Thursday, July 31, 2025
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Shaurya Path: जो लोग पूछते हैं कितने देशों ने भारत का साथ दिया? उन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जवाब दे दिया है

विपक्ष ने संसद में यह सवाल उठाया था कि पहलगाम हमले और उसके बाद हुए ऑपरेशन सिंदूर के समय कितने देशों ने भारत का साथ दिया। सरकार ने इस पर जवाब भी दे दिया था, लेकिन अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की सर्वसम्मत रिपोर्ट ने यह सवाल अपने आप ही बेहद स्पष्ट तरीके से उत्तरित कर दिया है। हम आपको बता दें कि UNSC की 1267 समिति की रिपोर्ट में पहली बार टीआरएफ (The Resistance Front) का नाम पहलगाम हमले में शामिल करने पर सभी सदस्य देशों की सहमति यह साबित करती है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई केवल उसका निजी संघर्ष नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया की साझा लड़ाई है। यह सर्वसम्मति पाकिस्तान के आतंकवाद को शह देने वाले रवैये पर एक वैश्विक मुहर है और यह दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय अब पाकिस्तान की दोहरी नीति से पूरी तरह वाकिफ हो चुका है।
इस रिपोर्ट ने न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत को सिद्ध किया है, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि चाहे आतंकवादियों को पालने वाला देश कितना भी छद्म रूप धारण करे, सच्चाई अंततः सामने आती ही है। UNSC का यह निर्णय भारत के लिए एक बड़ी रणनीतिक और नैतिक जीत है। देखा जाये तो संदेश साफ है- आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में पूरी दुनिया भारत के साथ खड़ी है और पाकिस्तान का झूठ अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनकाब हो चुका है।

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हम आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की 1267 प्रतिबंध समिति की रिपोर्ट सर्वसम्मति से अपनाई जाती है, जिसका अर्थ है कि सभी स्थायी और अस्थायी सदस्य देशों की सहमति से यह दस्तावेज़ पारित हुआ। पाकिस्तान ने पहले इस रिपोर्ट से TRF का नाम हटवाने की भरपूर कोशिश की थी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने संसद में दावा किया था कि उन्होंने UNSC पर दबाव डालकर टीआरएफ का नाम आधिकारिक बयान से हटवाया। हालांकि, निगरानी दल की विस्तृत रिपोर्ट में TRF को शामिल कर संयुक्त राष्ट्र ने पाकिस्तान के इस दबाव को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया।
यह रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले को TRF ने अंजाम दिया था और यह हमला लश्कर-ए-तैयबा के समर्थन के बिना संभव नहीं था। हम आपको बता दें कि अमेरिका पहले ही TRF को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि पहलगाम हमले को पांच आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। इसमें कहा गया है, ‘‘टीआरएफ ने इस हमले की जिम्मेदारी उसी दिन ली और साथ ही घटनास्थल की एक तस्वीर भी प्रकाशित की थी।’’ रिपोर्ट के मुताबिक, एक सदस्य देश ने कहा है कि यह हमला लश्कर-ए-तैयबा के समर्थन के बिना संभव नहीं था और टीआरएफ तथा लश्कर के बीच संबंध हैं।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘एक अन्य सदस्य देश ने कहा कि हमला टीआरएफ ने किया था जो लश्कर का ही दूसरा नाम है। एक सदस्य देश ने इन दावों को खारिज किया और कहा कि लश्कर निष्क्रिय हो चुका है।’’ ऐसा प्रतीत होता है कि जिस सदस्य देश ने दावा किया है कि लश्कर-ए-तैयबा निष्क्रिय हो चुका है, वह मुख्यतः पाकिस्तान है। हम आपको बता दें कि यह रिपोर्ट 2019 के बाद पहली बार लश्कर और पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का उल्लेख करती है।
देखा जाये तो निगरानी दल की रिपोर्ट में टीआरएफ का नाम हटाने के पाकिस्तान के प्रयासों के बावजूद उसका जिक्र किया जाना जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की अकाट्य संलिप्तता को उजागर करता है। साथ ही इससे संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद विरोधी मोर्चे पर भारत की विश्वसनीयता भी सिद्ध होती है। हम आपको यह भी याद दिला दें कि पहलगाम हमले के बाद 25 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक बयान जारी कर कहा था कि ऐसे घृणित आतंकवादी कृत्य के जिम्मेदार अपराधियों, षडयंत्रकर्ताओं, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को न्याय के कटघरे में लाना जरूरी है। हालांकि, पाकिस्तान के दबाव में उस बयान में टीआरएफ का नाम शामिल नहीं किया गया था।
