध और भेदभावपूर्ण बताया। खुएहामी ने बताया कि प्रशासन ने अन्य छात्राओं की आपत्तियों का हवाला देते हुए इस कदम को उचित ठहराया और दावा किया देश में कहीं भी मेडिकल छात्रों के लिए हिजाब और पर्दा की अनुमति नहीं है। 

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जेकेएसए ने इन टिप्पणियों की निंदा करते हुए उन्हें बेतुका, इस्लामोफोबिक रूढ़िवादिता बताया और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 15 और 21ए का हवाला देते हुए इस घटना को संवैधानिक अधिकारों का खतरनाक उल्लंघन बताया। भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक क्षति पर प्रकाश डालते हुए, खुएहामी ने कहा कि यह समान रूप से हृदयविदारक और क्रोधित करने वाला है कि एक संघर्ष प्रभावित क्षेत्र के छात्रों को… अब इस तरह के अपमान और आघात का सामना करना पड़ रहा है।