मध्य प्रदेश के महू का एक परिवार, जिसका अतीत कभी सामाजिक सम्मान, धार्मिक नेतृत्व और नैतिक मूल्यों का प्रतीक हुआ करता था, आज संदेह, जांच और कानूनी कार्रवाई के घेरे में है। हम आपको बता दें कि महू के कायस्थ मोहल्ले में स्थित ‘मौलाना की बिल्डिंग’ कभी प्रतिष्ठा का केंद्र थी। यहां रहते थे मोहम्मद हम्माद सिद्दीकी, जो शहर के क़ाज़ी के रूप में सम्मानित धार्मिक पद संभालते थे। लेकिन समय ने करवट बदली और आज यही सिद्दीकी परिवार देश की एक बड़ी वित्तीय, शैक्षणिक और सुरक्षा जांच का विषय बन चुका है।
उनके बेटे जावेद अहमद सिद्दीकी, जो अल फलाह यूनिवर्सिटी के संस्थापक और चेयरमैन हैं, उनको दिल्ली पुलिस अपराध शाखा ने समन भेजा है। उन पर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) और नेशनल असेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन काउंसिल (NAAC) द्वारा उठाए गए धोखाधड़ी और अनियमितताओं के आरोपों की जांच चल रही है। उनके भाई हमूद अहमद सिद्दीकी पहले ही एक पुराने आर्थिक घोटाले में गिरफ्तार हो चुके हैं।
लेकिन मामला सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। 10 नवंबर को दिल्ली में लाल किले के पास कार विस्फोट ने पूरे घटनाक्रम को राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तर पर पहुँचा दिया है। विस्फोट में संदिग्ध डॉक्टर उमर नबी और डॉ. मुजम्मिल गनई अल फलाह मेडिकल रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े पाए गए। इसके बाद अल फलाह यूनिवर्सिटी और उससे जुड़े संस्थानों के विरुद्ध गहन जांच शुरू हुई। केंद्र सरकार ने अल फलाह यूनिवर्सिटी के सभी वित्तीय रिकॉर्ड्स की फॉरेंसिक ऑडिट कराने के निर्देश दिए थे जिसके बाद आज सुबह एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) ने दिल्ली और NCR में 25 ठिकानों पर छापे मारे।
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सूत्रों के अनुसार, अल फलाह ग्रुप से जुड़ी नौ शेल कंपनियाँ एक ही पते पर पंजीकृत मिलीं, जिनमें कॉमन मोबाइल नंबर, ईमेल और साइनिंग अथॉरिटी समान थी। इसके अलावा, बताया जा रहा है कि HR रिकॉर्ड्स गायब हैं और सैलरी बैंक से नहीं दी गई। साथ ही नकली इन्कॉरपोरेशन पैटर्न मिला तथा जांच में गंभीर गड़बड़ियाँ सामने आईं हैं। AIU ने भी अल फलाह यूनिवर्सिटी की सदस्यता रद्द कर दी और उसे तुरंत AIU का लोगो व नाम हटाने को कहा। यह कदम सिर्फ प्रशासनिक कार्रवाई नहीं, बल्कि संस्थान की विश्वसनीयता पर गहरी चोट है।
सवाल उठता है कि क्या एक धार्मिक रूप से सम्मानित परिवार धीरे-धीरे आर्थिक महत्वाकांक्षा और संस्थागत विस्तार की दौड़ में नैतिकता से भटक गया? क्या शिक्षा संस्थान सिर्फ डिग्री देने का स्थान रह गए हैं, या कभी-कभी इनका इस्तेमाल संदिग्ध गतिविधियों के लिए भी होता है? क्या अल फलाह सिर्फ एक विश्वविद्यालय था— या एक ऐसा नेटवर्क जिसे धन, प्रभाव और पहचान की तलाश ने नैतिक मर्यादाओं से दूर कर दिया?
सवाल यह भी है कि कैसे एक सम्मानित धार्मिक परिवार की कहानी ऐसे मोड़ पर पहुंच गई? पुलिस सूत्रों के अनुसार, 1990 के दशक में जब जावेद और हमूद ने अल फलाह इन्वेस्टमेंट कंपनी शुरू की, तो लोग इस पर आंख बंद कर भरोसा कर बैठे क्योंकि उस भरोसे की नींव उनके पिता के सम्मान में थी। स्थानीय आर्मी अधिकारी, इंजीनियर और दुकानदार तक अपने जीवन भर की पूंजी लेकर आ गए। लेकिन फिर बाजार ध्वस्त हुआ, निवेशक अपने पैसे मांगने लगे और यहीं से परिवार की मुश्किलें शुरू हुईं। आर्थिक संकट, आपसी विवाद और बढ़ता दबाव यह परिवार महू छोड़कर दिल्ली आ गया। मामले ठंडे पड़ गए, लेकिन पैसा देने का वादा अधूरा छूट गया। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार आज भी लाखों रुपये बकाया हैं, जो अब सिर्फ रकम नहीं बल्कि विश्वास के पतन का प्रतीक हैं।
देखा जाये तो समाज में जब कोई परिवार धार्मिक नेतृत्व और नैतिकता की मिसाल बनकर उभरता है, तो उसकी हर गलती सिर्फ व्यक्तिगत नहीं रहती, वह सामूहिक चेतना को भी प्रभावित करती है। इस पूरे प्रकरण का सबसे गंभीर पहलू यह है कि शिक्षा, धर्म और सामाजिक सेवा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों का इस्तेमाल अगर व्यक्तिगत लाभ, अनियमितता या संदिग्ध नेटवर्क के लिए किया जाए, तो उसका प्रभाव सिर्फ संस्थानों पर नहीं, भावी पीढ़ियों पर भी पड़ता है।
बहरहाल, आज जरूरत है कि देश में शिक्षा और धार्मिक संस्थाओं की साख को बचाए रखने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही और मजबूत नियामक व्यवस्था को बढ़ाया जाए। यह कहानी सिर्फ महू के एक परिवार की नहीं, बल्कि एक चेतावनी है— सम्मान मिलने में समय लगता है, पर खोने में एक घटना ही काफी होती है।

