Wednesday, October 29, 2025
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Prabhasakshi NewsRoom: Muhammad Yunus ने फिर बढ़ाई India की टेंशन, Bangladesh में स्थापित होगा Pakistani ISI का सेल

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक संतुलन एक बार फिर बदलता दिखाई दे रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच रक्षा और खुफिया सहयोग तेजी से बढ़ रहा है, वहीं ढाका के अंतरिम प्रमुख मोहम्मद यूनुस के हालिया कदमों ने भारत की पूर्वोत्तर सीमा को लेकर कूटनीतिक तनाव को और गहरा दिया है। रिपोर्टों के मुताबिक पाकिस्तान ने ढाका स्थित अपने उच्चायोग में एक विशेष ISI सेल स्थापित किया है। यह निर्णय पाकिस्तान के संयुक्त सैन्य प्रमुख जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा की चार दिवसीय बांग्लादेश यात्रा के बाद लिया गया, जिनकी मुलाकात यूनुस और बांग्लादेश के शीर्ष सैन्य नेतृत्व से हुई।
इस मुलाकात में दोनों पक्षों ने संयुक्त खुफिया-साझाकरण ढांचे (Joint Intelligence Mechanism) की स्थापना पर सहमति जताई, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी और भारत की पूर्वी सीमा की निगरानी पर केंद्रित रहेगा। इसके तहत ISI अधिकारियों को ढाका उच्चायोग में तैनात करने की अनुमति दी गई है। साथ ही पाकिस्तान ने बांग्लादेश को JF-17 लड़ाकू विमान, फतह रॉकेट सिस्टम, और सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश की है। बदले में, ढाका ने पाकिस्तान के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, रक्षा समझौते और तकनीकी सहयोग को स्वीकृति दी है। यह सब उस समय हो रहा है जब शेख हसीना सरकार के पतन (अगस्त 2024) के बाद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की विदेश नीति भारत से दूर और इस्लामाबाद व बीजिंग के करीब जाती दिख रही है।

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इस तरह की भी रिपोर्टें हैं कि पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख के साथ मुलाकात के दौरान यूनुस ने जो पुस्तक ‘Art of Triumph’ भेंट की, उसकी आवरण पर ऐसा विकृत मानचित्र छपा था जिसमें भारत के असम और पूर्वोत्तर राज्यों को “बांग्लादेश का हिस्सा” दर्शाया गया था। यह घटना ढाका-इस्लामाबाद संबंधों में गर्मजोशी के बीच ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की विचारधारा को हवा देने वाली मानी जा रही है। यह वह विचारधारा है जिसमें कुछ कट्टरपंथी समूह भारत के असम, त्रिपुरा, मेघालय और बंगाल के हिस्सों को “ऐतिहासिक बंगाल भूमि” मानते हैं।
देखा जाये तो यूनुस का यह पहला विवाद नहीं है। अप्रैल 2025 में चीन यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर को “landlocked” कहकर दावा किया था कि “हम ही इस क्षेत्र के सागर के एकमात्र संरक्षक हैं” और यह चीन की अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए “स्वाभाविक मार्ग” हो सकता है। बाद में, उनके एक पूर्व सैन्य सलाहकार मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) फ़ज़लुर रहमान ने सुझाव दिया था कि “यदि भारत पाकिस्तान पर हमला करे, तो बांग्लादेश को चीन के साथ मिलकर भारत के पूर्वोत्तर पर कब्ज़ा करना चाहिए।” इससे पहले, यूनुस के सहयोगी नाहिदुल इस्लाम ने भी “ग्रेटर बांग्लादेश” का नक्शा साझा किया था, जिसमें असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्से शामिल थे।
