अमेरिका चाहे जितना दबाव बना ले मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसके दबाव के आगे ना झुक रहे हैं ना ही भारत का प्रभाव बढ़ाने के लिए परिश्रम करते हुए थक रहे हैं। बीच बीच में वह अमेरिका को अपने तरीके से अप्रत्यक्ष जवाब भी दे ही देते हैं। ऐसा ही वाकया आज फिर हुआ। हम आपको बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच हाल के महीनों में व्यापारिक तनाव नई ऊँचाइयों पर पहुँच गया है। अमेरिका ने भारतीय निर्यातित उत्पादों पर भारी-भरकम टैरिफ थोपे हैं, जिससे न केवल भारतीय उद्योग जगत चिंतित हुआ बल्कि यह भी संकेत मिला कि आर्थिक सहयोग के मोर्चे पर रिश्ते उतने सहज नहीं हैं जितने रक्षा और कूटनीति के स्तर पर दिखाई देते हैं। ऐसे परिदृश्य में उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रदर्शनी-2025 (UPITS-2025) का आयोजन और उसमें रूस को “पार्टनर कंट्री” के रूप में शामिल करना केवल एक व्यापारिक कदम नहीं बल्कि एक ठोस रणनीतिक संदेश भी है।
हम आपको बता दें कि ग्रेटर नोएडा में आयोजित इस प्रदर्शनी का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और साफ कहा कि यह आयोजन भारत की दीर्घकालीन विकास रणनीति और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प से जुड़ा हुआ है। देखा जाये तो इस मेले में रूस का पार्टनर देश बनना महज़ संयोग नहीं है। यह एक स्पष्ट संकेत है कि भारत और रूस की साझेदारी रक्षा सौदों तक सीमित नहीं है, बल्कि व्यापार और निवेश में भी उतनी ही मज़बूत होती जा रही है।
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देखा जाये तो अमेरिका और पश्चिमी देशों के बढ़ते दबाव के बीच यह संदेश महत्वपूर्ण है कि भारत अपने रणनीतिक हितों को लेकर लचीला नहीं है। जब अमेरिका टैरिफ बढ़ाकर दबाव बनाने की कोशिश करता है, तो भारत रूस जैसे परंपरागत और भरोसेमंद साझेदार को आर्थिक मोर्चे पर भी प्राथमिकता देकर यह दिखाता है कि उसके पास विकल्प मौजूद हैं। यह एक तरह का जियो-इकोनॉमिक मैसेज है कि भारत अपनी नीतियों में किसी एक शक्ति-गुट पर निर्भर नहीं रहने वाला।
जहां तक प्रदर्शनी की विशेषताओं की बात है तो आपको बता दें कि यह व्यापार प्रदर्शनी एशिया की सबसे बड़ी व्यापारिक गतिविधियों में से एक मानी जा रही है। आँकड़े ही इसकी विशालता का प्रमाण हैं। हम आपको बता दें कि 2,400 से अधिक प्रदर्शक अपने उत्पादों और सेवाओं का प्रदर्शन कर रहे हैं। 1,25,000 बी2बी (बिज़नेस-टू-बिज़नेस) विज़िटर और 4,50,000 बी2सी (बिज़नेस-टू-कंज़्यूमर) विज़िटर इसमें शामिल हो रहे हैं। हाई-टेक निर्माण, एमएसएमई उत्पाद, कृषि आधारित उद्योग, आईटी समाधान और ‘मेक इन इंडिया’ से जुड़े सेक्टर यहाँ मुख्य आकर्षण हैं।
उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर इस ट्रेड शो से पड़ने वाले प्रभावों की बात करें तो आपको बता दें कि चूंकि यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि से लेकर उद्योग तक विविध आयामों से जुड़ी है। इसलिए इस प्रदर्शनी के कई सकारात्मक प्रभाव पड़ने वाले हैं। जैसे- प्रदर्शनी से यूपी के हस्तशिल्प, चमड़ा उद्योग, कृषि उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों को अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में नई पहचान मिलेगी। साथ ही राज्य के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम वैश्विक खरीदारों और निवेशकों से सीधे जुड़ पाएंगे। इससे उन्हें पूंजी, तकनीक और नए बाजार मिलेंगे। वहीं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का सीधा असर रोज़गार पर पड़ेगा। इसके अलावा, प्रदर्शनी में हुई साझेदारियों से नए उद्योग-धंधे खुलेंगे और युवाओं को अवसर मिलेंगे। साथ ही रूस सहित कई देशों की कंपनियों की भागीदारी यूपी को विनिर्माण और लॉजिस्टिक्स हब बनाने की दिशा में सहायक होगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत ने इस प्रदर्शनी के माध्यम से दुनिया को यह दिखा दिया है कि वह अपने व्यापारिक संबंधों में “विविधता” की नीति पर काम कर रहा है। यदि अमेरिका या कोई अन्य पश्चिमी शक्ति व्यापारिक दबाव बनाएगी, तो भारत वैकल्पिक साझेदारियों के जरिए संतुलन साध सकता है। प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि “विघटन हमें गुमराह नहीं करता, हम उसमें भी नए अवसर खोजते हैं” इस नीति का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब है। वैश्विक स्तर पर जब सप्लाई चेन अस्थिर हो रही है और व्यापारिक युद्ध नए रूप ले रहे हैं, तब भारत अपनी नीतियों में आत्मनिर्भरता और बहु-आयामी साझेदारियों दोनों को संतुलित कर आगे बढ़ रहा है।
देखा जाये तो उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रदर्शनी-2025 केवल एक व्यापारिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति का मंच भी है। रूस को साझेदार बनाकर भारत ने अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों को यह साफ संदेश दिया है कि वह अपनी नीतियों को किसी दबाव में ढालने वाला नहीं है। साथ ही, यह आयोजन उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर नई पहचान और मजबूती देगा। भविष्य में इस तरह की गतिविधियाँ भारत की व्यापारिक स्वतंत्रता और सामरिक संतुलन दोनों के लिए आवश्यक होंगी। यह केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की अर्थव्यवस्था और वैश्विक कूटनीतिक हैसियत को मज़बूत करने वाला कदम है। जहां तक प्रधानमंत्री के संबोधन की बात है तो उसमें खास बात यह रही कि उन्होंने कहा है कि भारत “चिप से लेकर जहाज” तक सब कुछ देश में ही बनाने के संकल्प पर काम कर रहा है। यह संदेश भारत के उत्पादन आधार को व्यापक बनाने और गुणवत्ता सुधार की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।