Saturday, August 2, 2025
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Prabhasakshi NewsRoom: Pakistan देखता रह गया, India ने Chenab River पर सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना के लिए International Tender जारी कर दिया

भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित करने के बाद अब चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट की सावलकोट जलविद्युत परियोजना को मंजूरी देकर पाकिस्तान को बड़ा झटका दिया है। इस परियोजना के लिए अंतरराष्ट्रीय निविदाएं आमंत्रित कर दी गई हैं। पाकिस्तान पहले ही सिंधु जल संधि को निलंबित किये जाने के बाद से चिंतित है और धमकी भरे बयान भी दे रहा है। पर भारत ने साफ संदेश दे दिया है कि वह अब पश्चिमी नदियों के जल का खुद अधिकतम उपयोग करेगा।
हम आपको बता दें कि 1960 की सिंधु जल संधि के तहत भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों पर पूर्ण अधिकार और चिनाब, झेलम और सिंधु (पश्चिमी नदियों) पर सीमित उपयोग का अधिकार दिया गया था। पाकिस्तान को इन पश्चिमी नदियों के जल पर प्राथमिक अधिकार प्राप्त था। वर्षों से पाकिस्तान इस संधि का उपयोग भारत के ऊर्जा और सिंचाई प्रोजेक्ट्स को रोकने के हथियार के रूप में करता रहा है। लेकिन अब भारत ने इस संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने अधिकारों का पूरी तरह उपयोग करेगा। चिनाब नदी पर प्रस्तावित सावलकाट परियोजना इसका बड़ा उदाहरण है।

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हम आपको बता दें कि भारत के इस कदम ने पाकिस्तान को गहरी चिंता में डाल दिया है। पाकिस्तान को डर है कि यदि भारत पश्चिमी नदियों के जल पर नियंत्रण बढ़ा देता है तो उसके सिंचाई और पेयजल स्रोतों पर सीधा असर पड़ेगा। इसी वजह से पाकिस्तान धमकी भरे बयान देता रहता है। लेकिन भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह परियोजना उसके वैधानिक अधिकारों के दायरे में है। अंतरराष्ट्रीय निविदाओं की प्रक्रिया शुरू करके भारत ने यह भी दर्शाया है कि वह किसी भी बाहरी दबाव में आने वाला नहीं है।
सावलकोट परियोजना क्यों है खास यदि इसकी बात करें तो आपको बता दें कि यह देश की सबसे बड़ी रन-ऑफ-द-रिवर जलविद्युत परियोजना होगी। इस परियोजना की लागत 22,704.8 करोड़ रुपये आंकी गई है। यह परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन जिले में चिनाब नदी पर बनाई जाएगी। इससे न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश की ऊर्जा जरूरतें पूरी होंगी। यह परियोजना पाकिस्तान को जल-नीति के मोर्चे पर एक स्पष्ट संदेश भी देगी।
यह परियोजना पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका क्यों है, यदि इसकी बात करें तो आपको बता दें कि भारत द्वारा पश्चिमी नदियों के जल का अधिक उपयोग करने से पाकिस्तान के सिंचाई तंत्र पर असर पड़ेगा। साथ ही यह कदम भारत की बदलती रणनीति को दर्शाता है कि वह अब जल को भी रणनीतिक साधन के रूप में उपयोग करने को तैयार है। इसके अलावा, चूंकि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में भारत विरोध का मुद्दा भुनाया जाता है। इसलिए यह परियोजना वहां की सरकार के लिए एक और चुनौती है।
हम आपको यह भी बता दें कि सावलकोट परियोजना को 1984 में पहली बार परिकल्पित किया गया था और 1985 में इसे एनएचपीसी (NHPC) को सौंपा गया। बाद में 1997 में यह परियोजना जम्मू-कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (JKSPDC) के अधीन कर दी गई। लगभग 430 करोड़ रुपये “सुविधाजनक अवसंरचना” पर खर्च करने के बावजूद मुख्य कार्य प्रारंभ नहीं हो सका था। इस परियोजना को बार-बार पाकिस्तान की आपत्तियों, पर्यावरणीय स्वीकृतियों, 13 प्रभावित गांवों के पुनर्वास व मुआवजा मुद्दों, सेना के ट्रांजिट कैंप के स्थानांतरण और वन भूमि से जुड़े कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 1996 में नॉर्वे के एक कंसोर्टियम की मदद से इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास किया, परन्तु वह सफल नहीं हो पाए। बाद में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी अपने पहले कार्यकाल में कई प्रयास किए, लेकिन कई बाधाओं के कारण परियोजना फिर से ठप हो गई।
इस बीच, रामबन के विधायक अर्जुन सिंह राजू ने इसे “ऐतिहासिक क्षण” करार देते हुए कहा कि यह परियोजना न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के लिए लाभकारी सिद्ध होगी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस परियोजना को राज्य और राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। हम आपको यह भी बता दें कि वन परामर्श समिति (Forest Advisory Committee) ने 847 हेक्टेयर वन भूमि के उपयोग को “सैद्धांतिक स्वीकृति” दी है, जिससे परियोजना के लिए एक बड़ी बाधा दूर हुई है। साथ ही, जल कर पर भी छूट मिल गई है, जिससे प्रक्रिया और तेज हो गई है।
बहरहाल, भारत का यह कदम पाकिस्तान के लिए केवल तकनीकी झटका नहीं बल्कि एक रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक दबाव भी है। लंबे समय तक पाकिस्तान की आपत्तियों और अंतरराष्ट्रीय अड़चनों में फंसी सावलकोट परियोजना अब जमीन पर उतरने को तैयार है। भारत का यह स्पष्ट संदेश है कि वह अपने वैधानिक अधिकारों के उपयोग में अब पीछे नहीं हटेगा। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगामी महीनों में निविदा प्रक्रिया, निर्माण कार्य और पाकिस्तान की संभावित प्रतिक्रियाएं इस परियोजना की गति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं।
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