गाज़ा में लगभग दो वर्षों से जारी युद्ध, लगातार हो रहे मानवीय संकट और अनिश्चित भविष्य की पृष्ठभूमि में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 20 सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की है। व्हाइट हाउस से जारी इस प्रस्ताव का उद्देश्य युद्धविराम स्थापित करना, हमास द्वारा पकड़े गए बंधकों की रिहाई सुनिश्चित करना और गाज़ा के भविष्य का प्रशासनिक खाका तय करना है। इसे ट्रंप ने “ऐतिहासिक दिन” बताते हुए मध्य-पूर्व शांति की दिशा में निर्णायक पहल करार दिया है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या यह वास्तव में शांति का नया द्वार खोलेगा या यह भी पूर्ववर्ती संघर्षविराम प्रयासों की तरह विफलता की ओर बढ़ेगा।
हम आपको बता दें कि ट्रंप की योजना का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है तत्काल युद्धविराम। इसके तहत यदि दोनों पक्ष सहमत होते हैं तो 72 घंटे के भीतर सभी इसराइली बंधकों की रिहाई होगी। इसके बदले इजराइल 250 आजीवन कारावास भुगत रहे कैदियों और 1,700 फिलिस्तीनियों को रिहा करेगा। इसके अलावा मारे गए बंधकों के शवों के बदले इजराइल 15-15 फिलिस्तीनियों के शव लौटाएगा।
ट्रंप की योजना में साफ कहा गया है कि गाज़ा में हमास का कोई प्रशासनिक या राजनीतिक भविष्य नहीं होगा। उसके हथियारबंद ढांचे को ध्वस्त कर दिया जाएगा और जो सदस्य हिंसा छोड़कर शांतिपूर्ण जीवन अपनाना चाहेंगे, उन्हें आम माफी दी जाएगी। गाज़ा की सुरक्षा की जिम्मेदारी एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल (ISF) के हाथों होगी, जो फिलिस्तीनी पुलिस को प्रशिक्षित करेगा। साथ ही, मानवीय सहायता बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं जैसे संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रिसेंट के माध्यम से पहुँचेगी। योजना के मुताबिक प्रशासनिक दृष्टि से गाज़ा का संचालन फिलिस्तीनी तकनीकी विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक समिति करेगी, जबकि पुनर्निर्माण और वित्तीय प्रबंधन की देखरेख “बोर्ड ऑफ पीस” नामक संस्था करेगी, जिसका नेतृत्व स्वयं ट्रंप और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर करेंगे।
देखा जाये तो ट्रंप के इस प्रस्ताव को कूटनीतिक पहल के आधार पर देखें तो कहा जा सकता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक अत्यंत साहसिक कदम उठाया है। अमेरिकी नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय शांति बल का विचार, गाज़ा को आतंक-मुक्त क्षेत्र बनाने की घोषणा और पुनर्निर्माण के लिए आर्थिक योजना, ये सब उनकी बड़ी उपलब्धियाँ कही जा सकती हैं। इससे वह न केवल अमेरिकी घरेलू राजनीति में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी शांति निर्माता की छवि गढ़ना चाहेंगे।
इसके अलावा, इस योजना में हमास को स्पष्ट विकल्प दिया गया है— या तो आत्मसमर्पण कर पुनर्निर्माण प्रक्रिया का हिस्सा बनें, या फिर अमेरिकी समर्थन से जारी इजराइली सैन्य कार्रवाई का सामना करें। यह कठोर लेकिन व्यावहारिक दबाव नीति ट्रंप की राजनीतिक शैली से मेल खाती है और संभवतः उनके समर्थकों के बीच इसे “कड़ा लेकिन न्यायपूर्ण” कदम माना जाएगा।
हालांकि, इस योजना में कई गंभीर विरोधाभास भी हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इजराइल वास्तव में फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) को गाज़ा के शासन में भूमिका देगा? प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनकी सरकार लंबे समय से फिलिस्तीनी राज्य की अवधारणा का विरोध करते आए हैं। योजना में जबकि स्पष्ट रूप से भविष्य में PA को शासन सौंपने की बात कही गई है। यह इजराइली राजनीति में गहरे मतभेद पैदा कर सकता है।
दूसरी चुनौती है हमास का रुख। संगठन ने दशकों से इजराइल को मान्यता नहीं दी है। उसके लिए आत्मसमर्पण और निरस्त्रीकरण केवल राजनीतिक पराजय ही नहीं, अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न होगा। ऐसे में यह संभावना बहुत कम है कि हमास बिना शर्त इस समझौते को स्वीकार करे। तीसरा मुद्दा है अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा बल की तैनाती। क्या यह बल वास्तव में गाज़ा की जटिल परिस्थितियों में शांति कायम रख पाएगा? अफगानिस्तान और इराक में अंतरराष्ट्रीय मिशनों की सीमित सफलता को देखते हुए इस पर संदेह बना रहेगा।
देखा जाये तो इतिहास गवाह है कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष में युद्धविराम और शांति योजनाएँ बार-बार बनीं और बार-बार टूटती रहीं। इस बार भी स्थायी शांति की संभावना तभी है जब तीन शर्तें पूरी हों। जैसे कि हमास की वास्तविक निरस्त्रीकरण की प्रतिबद्धता। साथ ही इजराइल की ओर से फिलिस्तीनी प्राधिकरण को स्वीकार्यता और गाज़ा में उसके लिए राजनीतिक जगह। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दीर्घकालिक और निष्पक्ष हस्तक्षेप। यदि इनमें से कोई भी शर्त अधूरी रह गई तो यह योजना भी केवल एक और असफल प्रयास बनकर रह जाएगी।
बहरहाल, डोनाल्ड ट्रंप की शांति योजना निस्संदेह एक साहसिक पहल है और यदि यह सफल होती है तो इसे उनकी सबसे बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि माना जाएगा। परंतु जमीनी हकीकत बताती है कि हमास और इसराइल दोनों के लिए इसमें ऐसे बिंदु हैं जिन्हें स्वीकारना आसान नहीं होगा। इसलिए इस योजना को आशावादी दृष्टि से देखने के साथ-साथ यथार्थवादी संदेह भी बनाए रखना होगा। संभव है कि यह पहल मध्य-पूर्व की राजनीति में नया अध्याय खोले, किंतु यह भी उतना ही संभव है कि यह प्रयास पुराने समझौतों की तरह इतिहास के पन्नों में “असफल प्रयोग” के रूप में दर्ज हो जाए।
हम आपको यह भी बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित गाज़ा के लिए 20 सूत्रीय शांति प्रस्ताव का स्वागत किया है। ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए मोदी ने कहा, ”हम राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप द्वारा गाज़ा संघर्ष को समाप्त करने की व्यापक योजना की घोषणा का स्वागत करते हैं। यह फिलिस्तीनी और इजराइली लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि व्यापक पश्चिम एशियाई क्षेत्र के लिए भी दीर्घकालिक और टिकाऊ शांति, सुरक्षा और विकास की एक व्यावहारिक राह प्रस्तुत करता है।”