देखा जाये तो पाकिस्तान लंबे समय से अपने आतंकी संगठनों को “धर्मनिरपेक्ष” और “स्थानीय” नामों में ढालकर अंतरराष्ट्रीय दबाव से बचने की कोशिश करता रहा है। TRF और पीपल्स अगेंस्ट फासिस्ट फ्रंट (PAFF) जैसे संगठन दरअसल लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की ही शाखाएँ हैं, जिन्हें पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में “स्थानीय प्रतिरोध” के रूप में पेश करना चाहता है। मगर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि यह रणनीति अब कारगर नहीं रही है। TRF को लेकर पाकिस्तान के झूठ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नकार दिया गया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पाकिस्तान का यह दावा कि “लश्कर-ए-तैयबा निष्क्रिय हो चुका है”, पूरी तरह भ्रामक है।
हम आपको बता दें कि भारत ने हाल के वर्षों में आतंकवाद के खिलाफ एक बहुआयामी रणनीति अपनाई है। इसके तहत भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका सहित विभिन्न देशों में पाकिस्तान को आतंकवाद का पोषक बताने में सफलता पाई। साथ ही FATF (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाले जाने का बड़ा श्रेय भारत की सक्रिय कूटनीति को जाता है। साथ ही पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक और हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे कदमों ने यह संदेश दिया कि भारत अब आतंकवादियों और उनके आकाओं के खिलाफ सीमापार कार्रवाई करने में सक्षम और इच्छुक है। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने और स्थानीय भर्ती को रोकने के लिए तकनीक-आधारित निगरानी और जमीनी स्तर पर पुलिस-सेना का समन्वय बढ़ाया गया है।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप आतंकवादी हमलों की संख्या और उनकी क्षमता में गिरावट आई है। विशेष रूप से लश्कर और जैश जैसे संगठनों की “फील्ड कमांडर” स्तर की संरचना को भारतीय सुरक्षा बलों ने लगातार निशाना बनाकर कमजोर कर दिया है।
हम आपको यह भी बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान की पोल खुली है। पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाएँ पाकिस्तान की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर रूप से नुकसान पहुँचा चुकी हैं। जैसे- हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे कुख्यात आतंकवादियों पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाया जाना, अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा पाकिस्तान को आतंकी संगठनों का पनाहगाह बताना। FATF की ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान का लगभग चार वर्षों तक रहना। साथ ही अफगानिस्तान में तालिबान और अन्य चरमपंथी समूहों से पाकिस्तान की गुप्त साठगांठ के सबूत सामने आना। और अब UNSC की रिपोर्ट में TRF और लश्कर-ए-तैयबा का सीधा नाम आने से पाकिस्तान की “दोहरी नीति” एक बार फिर से पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गई है।
देखा जाये तो भारत के लिए यह एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है, लेकिन आतंकवाद का खतरा पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। UNSC की रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि क्षेत्रीय हालात नाजुक हैं और आतंकवादी संगठन इन तनावों का फायदा उठाने की कोशिश कर सकते हैं। इसलिए भारत को अपने कदम और मजबूत करने होंगे। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के साथ मिलकर पाकिस्तान पर निरंतर दबाव बनाए रखना होगा। साथ ही आतंकवादियों के आर्थिक नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए वैश्विक सहयोग को और गहरा करना होगा। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में कट्टरपंथ और स्थानीय भर्ती को रोकने के लिए सामाजिक व आर्थिक विकास कार्यक्रमों पर और बल देना होगा। इसके अलावा, सुरक्षा बलों को आधुनिक तकनीक व हथियारों से लैस करना होगा ताकि आतंकवादियों के बचे-खुचे नेटवर्क का भी सफाया हो सके।
बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट न केवल भारत के लिए कूटनीतिक विजय है बल्कि पाकिस्तान के लिए करारा झटका भी है। पाकिस्तान की यह कोशिश नाकाम हो गई कि वह TRF जैसे संगठनों को “स्थानीय” बताकर अपनी संलिप्तता से बच सके। अब यह स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तान की जमीन आतंकवाद के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनी हुई है और वह वैश्विक शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। देखा जाये तो भारत की आतंकवाद विरोधी लड़ाई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वसनीयता अर्जित की है। यह लड़ाई केवल भारत के लिए नहीं बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक मोर्चा बन चुकी है।
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