Saturday, December 27, 2025
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S-400 Air Defence System की आखिरी खेप भी भारत को सौंपेगा Russia, भविष्य में S-500 और Su-57 Fighter Jet की खरीद भी संभव

भारत की रक्षा ज़रूरतें केवल वर्तमान सुरक्षा चुनौतियों से निपटने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आने वाले दशकों की सामरिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर तय की जाती हैं। इसी संदर्भ में रूस की ओर से भारत को मिल रहे आधुनिक हथियार, विशेषकर एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और भविष्य में संभावित एस-500 तथा सु-57 लड़ाकू विमानों का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है।
हम आपको याद दिला दें कि 2018 में भारत और रूस के बीच हुए 5.5 अरब डॉलर के समझौते के तहत पाँच एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा प्रणालियाँ खरीदी गईं। अब तक चार प्रणालियाँ भारत को मिल चुकी हैं और अंतिम आपूर्ति 2026 तक पूरी हो जाएगी। यह प्रणाली लंबी दूरी तक दुश्मन के लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। इसका महत्व मई 2025 में हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान स्पष्ट रूप से सामने आया था जब भारतीय वायु रक्षा बलों ने पाकिस्तान से दागी गई मिसाइलों को सफलतापूर्वक इंटरसेप्ट किया था। इससे यह प्रमाणित हुआ कि भारत का वायु रक्षा कवच अब कहीं अधिक मजबूत और विश्वसनीय हो चुका है। यदि आने वाले वर्षों में अतिरिक्त एस-400 या और भी उन्नत एस-500 भारत को प्राप्त होते हैं, तो चीन और पाकिस्तान दोनों के खिलाफ भारत की सामरिक बढ़त निर्णायक हो जाएगी।
हम आपको बता दें कि भारत और रूस का रक्षा सहयोग कोई नया नहीं है। टैंक से लेकर विमानवाहक पोत तक, और लड़ाकू विमान से लेकर हेलीकॉप्टर तक, भारत की सेना के ढांचे में रूसी तकनीक गहराई से जुड़ी हुई है। टी-90 टैंक, मिग-29 लड़ाकू विमान, कामोव हेलीकॉप्टर, ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल और हाल में बनी एके-203 राइफलें—ये सब रूस-भारत की गहरी साझेदारी के प्रतीक हैं। भारत ने सोवियत काल से लेकर आज तक, रूस पर न केवल हथियारों के लिए भरोसा किया है, बल्कि तकनीकी सहयोग और संयुक्त उत्पादन के लिए भी। यही कारण है कि भारत ने पश्चिमी दबावों को नज़रअंदाज़ करते हुए एस-400 सौदे को जारी रखा।
अब चर्चा रूस के पाँचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान सु-57 की है। रूस ने भारत को इसकी आपूर्ति और स्थानीय उत्पादन का प्रस्ताव दिया है। यदि यह प्रस्ताव वास्तविकता में बदलता है, तो भारतीय वायुसेना को न केवल स्टेल्थ और सुपरमैनेवरेबिलिटी जैसी अत्याधुनिक क्षमताएँ मिलेंगी, बल्कि स्वदेशी उत्पादन से तकनीकी आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। हम आपको बता दें कि भारत ने पहले अमेरिका से एफ-35 जैसे स्टेल्थ फाइटर हासिल करने की कोशिश की थी, लेकिन राजनीतिक व सामरिक कारणों से यह संभव नहीं हो पाया। ऐसे में सु-57 भारत की जरूरतों को पूरा करने का एक ठोस विकल्प बन सकता है।
हम आपको यह भी बता दें कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने संतुलन की नीति अपनाते हुए रूस से न केवल सस्ते दामों पर ऊर्जा खरीदी, बल्कि हथियारों की खरीद को भी जारी रखा। यही कारण है कि रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने खुले तौर पर भारत की प्रशंसा की कि उसने “पश्चिमी दबाव का विरोध किया।” देखा जाये तो यह रुख भारत की सामरिक स्वायत्तता को दर्शाता है। भारत न तो किसी एक ध्रुव की ओर पूरी तरह झुकना चाहता है, न ही किसी गठबंधन का अंधानुकरण करना। अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों से भी भारत हथियार खरीद रहा है, जैसे राफेल विमान, हेरोन ड्रोन और बाराक-8 मिसाइल प्रणाली। लेकिन रूस अभी भी सबसे बड़ा रक्षा साझेदार बना हुआ है।
हम आपको बता दें कि रूस से भविष्य में भारत को जिन हथियारों की आपूर्ति संभावित है, उनमें एस-500 मिसाइल प्रणाली और सु-57 फाइटर जेट्स सबसे अहम हैं। इसके अलावा, ब्रह्मोस मिसाइल का नया हाइपरसोनिक संस्करण और एडवांस सबमरीन तकनीक पर भी दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है। वहीं दूसरी ओर, भारत फ्रांस से 26 राफेल-एम नौसैनिक लड़ाकू विमान खरीदने जा रहा है, जो विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत पर तैनात होंगे। अमेरिका से प्रीडेटर-बी ड्रोन का सौदा अंतिम चरण में है। इज़राइल से और अधिक हेरोन-टीपी ड्रोन तथा आयरन डोम जैसी तकनीकों पर सहयोग की संभावनाएँ बढ़ रही हैं।
कुल मिलाकर देखें तो भारत की रक्षा रणनीति आज “बहु-स्रोत” नीति पर आधारित है, लेकिन इसमें रूस की भूमिका अनिवार्य और केंद्रीय बनी हुई है। एस-400 प्रणाली पहले ही भारत की वायु रक्षा को नई ऊँचाई दे चुकी है। यदि सु-57 और एस-500 जैसी प्रणालियाँ भी भारत की झोली में आती हैं, तो आने वाले दशक में भारतीय सैन्य शक्ति एशिया में न केवल संतुलन बनाए रखेगी, बल्कि एक निर्णायक बढ़त भी स्थापित करेगी। यह स्थिति केवल हथियारों की खरीद तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की रणनीतिक स्वायत्तता, सामरिक गहराई और वैश्विक शक्ति संतुलन में उसकी भूमिका को भी परिभाषित करती है।
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