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि यूनुस सरकार की बयानबाज़ी भारत के उत्तर-पूर्व को कूटनीतिक रूप से अस्थिर करने की एक संभावित रणनीति के रूप में उभर रही है, जबकि दूसरी ओर ढाका पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी सैन्य भागीदारी बढ़ा रहा है।
देखा जाये तो शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश की विदेश नीति में “भारत-केंद्रित” से “इस्लामाबाद-बीजिंग केंद्रित” झुकाव आया है। यूनुस शासन में पाकिस्तान और चीन दोनों ही ढाका को अपने सामरिक चक्र में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं। जहाँ पाकिस्तान सैन्य सहयोग के जरिए खुफिया और रक्षा प्रभाव बनाना चाहता है, वहीं चीन बंगाल की खाड़ी के बंदरगाहों के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुँच को मजबूत कर रहा है। यह गठजोड़ दक्षिण एशिया में एक नई धुरी का निर्माण कर रहा है— “इस्लामाबाद–ढाका–बीजिंग अक्ष”, जो भारत के चारों ओर रणनीतिक घेरेबंदी का संकेत देता है।
साथ ही यूनुस द्वारा “ग्रेटर बांग्लादेश” का संदर्भ देना केवल राजनीतिक बयान नहीं है। यह नरम भू-राजनीतिक दावे का प्रतीक है। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र पहले से ही जातीय और विद्रोही आंदोलनों से प्रभावित रहा है। यदि पाकिस्तान की ISI को बांग्लादेश में औपचारिक ठिकाना मिलता है, तो वह नए नेटवर्क और वित्तीय चैनलों के माध्यम से इन समूहों को सक्रिय कर सकता है। यह स्थिति भारत के लिए “दो मोर्चों” से अधिक एक अदृश्य पूर्वी मोर्चा तैयार कर सकती है, जहाँ युद्ध बंदूकों से नहीं, बल्कि सूचना, विचारधारा और प्रचार के ज़रिए लड़ा जाएगा।
हम आपको बता दें कि बंगाल की खाड़ी भारत की पूर्वी नौसैनिक कमान के लिए जीवनरेखा है। इस जलक्षेत्र में पाकिस्तान-बांग्लादेश सहयोग भारत की सागर नीति (SAGAR Doctrine) को कमजोर कर सकता है। यदि पाकिस्तान नौसैनिक सलाहकारों या तकनीकी विशेषज्ञों के नाम पर चिटगाँग या मोंगला बंदरगाहों तक पहुँच बनाता है, तो यह भारत के अंडमान-निकोबार कमान की निगरानी व्यवस्था को चुनौती देगा।
भारत को इस उभरती परिस्थिति में तीन-स्तरीय रणनीति अपनानी चाहिए। पहली- यूनुस शासन से संवाद बनाए रखते हुए बांग्लादेशी जनता, सेना और मीडिया में भारत-विरोधी नैरेटिव को संतुलित करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरा- पूर्वोत्तर राज्यों में इंटेलिजेंस-कोऑर्डिनेशन और बॉर्डर सर्विलांस को पुनर्गठित करना चाहिए विशेषकर BSF, RAW और IB के बीच डेटा-साझाकरण तंत्र को और मजबूत बनाना चाहिए। तीसरा- बंगाल की खाड़ी में BIMSTEC और QUAD देशों के साथ संयुक्त नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ाना चाहिए ताकि भारत अपनी पूर्वी सीमा को “भू-राजनीतिक शून्य” न बनने दे।
बहरहाल, बांग्लादेश में यूनुस शासन के तहत हो रहे ये बदलाव केवल ढाका की आंतरिक राजनीति नहीं हैं, वह दक्षिण एशिया की नई शक्ति-रेखाओं को परिभाषित कर रहे हैं। पाकिस्तान और चीन के साथ बांग्लादेश की बढ़ती निकटता से भारत को अब यह समझना होगा कि उसकी “पूर्व की सीमाएँ” भी उतनी ही संवेदनशील हैं जितनी पश्चिम की। यूनुस का “ग्रेटर बांग्लादेश” संदर्भ, पाकिस्तान के साथ रक्षा सहयोग, और चीन से सामरिक समीकरण— तीनों मिलकर भारत के लिए एक नया पूर्वी संकट तैयार कर रहे हैं। भारत को इस समय प्रतिक्रिया से अधिक पहल की आवश्यकता है ताकि वह दक्षिण एशिया में न केवल एक शक्ति बने, बल्कि स्थिरता का केंद्र भी बना रहे।
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