भारतीय सेना द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और ‘ऑपरेशन महादेव’ जैसे अभियानों की सफलता को दरकिनार कर, इन अभियानों के नामों को लेकर कुछ विपक्षी नेताओं द्वारा उठाए गए सवालों ने एक बार फिर यह चिंता बढ़ा दी है कि सेना जैसे पेशेवर और संवेदनशील संस्थान को राजनीतिक विमर्श में क्यों घसीटा जा रहा है। यह न केवल सेना की गरिमा के लिए खतरा है, बल्कि देश की सामूहिक सुरक्षा भावना को भी कमजोर करता है।
हम आपको बता दें कि सेना द्वारा अपने अभियानों को जो नाम दिए जाते हैं, वे न तो किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होते हैं और न ही किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए चुने जाते हैं। इन नामों का चयन अक्सर स्थान, सांस्कृतिक पहचान, प्रतीकात्मक प्रेरणा या सैन्य परंपरा के आधार पर किया जाता है। ‘ऑपरेशन महादेव’ का नाम, जैसा कि जानकारी में स्पष्ट किया गया है, महादेव रेंज नामक एक भौगोलिक क्षेत्र से लिया गया था जो कि अमरनाथ यात्रा मार्ग पर स्थित है। वहीं ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का संदर्भ भी पहलगाम आतंकी हमले में महिलाओं के सिंदूर उजाड़ने की घटना का बदला लेने से जुड़ा था।
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आलोचकों को समझना होगा कि ऑपरेशन महादेव का नाम सीधे उस इलाके से जुड़ा है जहां यह अभियान चलाया गया था— महादेव रेंज, जो अमरनाथ गुफा मार्ग के निकट स्थित एक ऊँची पर्वत श्रृंखला है। “महादेव” नाम स्थानीय लोगों और सैनिकों दोनों के लिए उस स्थान की पहचान का साधन है। यह नाम इसलिए चुना गया क्योंकि यह स्थानिक रूप से प्रासंगिक था, न कि किसी धार्मिक घोषणा के कारण। इसी प्रकार, अमरनाथ यात्रा के सुरक्षा प्रबंधन को वर्षों से “ऑपरेशन शिवा” कहा जाता है, जो सैन्य मानचित्रों और रिपोर्टों में संदर्भ को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है। यह नाम संचालनात्मक स्पष्टता के लिए है, न कि धार्मिक प्रवृत्ति के लिए।
हम आपको बता दें कि भारतीय सेना के नामकरण की परंपरा बहुआयामी और प्रेरणास्पद रही है। उदाहरण के लिए- “एक्सरसाइज सुदर्शन शक्ति” का नाम लिया जा सकता है। भोपाल स्थित स्ट्राइक कोर द्वारा आयोजित यह प्रशिक्षण अभ्यास उनके प्रतीक “सुदर्शन चक्र” से प्रेरित है, जो शक्ति, गति और सामरिक ताकत का प्रतीक है। इसके अलावा “एक्सरसाइज कुरुक्षेत्र” का नाम लिया जा सकता है। वेलिंगटन स्थित डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में आयोजित यह युद्धाभ्यास रणनीतिक योजना का आदर्श माना जाता है, इसका नाम भले ही महाभारत से लिया गया हो, लेकिन इसका उद्देश्य धार्मिक नहीं, बल्कि निर्णय-निर्माण क्षमता को परखना है।
इसके अलावा, गढ़वाल राइफल्स का युद्ध घोष है “बद्री विशाल लाल की जय” जिसका आध्यात्मिक प्रतीक भगवान बद्रीनाथ हैं। गढ़वाल राइफल्स में सभी धर्मों के लोग हैं और सभी अपने युद्धघोष को मनोबल का स्रोत मानते हैं। यही नहीं श्रीलंका में चले “ऑपरेशन शमशीर” का मतलब है इस्लामी परंपरा से जुड़ी तलवार। इस ऑपरेशन का नाम धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि साहस और युद्ध क्षमता के प्रतीक के रूप में किया गया था।
आलोचकों को समझना होगा कि पाकिस्तान की तुलना में भारतीय सेना का दृष्टिकोण कहीं अधिक समावेशी और संतुलित है। पाकिस्तान की सैन्य कार्यवाहियों के नाम जैसे “जर्ब-ए-मोमिन” (ईमानदारों की चोट) या “जर्ब-ए-अज़्ब” (पैगंबर की तलवार की चोट) स्पष्ट रूप से धार्मिक प्रेरणा से प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, भारतीय सेना का उद्देश्य “प्रेरित करना” है, “आस्थाओं को थोपना” नहीं। भारतीय सेना का नामकरण कभी भी एकरूपता थोपने या किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने का माध्यम नहीं रहा है। इसके पीछे उद्देश्य होता है— सैन्य गौरव, स्थानिक संकेत और मनोबल का संवर्धन। “महादेव”, “शिवा”, “सुदर्शन”, “कुरुक्षेत्र” जैसे नाम भारतीय सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरणा लेते हैं, लेकिन उनका प्रयोग धार्मिक प्रचार नहीं, बल्कि रणनीतिक पहचान और प्रेरणा के लिए किया जाता है।
सेना के अभियानों के नाम को राजनीतिक बहस का हिस्सा बनाना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष, पेशेवर और समावेशी संस्था है, जहाँ हर जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा के लोग साथ मिलकर राष्ट्र की रक्षा करते हैं। किसी अभियान के नाम को धार्मिक चश्मे से देखना सेना की नीयत और निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाने जैसा है, जो कि अनुचित और असंगत है। भारतीय सेना की विशेषता यह है कि यह विविधता को अपनाकर एकता का उदाहरण प्रस्तुत करती है। गढ़वाल राइफल्स में “बद्री विशाल” के जयकारे होते हैं, तो सिख रेजिमेंट में “जो बोले सो निहाल”। हर रेजिमेंट की अपनी परंपरा है, लेकिन इन सबमें साझा तत्व है कर्तव्य, सम्मान और समर्पण।
बहरहाल, राजनीति में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन उन मतभेदों को सेना की पेशेवर कार्यप्रणाली से जोड़ना राष्ट्रहित के विरुद्ध है। किसी भी लोकतंत्र में सेना की भूमिका सरकार या विपक्ष की नहीं होती, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा की होती है।
-नीरज कुमार दुबे