Saturday, December 27, 2025
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SBI को कोर्ट में मिली हार, ग्राहक को मिलेगा मुआवजा: हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

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भारतीय स्टेट बैंक (SBI), जो देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक है, को एक ग्राहक के खिलाफ मुकदमे में हार का सामना करना पड़ा। इस मामले में बैंक की लापरवाही और गलत प्रक्रियाओं के कारण न केवल कानूनी शिकस्त मिली, बल्कि आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ा।

उड़ीसा हाईकोर्ट ने बैंक के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए पीड़ित उपभोक्ता को ₹1 लाख का मुआवजा देने और उनकी गिरवी रखी संपत्ति के दस्तावेज लौटाने का आदेश दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि लोन चुकाने के बावजूद मूल दस्तावेजों को रोकना अनुचित और अन्यायपूर्ण है।

SBI से लिया गया था ऋण, पर बैंक ने नहीं लौटाए दस्तावेज

क्या है पूरा मामला?

इस विवाद की जड़ें 1986 तक जाती हैं, जब कटक निवासी 70 वर्षीय सुजीत कुमार घोष ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की कटक ब्रांच से ₹72,000 का लोन लिया था। लेकिन किसी कारणवश वे समय पर लोन चुका नहीं पाए, जिससे उनका अकाउंट NPA (Non-Performing Asset) घोषित कर दिया गया।

  • बैंक ने इस मामले को स्थानीय अदालत में ले लिया।
  • उपभोक्ता ने बाद में वन टाइम सेटलमेंट स्कीम (OTS) के तहत ₹1,06,000 का भुगतान कर दिया।
  • SBI ने उन्हें NOC (No Objection Certificate) भी दे दिया।
  • लेकिन बैंक ने गिरवी रखी संपत्ति के कागजात वापस नहीं किए।

ग्राहक बार-बार बैंक से अपनी टाइटल डीड (संपत्ति के मूल दस्तावेज) मांगता रहा, लेकिन SBI ने उसे नजरअंदाज कर दिया।

लोन चुकाने के बावजूद SBI ने नहीं लौटाए कागजात

वन टाइम सेटलमेंट (OTS) के तहत सभी बकाया राशि चुका देने के बावजूद, भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने गिरवी रखे कागजात वापस करने से इनकार कर दिया।

बैंक के इस व्यवहार से परेशान होकर सुजीत कुमार घोष को न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

  • उन्होंने पहले बैंक से कई बार अनुरोध किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
  • जब कोई समाधान नहीं मिला, तो उन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दायर की।
  • SBI ने अदालत में तर्क दिया कि उपभोक्ता का खाता पहले NPA हो चुका था, इसलिए दस्तावेज वापस नहीं किए जा सकते।

हाई कोर्ट का सख्त फैसला: SBI को लगेगा झटका

जब यह मामला उड़ीसा हाई कोर्ट के जस्टिस एस.के. पाणिग्रही की बेंच में पहुंचा, तो कोर्ट ने SBI को कड़ी फटकार लगाई।

हाई कोर्ट का बड़ा आदेश:

✔ SBI को ₹1 लाख मुआवजा पीड़ित उपभोक्ता को देना होगा।
✔ सभी मूल दस्तावेज 30 दिन के भीतर वापस करने होंगे।
✔ बैंक के इस व्यवहार को अनुचित और अन्यायपूर्ण बताया गया।

कोर्ट ने कहा कि लोन चुकाने के बाद मुकदमे की लंबित स्थिति के कारण ग्राहक के टाइटल डीड को रोका नहीं जा सकता। यह ग्राहक के अधिकारों का उल्लंघन है।

बैंकिंग सेक्टर के लिए महत्वपूर्ण मामला

यह केस सिर्फ सुजीत कुमार घोष के लिए नहीं, बल्कि सभी बैंक ग्राहकों के लिए एक मिसाल बन सकता है।

क्या सिखाता है यह मामला?

✅ ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा: लोन चुकाने के बाद बैंक किसी भी ग्राहक के दस्तावेज रोक नहीं सकता।
✅ बैंकों की जिम्मेदारी: ग्राहकों के प्रति सही व्यवहार जरूरी है, अन्यथा कानूनी कार्रवाई हो सकती है।
✅ वन टाइम सेटलमेंट (OTS) का महत्व: अगर किसी ग्राहक ने बैंक से वन टाइम सेटलमेंट किया है, तो बैंक को उसकी पूरी प्रक्रिया का पालन करना होगा।

इस फैसले से भविष्य में SBI समेत अन्य बैंकों को अपने ग्राहकों के साथ बेहतर तरीके से व्यवहार करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

आगे क्या होगा?

SBI को क्या करना होगा?

  • 30 दिनों के भीतर मुआवजा और दस्तावेज लौटाने होंगे।
  • भविष्य में ऐसी लापरवाहियों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने होंगे।

ग्राहकों के लिए सुझाव

✔ अगर आपने लोन चुकता कर दिया है, तो अपने दस्तावेज तुरंत बैंक से प्राप्त करें।
✔ अगर बैंक दस्तावेज लौटाने में देरी करता है, तो पहले लिखित अनुरोध करें।
✔ अगर बैंक फिर भी दस्तावेज नहीं लौटाता, तो उपभोक्ता अदालत या हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।

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