जम्मू कश्मीर का आतंकवाद से रिश्ता कोई नया तो नहीं है, काफी पुराना है। लेकिन 22 अप्रैल को जो पहलगाम में हुआ उससे एक नया अध्याय एक नया चैप्टर इस लंबे इतिहास में जुड़ जाता है और वो है कि अब सिविलियन्स और टूरिस्ट तक को बख्शा नहीं जा रहा है। लोग काफी सरप्राइज हैं कि जिस बर्बरता से टूरिस्ट को इस बार टारगेट किया गया वो काफी नया है। कश्मीर घाटी में ऐसा संभवतः पहली बार हुआ है जब धर्म पूछ-पूछ कर गोली मारी गई। नाम पूछकर गोली मारी गई। कलमा नहीं पढ़ पाने पर गोलियों से छलनी कर दिया गया। जम्मू-कश्मीर में इसके पहले भी आतंकी हमले होते रहे हैं, लेकिन आम लोगों पर बहुत कम। अब तक आतंकवादी वहां सरकार, व्यवस्था, फौजियों और अर्द्ध-सैनिक बलों पर ही हमले करते रहे हैं। हालांकि कोई फौजी शहीद हो या सिपाही या कोई सरकारी कर्मचारी, देश के लोग उसी तरह भावुक होते हैं जैसे आज हैं, लेकिन यह सच है कि पर्यटकों पर पहली बार इतना वीभत्स हमला किया गया है। सोचिए क्या दहशत फैली होगी उस समय जब टूरिस्ट आराम से टूरिज्म कर रहे थे। हॉर्स राइडिंग कर रहे थे और भारत का जन्नत कहे जाने वाले प्रदेश का आनंद ले रहे थे।
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पाकिस्तान का हाईब्रेड वॉरफेयर
टू ब्लीड इंडिया बाई थाउजेंड कट्स दशकों से पाकिस्तान ने इसी सिद्धांत के हिस्से के रूप में भारत को आतंक का निर्यात किया है। कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान ने एक हाईब्रेड वारफेयर डेवलप किया है। लश्कर ए तैयबा या जैश ए मोहम्मद जैसे संगठनों ने किया है बल्कि ये एक लोकल टेरर अटैक है। इसे एक लोकल टेरर अटैक दिखाने की कोशिश हो रही है। टीआरएफ ने इसकी जिम्मेदारी लेने की बात की है। लेकिन इसे लोकल टेरर अटैक इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि अगर आपने जम्मू कश्मीर के इतिहास को पढ़ा है और लड़कर लेंगे आजादी वाले आतंकी भी टूरिस्ट को अमूमन अटैक करने से परहेज करते आए हैं।
आतंकियों ने टूरिस्टों को क्यों बनाया निशाना
जम्मू-कश्मीर में तीन दशकों से आतंकवादियों के खिलाफ अभियान चला रही सुरक्षा जेंसियां अब तक यह मानती रही थी कि आतंकवादी रिस्टों को निशाना नहीं बनाएंगे। लेकिन पहलगाम में आंतकियों ने टूरिस्टों पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया। अब तक माना जाता रहा कि टूरिस्टों को निशाना बनाने से लोकल लोगों को आर्थिक नुकसान होता है इसलिए आतंकवादी ऐसा कर अपना लोकल सपोर्ट खोना नहीं चाहते। लेकिन पहलगाम मैं क्या हुआ ? सुरक्षा एजेंसियों के अलग अलग अधिकारियों ने बात करने पर कई चीजें सामने आई। एक अधिकारी ने कहा कि आर्टिकल 370 हटने के बाद ने पाकिस्तान वहुत डेस्परेशन में है और नातंकियों को फंडिंग का तरीका भी बदला है। उन्होंने कहा कि जिस तरह नातंकियों के घुसपैठ की कोशिशें और नीजफायर का उल्लंघन करके आतंकियों को कवर फायर देने की घटनाएं हुई उससे पाकिस्तान की डेस्परेशन साफ है। उन्होंने कहा कि आतंक के आका द्वारा आतंकवादियों को इनकी ‘परफॉर्मेंस’ के हिसाव से फंड उपलब्ध कराया ना रहा है।
पर्यटकों को निशाना नहीं बनाते थे लोकल आतंकी
टूरिस्टों पर हमले ने साफ है कि हमले या किसी भी आतंकी वारदात को लेकर फैसला वे नहीं ले रहे जो कश्मीर में हैं, फैसला वहां से दूर बैठे लोग ले रहे हैं। साथ ही स्थानीय लोगों में आतंकवादियों का सपोर्ट काफी कम हुआ है, इसे लेकर भी वे स्थानीय लोगों को चेताना चाह रहे होंगे। अगर हम जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों के साथ गए युवाओं के आंकड़ें देखें तो ये साफ दिखता है। 2022 में 121 युवा अलग अलग आतंकी संगठनों के साथ गए। 2023 में ये नंवर 21 रह गया और पिछले साल यह घटकर 6 तक आ गया। उन्होंने कहा कि पिछले साल 2.35 करोड़ टूरिस्ट जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पहुंचा। अमरनाथ यात्रा पर पिछले साल 5 लाख से ज्यादा लोग गए। श्रीनगर का लाल चौक जहां पहले लोग जाने से घवराते थे वहां अव हर दिन साढ़े ग्यारह हजार से ज्यादा लोग जा रहे हैं। 90 के दशक में बंद हुए मूवी हॉल खुलने लगे हैं। श्रीनगर में दो मूवी हॉल और वारामूला में एक मूवी हॉल खुल गया। उन्होंने कहा कि ये आंकड़े ही आतंकवादियों और उनके आकाओं को डराते हैं।
टीआरएफ ने ली हमले की जिम्मेदारी
पहलगाम आतंकी हमले की जिम्मेदारी द द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है। हमले का मास्टरमाइंड सैफुल्लाह खालिद उर्फ सैफुल्लाह कसूरी है। जो लश्कर-ए-तैयबा का उप प्रमुख है और 26/11 मुबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का करीबी है। वह जमात-उद-दावा के लिए भी कोऑर्डिनेटर रह चुका है। ये संगठन 2019 में बना लश्कर और जैश जैसे संगठनों की रीब्रांडिंग है, ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचा जा सके। इसमे जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों और हथियारों की तस्करी में शामिल रहा है।