बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस ने पिछले दिनों चीन यात्रा के दौरान भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से जुड़ा एक बयान दिया था, जिसने स्वाभाविक रूप से भारत में चिंता पैदा की। इसके तुरंत बाद ढाका स्थित ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ नामक एक कथित इस्लामी संगठन द्वारा ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का मानचित्र जारी किया गया, जिसमें भारत के कुछ हिस्सों को शामिल दिखाया गया है। इस घटनाक्रम ने क्षेत्रीय राजनीति और सुरक्षा को लेकर नए सवाल खड़े कर दिए हैं।
हालांकि बांग्लादेश सरकार ने स्पष्ट किया है कि ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ नामक संगठन के अस्तित्व के ठोस प्रमाण नहीं हैं और यह मानचित्र ढाका विश्वविद्यालय में आयोजित एक ऐतिहासिक प्रदर्शनी का हिस्सा मात्र था, फिर भी इस तरह की घटनाएं गंभीर चिंता का विषय हैं। देखा जाये तो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों की भौगोलिक संवेदनशीलता और वहां की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए किसी भी प्रकार की विस्तारवादी या अलगाववादी विचारधारा बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
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यह भी ध्यान देने योग्य है कि तुर्की के ‘टर्किश यूथ फेडरेशन’ जैसी विदेशी संस्थाओं के नाम इस विवाद से जुड़े हैं। यह दर्शाता है कि क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने के प्रयास केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि बाहरी ताकतों द्वारा भी हो सकते हैं। ऐसे में भारत को न केवल अपनी सीमा सुरक्षा को मजबूत करना होगा, बल्कि साइबर निगरानी और खुफिया सहयोग पर भी जोर देना होगा ताकि किसी भी प्रकार के दुष्प्रचार को समय रहते रोका जा सके।
हम आपको बता दें कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संसद में यह जानकारी दी है कि ढाका स्थित ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ नामक एक इस्लामी संगठन ने ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का एक मानचित्र जारी किया है, जिसमें भारत के कुछ हिस्सों को भी शामिल दिखाया गया है। यह संगठन कथित रूप से तुर्की के ‘टर्किश यूथ फेडरेशन’ नामक एनजीओ के समर्थन से सक्रिय है। ढाका विश्वविद्यालय में प्रदर्शित किये गये इस मानचित्र के बारे में बांग्लादेश सरकार के फैक्ट-चेक प्लेटफॉर्म ‘BanglaFact’ ने स्पष्ट किया है कि ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ नामक किसी संगठन के बांग्लादेश में सक्रिय होने के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। उनके अनुसार यह मानचित्र एक ऐतिहासिक प्रदर्शनी का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य प्राचीन बंगाल सल्तनत के दौर को दिखाना था। हम आपको बता दें कि यह प्रदर्शनी 14 अप्रैल 2025 को बांग्ला नववर्ष ‘पोहेला बोइशाख’ के अवसर पर ढाका विश्वविद्यालय में आयोजित की गई थी। आयोजकों ने यह भी स्पष्ट किया कि उनका किसी विदेशी राजनीतिक संगठन से कोई संबंध नहीं है।
जयशंकर ने संसद में जानकारी दी कि भारत सरकार बांग्लादेश से जुड़े हर मुद्दे पर राष्ट्रीय हितों के प्रति सजग है। उन्होंने कहा कि भारत ऐसे किसी भी घटनाक्रम पर कड़ी निगरानी रखता है, जिनका भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि हम आवश्यक कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। वैसे देखा जाये तो यह घटना दो स्तरों पर महत्वपूर्ण है— राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनयिक संबंधों के संदर्भ में।
पिछले एक साल से भारत और बांग्लादेश के संबंध तनावपूर्ण रहे हैं इसलिए इस तरह के विवाद दोनों देशों के बीच दरार को और बढ़ा सकते हैं। वैसे बांग्लादेश सरकार का त्वरित खंडन इस बात का संकेत है कि वह भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर गंभीर है। लेकिन भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह इस प्रकार की गतिविधियों पर लगातार निगरानी रखे।
दूसरी ओर, तुर्की के एनजीओ का नाम सामने आने से यह आशंका भी उत्पन्न होती है कि कुछ विदेशी संगठन दक्षिण एशिया में अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह क्षेत्रीय सहयोग और खुफिया साझेदारी को मजबूत बनाए, ताकि ऐसी कोशिशें विफल हों। देखा जाये तो मानचित्र जैसे प्रतीकों को सोशल मीडिया पर वायरल कर राजनीतिक उन्माद पैदा करना बहुत आसान हो गया है। यह घटना दर्शाती है कि भारत को साइबर निगरानी और गलत सूचना रोकने की रणनीतियों को और मजबूत करना होगा। बहरहाल, हालांकि ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ मानचित्र का मामला फिलहाल एक प्रदर्शनी तक सीमित प्रतीत होता है, लेकिन भारत के लिए यह एक चेतावनी भरा संकेत है।