भारत की तकनीकी यात्रा में यह सप्ताह मील का पत्थर साबित हुआ। सेमीकॉन इंडिया 2025 में जब आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की पहली मेड-इन-इंडिया व्यावसायिक चिप भेंट की, तो यह केवल एक उत्पाद का लोकार्पण नहीं था, बल्कि भारत के प्रौद्योगिकीय आत्मसम्मान और रणनीतिक आत्मनिर्भरता का उद्घोष था। हम आपको बता दें कि इसरो की सेमीकंडक्टर लैब में विकसित ‘विक्रम’ 32-बिट प्रोसेसर, रॉकेट प्रक्षेपण जैसी कठिन परिस्थितियों के लिए प्रमाणित किया जा चुका है। साथ ही गुजरात के साणंद में सीजी सेमी (CG Semi) द्वारा निर्मित QFP (क्वाड फ्लैट पैकेज) चिप घरेलू उपकरणों से लेकर ऑटोमोबाइल तक स्मार्ट ऑटोमेशन का आधार बनेगी। गुजरात के साणंद में स्थापित सीजी सेमी (CG Semi) के संयंत्र में निर्मित यह QFP चिप घरेलू उपकरणों से लेकर ऑटोमोबाइल तक में प्रयोग होगी। चाहे वॉशिंग मशीन का नियंत्रण हो या कार की स्टीयरिंग प्रणाली, यह सूक्ष्म नियंत्रक (microcontroller) स्मार्ट ऑटोमेशन का आधार बनेगा।
देखा जाये तो यह महज़ तकनीकी सफलता नहीं है, बल्कि 7,600 करोड़ रुपये के निवेश से बनी भारत की पहली OSAT सुविधा (Outsourced Semiconductor Assembly and Test) का उद्घोष भी है। जहाँ G1 फैक्ट्री रोज़ाना 5 लाख चिप्स बना रही है, वहीं नया G2 प्लांट 1.4 करोड़ यूनिट प्रतिदिन उत्पादन में सक्षम होगा। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अब वैश्विक आपूर्ति शृंखला में उपभोक्ता नहीं, बल्कि निर्माता के रूप में पहचान चाहता है।
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आज की दुनिया में सेमीकंडक्टर ही भू-राजनीति की नई मुद्रा हैं। अमेरिका-चीन-ताइवान के तनाव ने साफ कर दिया है कि जिसके पास चिप्स की क्षमता होगी, वही कल की दुनिया की दिशा तय करेगा। इस लिहाज़ से भारत का यह कदम उसे केवल आर्थिक शक्ति ही नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता भी देगा। भारत की इस सफलता को विश्व भी गंभीरता से ले रहा है। Applied Materials, ASML, Lam Research और Merck जैसी दिग्गज कंपनियों के प्रमुखों ने भारत की पहल की सराहना की है और निवेश का भरोसा जताया है। उद्योग जगत मानता है कि भारत अब “प्रतिभा और नवाचार की प्रयोगशाला” के रूप में उभर रहा है।
परंतु जश्न के बीच यह याद रखना होगा कि चुनौतियाँ विशाल हैं। सेमीकंडक्टर निर्माण सबसे पूंजी-गहन, कौशल-आधारित और नीति-निर्भर उद्योग है। इसमें स्थिरता, सतत अनुसंधान और दीर्घकालीन प्रतिबद्धता के बिना सफलता अधूरी रहेगी। सरकार ने अब तक 76,000 करोड़ रुपये के मिशन में से 62,900 करोड़ रुपये की मंज़ूरी दे दी है। लेकिन असली कसौटी होगी कि क्या भारत इस दौड़ में निरंतरता बनाए रख पाता है या नहीं।
हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने सेमीकॉन इंडिया 2025 उद्घाटन सत्र में कहा था, “वह दिन दूर नहीं जब भारत में बनी सबसे छोटी चिप दुनिया में सबसे बड़ा बदलाव लाएगी।” देखा जाये तो यह कथन केवल आशा नहीं, बल्कि चुनौती भी है क्योंकि इस कथन के पीछे पूरे राष्ट्र की आकांक्षाएँ और दुनिया की नज़रें टिकी हैं।
बहरहाल, भारत ने सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में पहला ऐतिहासिक कदम रख दिया है। अब प्रश्न यह नहीं है कि हम चिप बना सकते हैं या नहीं, प्रश्न यह है कि क्या हम इसे निरंतर नवाचार, निवेश और नीति के त्रिकोण से टिकाऊ वैश्विक नेतृत्व में बदल पाएंगे। वैसे हम आपको बता दें कि मोदी सरकार ने डिज़ाइन लिंक्ड इंसेंटिव योजना के तहत 23 डिज़ाइन परियोजनाओं को मंजूरी दी है, वहीं 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक के 10 सेमीकंडक्टर निर्माण प्रोजेक्ट्स को भी हरी झंडी दी गई है। ये प्रोजेक्ट गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में लगाए जा रहे हैं। साथ ही केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी है कि भारत सेमीकंडक्टर मिशन के दूसरे संस्करण में न केवल चिप विनिर्माताओं, बल्कि उनके उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले भागीदारों को भी शामिल किया जाएगा।