भारत की विदेश नीति और वैश्विक कूटनीतिक मोर्चे पर हाल के घटनाक्रमों को देखते हुए यह स्पष्ट होता है कि भारत आत्मनिर्भरता की राह पर दृढ़ता से आगे बढ़ रहा है, लेकिन साथ ही अपने पुराने मित्रों और सहयोगियों को भी साथ लेकर चलना चाहता है। यह दृष्टिकोण न केवल भारत की व्यावहारिक सोच को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि भारत आज वैश्विक परिदृश्य में किस प्रकार एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में उभर रहा है।
अमेरिका के साथ संतुलित संबंध
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था पर की गई तीखी टिप्पणियों और व्यापारिक टैरिफ को लेकर उठाए गए कदमों के बावजूद भारत ने संयम बरता है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह व्यापार और निवेश के मामले में अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा। यह परिपक्वता और धैर्यपूर्ण कूटनीति का संकेत है। भारत ने अनावश्यक टकराव से बचते हुए अमेरिका के साथ रिश्तों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम किया है, क्योंकि अमेरिका भारत के लिए व्यापार, रक्षा और प्रौद्योगिकी सहयोग का एक महत्वपूर्ण साझेदार है। भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि हमें नाराजगी इस बात की है कि जब व्यापार वार्ता चल रही है और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल भी भारत आने वाला है तब सार्वजनिक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में ऐसी टिप्पणियां नहीं की जानी चाहिए। सूत्रों का यह भी कहना है कि भारत विरोधी कदमों से देशवासियों के साथ ही अमेरिका में रह रहा भारतीय समुदाय भी नाखुश है। सूत्रों का कहना है कि भारत संयम बरतेगा और किसी तरह की बयानबाजी या शाब्दिक संघर्ष की बजाय संवाद के जरिये मुद्दों के हल पर जोर देगा।
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रूस के साथ पुराना रिश्ता कायम
रूस भारत का दशकों पुराना और विश्वसनीय मित्र रहा है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के भारी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ अपने रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को कमजोर नहीं होने दिया। तेल आयात और रक्षा उपकरणों की खरीद जारी रखना इस बात का संकेत है कि भारत अपने दीर्घकालिक हितों को प्राथमिकता देता है। हम आपको बता दें कि रूस न केवल रक्षा क्षेत्र में भारत का एक मजबूत साझेदार है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से भी भारत के लिए अहम है। भारतीय विदेश मंत्रालय के साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन में जब रक्षा क्षेत्र में संभावित अमेरिकी दबाव को लेकर सवाल पूछे गए तो MEA प्रवक्ता ने साफ किया कि भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं को राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक आकलनों के आधार पर तय करता है। इसी तरह तेल व्यापार और अमेरिकी प्रतिबंधों के संदर्भ में भी भारत ने अपने हितों की रक्षा के संकेत दिए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को वैश्विक बाज़ार की उपलब्धता और परिस्थितियों के आधार पर पूरा करता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और रूस के द्विपक्षीय संबंध मजबूत और समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा कि इन संबंधों को किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। देखा जाये तो यह वक्तव्य इस ओर इशारा करता है कि भारत, रूस के साथ अपने संबंधों को दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टिकोण से देखता है और अल्पकालिक वैश्विक राजनीतिक दबावों से प्रभावित नहीं होना चाहता।
कनाडा के साथ संबंध सुधार की दिशा में प्रयास
भारत और कनाडा के बीच हाल के वर्षों में कई मुद्दों को लेकर तनाव की स्थिति बनी थी, लेकिन अब दोनों देश संबंधों को सुधारने की दिशा में सकारात्मक कदम उठा रहे हैं। उच्चायुक्तों की नियुक्ति की तैयारी इस बात का प्रमाण है कि भारत विवादों के बजाय संवाद और सहयोग पर जोर देता है। यह रुख भारत की परिपक्व कूटनीति का एक और उदाहरण है। हम आपको बता दें कि कनाडा ने भारत में एक नई कूटनीतिक नियुक्ति की घोषणा की है, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव के बाद उठाया गया पहला कदम है। कनाडाई विदेश मंत्री अनिता आनंद ने घोषणा की कि राजनयिक जेफ डेविड मुंबई में काउंसल जनरल डीड्रा केली का स्थान लेंगे। यह नियुक्ति उन प्रयासों का हिस्सा मानी जा रही है, जिनका उद्देश्य भारत-कनाडा संबंधों को सामान्य करना है। सूत्रों के अनुसार, नए उच्चायुक्तों के नामों का आदान-प्रदान हो चुका है, जो भारत और कनाडा के प्रधानमंत्री की मुलाकात के दौरान बनी आपसी समझ का हिस्सा है। यह कदम संकेत देता है कि भारत और कनाडा दोनों ही द्विपक्षीय संबंधों में नई शुरुआत करना चाहते हैं।
हम आपको याद दिला दें कि भारत-कनाडा संबंधों में तनाव सितंबर 2023 में चरम पर पहुंच गया था, जब कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने भारतीय राजनयिकों पर कनाडा में खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों के खिलाफ हिंसा का समर्थन करने का आरोप लगाया था। इस विवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया था कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिक अधिकारियों को निष्कासित कर दिया था। करीब दो साल तक चले इस गतिरोध के बाद, कनाडा के नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के पदभार ग्रहण करने के साथ ही संबंधों में सुधार के संकेत मिले। जून 2025 में अल्बर्टा में आयोजित जी-7 शिखर सम्मेलन में कार्नी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया। इस मुलाकात में दोनों नेताओं ने नए राजदूतों की नियुक्ति और दूतावासों के नियमित कार्यों की बहाली पर सहमति जताई।
सूत्रों के अनुसार, भारत सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया को “कैलिब्रेटेड” यानी सावधानीपूर्वक चरणबद्ध कदम बताया है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अभी भी सतर्क है, क्योंकि कई मुद्दे, विशेष रूप से अलगाववादी उग्रवाद को लेकर भारत की चिंताएं, पूरी तरह सुलझी नहीं हैं। हम आपको बता दें कि भारत और कनाडा के रिश्तों में सुधार से न केवल पूर्ण कूटनीतिक स्टाफ की बहाली होगी बल्कि वीज़ा प्रोसेसिंग में भी तेजी आयेगी। यह खासतौर पर शिक्षा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों के लिए सकारात्मक कदम होगा, क्योंकि ये दोनों ही क्षेत्र भारत-कनाडा संबंधों की सबसे सक्रिय कड़ियां हैं।
देखा जाये तो भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह वैश्विक साझेदारियों से दूरी बनाना चाहता है। इसके विपरीत, भारत चाहता है कि वह अपने सहयोगियों के साथ मजबूत आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक संबंध बनाए रखे। “सबका साथ” की यह सोच भारत को एक संतुलित और विश्वसनीय साझेदार के रूप में स्थापित करती है।
बहरहाल, भारत की विदेश नीति इस सिद्धांत पर आधारित है कि राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं, लेकिन रिश्तों को बिगाड़े बिना उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाए। अमेरिका, रूस, कनाडा और अन्य देशों के साथ संबंधों में भारत का संतुलित दृष्टिकोण इस बात का प्रमाण है कि भारत अब वैश्विक शक्ति समीकरणों में एक अहम भूमिका निभा रहा है। संघर्ष और टकराव से बचते हुए संवाद और सहयोग पर जोर देना भारत की कूटनीति की सबसे बड़ी ताकत है। यह दृष्टिकोण न केवल वर्तमान अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों में भारत को मजबूती प्रदान करता है, बल्कि भविष्य में भी भारत को वैश्विक नेतृत्व की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर देता है।