22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की बैसरण घाटी में हुए आतंकी हमले की जांच में जो नये तथ्य सामने आये हैं उसने पाकिस्तान की आतंकी साजिशों का घिनौना चेहरा दुनिया के सामने उजागर कर दिया है। हम आपको बता दें कि सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े सूत्रों के अनुसार, इस हमले की पूरी साजिश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) ने मिलकर रची थी। इसे पाकिस्तान के राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व के इशारे पर अंजाम दिया गया। खास बात यह रही कि इस पूरी वारदात को अंजाम देने के लिए केवल पाकिस्तानी आतंकियों को इस्तेमाल किया गया, किसी भी स्थानीय (कश्मीरी) आतंकी को इस योजना में शामिल नहीं किया गया।
हम आपको बता दें कि मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि यह हमला आईएसआई और लश्कर का एक संयुक्त प्रोजेक्ट था, जैसा कि 2008 के मुंबई हमलों के दौरान देखने को मिला था। आईएसआई ने पाकिस्तान में बैठे लश्कर कमांडर साजिद जट्ट को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि इस हमले के लिए केवल विदेशी आतंकियों को लगाया जाए ताकि इसकी गोपनीयता बनी रहे और स्थानीय नेटवर्क के जरिए जानकारी लीक न हो सके। साजिद जट्ट के आदेश पर लश्कर के विदेशी आतंकियों को इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए जम्मू-कश्मीर में सक्रिय किया गया। इन आतंकियों को स्थानीय लोगों के साथ कम से कम संपर्क में रहने का आदेश था ताकि किसी तरह की सूचना बाहर न जा सके।
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बताया जा रहा है कि हमले का नेतृत्व पाकिस्तानी सेना के पूर्व स्पेशल फोर्स कमांडो रहे आतंकी सुलैमान ने किया। सुलैमान ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित लश्कर के मुरिदके कैंप में प्रशिक्षण लिया था। 2022 में वह एम-4 हथियार के साथ नियंत्रण रेखा पार कर जम्मू क्षेत्र में दाखिल हुआ था। उसके साथ दो अन्य पाकिस्तानी आतंकी भी इस हमले में शामिल थे। इसके अलावा, सैटेलाइट फोन के विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि हमले से करीब एक हफ्ते पहले, 15 अप्रैल को सुलैमान त्राल के जंगलों में सक्रिय था और बैसरण घाटी के आसपास ही मौजूद था।
हम आपको बता दें कि यह वही सुलैमान है जिसने अप्रैल 2023 में पुंछ में सेना के ट्रक पर हमला कर पांच जवानों की हत्या की थी। उसके बाद वह दो साल तक छिपा रहा और अब जाकर आईएसआई और लश्कर के इशारे पर दोबारा सक्रिय हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि जम्मू-कश्मीर पुलिस ने शुरू में पाकिस्तानी आतंकियों हाशिम मूसा और अली भाई के शामिल होने का संदेह जताया था, लेकिन जांच में अब तक केवल सुलैमान की भूमिका ही पुख्ता हुई है। स्थानीय आतंकी आदिल हुसैन ठोकर की संलिप्तता को भी जांच में खारिज कर दिया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “इस हमले में किसी भी स्थानीय आतंकी ने हिस्सा नहीं लिया, न ही उन्हें इसकी पूरी जानकारी दी गई थी।”
हम आपको बता दें कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने पिछले महीने इस मामले में पहलगाम के बटकूट गांव के परवेज अहमद जोथर और हिल पार्क के बशीर अहमद जोथर को गिरफ्तार किया था। लेकिन इनकी भूमिका सिर्फ आतंकियों को भोजन, आश्रय और मामूली सामान मुहैया कराने तक सीमित रही। इन्होंने खुद स्वीकार किया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि आतंकवादी बैसरण में पर्यटकों को निशाना बनाएंगे।
हम आपको बता दें कि बैसरण घाटी में हुआ यह हमला बेहद अप्रत्याशित था क्योंकि आतंकवादी आमतौर पर घाटी में पर्यटकों को निशाना नहीं बनाते। जहां हमला हुआ था वह इलाका खुला मैदान है, जहां सुरक्षाबलों की कोई उपस्थिति नहीं रहती। बारिश थमने के बाद घटना के तीन दिन पहले ही पर्यटक यहां आने लगे थे। हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर पर्यटन विकास निगम ने इस स्थान को तीन साल के लिए एक निजी ऑपरेटर को लीज पर दिया था, लेकिन किराया अभी पूरी तरह जमा नहीं हुआ था, इसलिए साइट को खोलने की सभी सरकारी औपचारिकताएं पूरी नहीं हुई थीं। बताया जा रहा है कि फिलहाल जम्मू-कश्मीर में 68 विदेशी और 3 स्थानीय आतंकी सक्रिय हैं। इस साल अब तक स्थानीय आतंकी संगठन में सिर्फ एक नई भर्ती हुई है।
बहरहाल, पहालगाम आतंकी हमला भारत के खिलाफ पाकिस्तान के युद्धस्तरीय छद्म-युद्ध और आतंक के नए तरीके को सामने लाता है। यह दिखाता है कि अब पाकिस्तान विदेशी आतंकियों के जरिए ऐसे हमले करवा रहा है जिनका स्थानीय लोगों से कोई लेना-देना नहीं हो। ऐसे में भारत के लिए जरूरी है कि अपनी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को और मजबूत कर आतंक के इस नेटवर्क को जड़ से खत्म करे।