Monday, October 20, 2025
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Prabhasakshi NewsRoom: भारत की जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार थमी, उत्तर भारत में सर्वाधिक बच्चे हो रहे, दक्षिण-पश्चिम में प्रजनन दर गिरी

भारत की जनसांख्यिकी में धीरे-धीरे एक बड़ा बदलाव दर्ज हो रहा है। नमूना पंजीकरण सर्वेक्षण (SRS) 2023 की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि देश की सकल जन्म दर (CBR) 2022 के 19.1 से घटकर 2023 में 18.4 पर आ गई है। इसी तरह, कुल प्रजनन दर (TFR) भी दो वर्षों तक 2.0 पर स्थिर रहने के बाद 2023 में पहली बार घटकर 1.9 रह गई। इसका सीधा अर्थ है कि औसतन एक महिला अब दो से भी कम बच्चों को जन्म दे रही है। रिपोर्ट यह तस्वीर भी साफ़ करती है कि उत्तर भारत अब भी अपेक्षाकृत अधिक प्रजनन दर बनाए हुए है, जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत प्रतिस्थापन स्तर (2.1) से बहुत नीचे पहुँच चुका है। रिपोर्ट के मुताबिक, जनसंख्या स्थिर रहने के लिए जिस दर की आवश्यकता है, देश का बड़ा हिस्सा अब उससे नीचे जा चुका है। इसके अलावा, लिंगानुपात के मामले में आंशिक सुधार तो दिखता है, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है। रिपोर्ट का एक और महत्वपूर्ण पहलू है बुजुर्ग आबादी का बढ़ना।
हम आपको बता दें कि भारत के महापंजीयक कार्यालय (Registrar General of India) द्वारा इस सप्ताह जारी रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक CBR यानि सर्वाधिक सकल जन्म दर बिहार में 25.8 और सबसे कम तमिलनाडु में 12 दर्ज की गयी है। बड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार ने सबसे अधिक TFR यानि कुल प्रजनन दर (2.8) दर्ज की, जबकि दिल्ली ने सबसे कम (1.2) दर्ज की।

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रिपोर्ट में बताया गया है कि 18 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने प्रतिस्थापन स्तर TFR 2.1 से कम TFR दर्ज की है। हम आपको बता दें कि प्रतिस्थापन स्तर TFR का अर्थ है– औसतन प्रत्येक महिला को इतने बच्चे जन्म देने चाहिए कि एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को प्रतिस्थापित कर सके। रिपोर्ट के मुताबिक देश की सकल मृत्यु दर (Crude Death Rate) 2023 में 6.4 रही, जो 2022 की तुलना में 0.4 अंक कम है। राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) में 2022 से 1 अंक की कमी आई है, जबकि 2020-22 और 2021-23 के बीच जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth) में 3 अंकों की वृद्धि हुई है।
हम आपको याद दिला दें कि महापंजीयक ने मई 2023 में चार वर्ष की देरी से 2021 के लिए नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS), नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) और मृत्यु के कारण का चिकित्सकीय प्रमाणीकरण (MCCD) की रिपोर्ट जारी की थी। इसके बाद जून में 2022 के लिए SRS, CRS और MCCD के आँकड़े जारी हुए थे। 2023 के SRS आँकड़ों में दिखा है कि देश में बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक आयु के लोग) का अनुपात एक वर्ष में 0.7 प्रतिशत अंक बढ़कर 9.7% हो गया है। सबसे अधिक बुजुर्ग आबादी केरल में (15%) है। असम (7.6%), दिल्ली (7.7%) और झारखंड (7.6%) ने सबसे कम बुजुर्ग अनुपात दर्ज किया।
TFR आँकड़ों से पता चला कि जिन राज्यों में TFR प्रतिस्थापन स्तर से अधिक है, वे सभी उत्तर भारत में हैं– बिहार (2.8), उत्तर प्रदेश (2.6), मध्य प्रदेश (2.4), राजस्थान (2.3) और छत्तीसगढ़ (2.2)। दूसरी ओर, सबसे कम TFR वाले राज्य और केंद्र शासित प्रदेश हैं– दिल्ली (1.2), पश्चिम बंगाल (1.3), तमिलनाडु (1.3), महाराष्ट्र (1.4), और तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब (1.5)।
2023 के SRS की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की शिशु मृत्यु दर 2023 में 25 रही, जो पिछले पाँच वर्षों में 7 अंकों की गिरावट दर्शाती है। इसके बावजूद देश में हर 40 में से एक शिशु एक वर्ष के भीतर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि 2023 में जन्म के समय लिंगानुपात (Sex Ratio at Birth – SRB) 917 रहा, यानी प्रत्येक 1,000 लड़कों पर 917 लड़कियाँ जन्मीं। आँकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ (974) और केरल (971) में सबसे अधिक SRB दर्ज किया गया, जबकि उत्तराखंड (868) में सबसे कम रहा। बिहार का SRB देश में सबसे कम स्तर पर रहा, हालाँकि यह 2023 में थोड़ा सुधरकर 897 तक पहुँचा। 2020 में यह 964 था, जो 2022 में घटकर 891 हो गया था। दिल्ली, महाराष्ट्र और हरियाणा उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रहे जहाँ 2023 में SRB 900 से कम रहा।
बहरहाल, जनसांख्यिकीय आँकड़े इस ओर संकेत करते हैं कि भारत की जनसंख्या अब धीमी गति से बढ़ रही है और आने वाले समय में यह स्थिर या घटती हुई भी दिख सकती है। जहाँ एक ओर यह विकास और संसाधन प्रबंधन के लिहाज़ से सकारात्मक प्रतीत हो सकता है, वहीं दूसरी ओर बुजुर्ग आबादी का दबाव, श्रमशक्ति में गिरावट और लिंगानुपात की विकृतियाँ नीति-निर्माताओं के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आएँगी। इसलिए यह समय है जब सरकारों को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की नीतियों को सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित न रखकर, बदलते सामाजिक ढाँचे के अनुसार पुनर्गठित करना होगा। भारत की जनसांख्यिकी अब मात्र संख्याओं की कहानी नहीं रही; यह भविष्य की अर्थव्यवस्था और समाज की दिशा तय करने वाला सबसे बड़ा संकेतक बन चुकी है।
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