ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया कि सरकार पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) के मुद्दे को केवल ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में नहीं देख रही, बल्कि इसे अपनी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा बना रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह विपक्ष पर पलटवार करते हुए सवाल उठाया कि “पीओके पर कब्जा होने का अवसर किस सरकार ने दिया?”, उसने कांग्रेस को सीधा ऐतिहासिक जिम्मेदारी के घेरे में ला खड़ा किया। यह बयान न केवल अतीत की राजनीतिक गलतियों की याद दिलाता है, बल्कि भाजपा को राष्ट्रवाद की ठोस जमीन पर खड़ा करता है।
गृह मंत्री अमित शाह ने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए साफ कह दिया कि भाजपा सरकार पीओके को वापस लाएगी। यह बयान चुनावी दृष्टि से भाजपा के लिए बड़ा हथियार बन सकता है, क्योंकि यह जनता में यह संदेश देता है कि मौजूदा सरकार केवल कड़ी भाषा नहीं बोल रही, बल्कि निर्णायक कार्रवाई का भी इरादा रखती है। वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी पीओके के लोगों की ‘घर वापसी’ की उम्मीद जताकर एक भावनात्मक और रणनीतिक संदेश दिया। यह बयान बताता है कि सरकार इस मुद्दे को केवल सैन्य ऑपरेशन या सीमित राजनीतिक बहस तक नहीं रख रही, बल्कि इसे एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय उद्देश्य के रूप में स्थापित कर रही है।
तीनों बयानों को मिलाकर देखें तो भाजपा ने पीओके को लेकर विपक्ष को घेरने के साथ-साथ जनता के बीच एक बार फिर राष्ट्रवाद की लहर पैदा करने की कोशिश की है। यह रणनीति न केवल कांग्रेस पर ऐतिहासिक सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि भविष्य में पीओके को लेकर कोई ठोस कदम भाजपा की राजनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंडा का हिस्सा हो सकता है। जहां तक यह सवाल है कि क्या PoK के लोग भारत के साथ आना चाहते हैं तो आपको बता दें कि वहां इस समय आर्थिक विकास की स्थिति बहुत खराब है। बेरोज़गारी, आधारभूत ढाँचे की कमी, स्वास्थ्य और शिक्षा में गिरावट जैसे मुद्दे गंभीर हैं। वहां के संसाधनों का दोहन पाकिस्तान जबरदस्त तरीके से कर रहा है लेकिन स्थानीय जनता को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। वहां लोग मानते हैं कि भारत के जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों की तुलना में उन्हें पाकिस्तान सरकार से अपेक्षित सुविधाएँ नहीं मिलतीं। खुले तौर पर भारत के साथ मिलने की मांग बहुत कम लोग करते हैं, क्योंकि ऐसा कहना वहाँ बेहद ख़तरनाक हो सकता है क्योंकि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसियाँ इसे देशद्रोह मानती हैं। लेकिन स्थानीय नाराज़गी पाकिस्तान सरकार और फौज के खिलाफ़ बहुत गहरी है और इसमें कोई दो राय नहीं कि वहां के लोग भारत के साथ मिलना चाहते हैं।
इसके अलावा, PoK में एक वर्ग ऐसा भी है जो न तो पाकिस्तान में रहना चाहता है और न ही भारत से जुड़ना चाहता है। वे “आजाद कश्मीर” या स्वतंत्र राज्य की मांग करते हैं। इसके लिए वहाँ कई संगठन काम कर रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान इन्हें दबा देता है। पीओके में भारत के प्रति धारणा कई बार पाकिस्तान की प्रचार मशीनरी से भी प्रभावित होती है, जिसमें भारत को एक “दुश्मन देश” के रूप में दिखाया जाता है। हालाँकि, भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर में विकास परियोजनाओं, सड़कें, मेडिकल सुविधाएँ, टूरिज़्म और शिक्षा में सुधार की ख़बरें तेजी से वहाँ के लोगों तक पहुँच रही हैं। कई रिपोर्टों में बताया गया है कि लोग भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि वे बेहतर जीवन स्तर और स्वतंत्रता की उम्मीद करते हैं।
हम आपको बता दें कि पिछले एक-दो वर्षों में PoK में बड़े पैमाने पर पाकिस्तान सरकार और फौज के खिलाफ़ प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों ने महँगाई, बिजली संकट, टैक्स और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाई। कई नारे “पाकिस्तानी फौज बाहर जाओ” और “हमें हमारा हक दो” जैसे थे। यह दिखाता है कि पाकिस्तान के प्रति यहां असंतोष गहरा है। अधिकांश लोग अधिक आज़ादी, बेहतर शासन और आर्थिक अवसर चाहते हैं। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि पीओके में पाकिस्तान के विरोध में गहरी होती नाराजगी एक दिन ज्वालामुखी का रूप ले सकती है और ऐसे में भारत के लिए आगे की राह बेहद आसान हो जायेगी। बहरहाल, आइये आपको दिखाते हैं पीओके को लेकर प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और रक्षा मंत्री ने क्या कहा।