Saturday, March 15, 2025
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Shaurya Path: Nepal, Syria, Balochistan और Russia-Ukraine War से जुड़े मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह हमने नेपाल के हालात, रूस-यूक्रेन युद्ध, सीरिया में छिड़े घमासान और बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 
प्रश्न-1 नेपाल में राजशाही के समर्थन में जिस प्रकार की भीड़ सड़कों पर उमड़ रही है उससे क्या संदेश मिल रहे हैं? क्या भारत के अन्य पड़ोसी देशों की तरह नेपाल में भी सरकार अस्थिर हो सकती है?
उत्तर- नेपाल के 81.3 प्रतिशत नागरिक सनातन हिन्दू धर्म को मानते हैं इसलिए वह हिंदू राष्ट्र है ही। उन्होंने कहा कि भले वहां की सरकार ने देश का नया संविधान बनने के बाद हिंदू राष्ट्र टाइटल हटा दिया था लेकिन नेपाल पूरे विश्व में प्रतिशत के आधार पर सबसे बड़ा हिन्दू धर्मावलम्बी राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि नेपाल मार्च 2006 तक एक हिंदू राष्ट्र ही था और नेपाल में आज भी 80 प्रतिशत से अधिक आबादी हिंदुओं की ही है। परंतु, नेपाल में चीन की शह पर माओवादी आंदोलन की सफलता के बाद राजनैतिक उठापटक के चलते नवम्बर 2006 में माओवादी और सात अन्य राजनैतिक दलों के गठबंधन के बीच एक ऐतिहासिक व्यापक शांति समझौता हुआ था, जिसके परिणाम स्वरूप नेपाल में अंतरिम सरकार बनी थी और वर्ष 2006 में नेपाल में 240 वर्षों की राजशाही को समाप्त करते हुए एक अंतरिम संविधान लागू किया गया था जिसके अंतर्गत नेपाल के हिंदू राष्ट्र के दर्जे को समाप्त करते हुए इसे एक धर्मनिरपेक्ष देश घोषित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि नेपाल में जिस तरह से 16 सालों में 13 सरकारें बनीं और अब भी वहां राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है उसको देखते हुए लोग निर्वाचित सरकारों से निराश हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल में बढ़ता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, बुनियादी सुविधाओं की कमी और चीन के बढ़ते दखल के चलते लोग अब राजशाही की वापसी चाहते हैं।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नेपाल में अब राजतंत्र की वापसी की मांग लगातार जोर पकड़ती जा रही है। इसके लिए बाकायदा जोरदार प्रदर्शन किए जा रहे हैं। नेपाल में राजनीतिक दलों का भी अब कहना है कि देश में लोकतंत्र की रक्षा तथा राजनीतिक स्थिरता के लिए संवैधानिक राजशाही तथा हिंदू राष्ट्र की बहाली के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि नेपाल की राजनीति वहां की वामपंथी विचारधारा वाले दलों एवं अन्य दलों के इर्द गिर्द घूमती रहती है। उन्होंने कहा कि वामपंथी विचारधारा वाले दलों को चीन से जबरदस्त समर्थन प्राप्त होता है और जब भी वामपंथी विचारधारा वाले दलों को नेपाल में बहुमत प्राप्त होता है तो वे राजशाही को समाप्त कर नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाए रखने की बात करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि नेपाल का पुनः एक हिंदू राष्ट्र बनना भारत के भी हित में है क्योंकि एक तो इससे नेपाल में किसी भी राजनैतिक दल के लिए भारत विरोधी रुख अपनाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अब नेपाल के लोगों को समझ में आने लगा है कि उसके आर्थिक एवं राजनैतिक हित भारत से अच्छे सम्बंध बनाए रखने में ही सधे रहेंगे न कि चीन के साथ अपनी मित्रता बढ़ाने से। चीन ने अभी हाल ही में जिस प्रकार कई देशों को आर्थिक परेशानी में डाल दिया है, इसको देखकर अब नेपाल भी सचेत होता दिखता है। 
 
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने हालांकि संकेत दिया है कि राजशाही की वापसी नहीं होगी। उन्होंने सभी लोगों से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन करने और संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के संविधान के सिद्धांतों और मानकों को बनाए रखने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि वैसे जिस तरह नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह का हवाई अड्डे पर स्वागत हुआ वह देखने लायक था। उन्होंने कहा कि पोखरा से सिमरिक एयर हेलीकॉप्टर पर सवार होकर ज्ञानेंद्र जैसे ही त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरे, राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित सैकड़ों समर्थक उनके पक्ष में नारे लगाने लगे। उन्होंने कहा कि भीड़ में शामिल लोगों के हाथों में तख्तियां थीं, जिस पर ‘हमें अपना राजा वापस चाहिए’, ‘संघीय गणतंत्र प्रणाली को खत्म करो’, ‘राजशाही को बहाल करो’ और ‘राजा और देश हमारे जीवन से भी प्यारे हैं’ जैसे नारे लिखे हुए थे। उन्होंने कहा कि इस समय नेपाल के पूर्व नरेश के समर्थक पिछले कुछ दिनों से काठमांडू और पोखरा सहित देश के विभिन्न हिस्सों में रैली निकाल रहे हैं और मौजूदा सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञानेंद्र समर्थक, जन आंदोलन के बाद 2008 में समाप्त की गई राजशाही व्यवस्था को फिर से बहाल करने की मांग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि फरवरी में लोकतंत्र दिवस के बाद से राजशाही समर्थक सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने कहा कि उस समय पूर्व नरेश ने एक संदेश में कहा था, ‘‘समय आ गया है कि हम देश की रक्षा करने और राष्ट्रीय एकता लाने की जिम्मेदारी लें।” उन्होंने कहा कि जहां तक राजशाही समर्थकों की ओर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के समर्थन में नारेबाजी करने की बात है तो इसका कारण है कि नेपाल के गोरखा लोगों की गोरखनाथ मंदिर में बड़ी आस्था है और योगी चूंकि हिंदुत्व की राजनीति के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं इसलिए भी योगी के प्रशंसक वहां बड़ी तादाद में हैं।
प्रश्न-2. रूस-यूक्रेन युद्ध में ताजा अपडेट क्या है? यूएई में युद्धविराम को लेकर जो वार्ता चल रही है क्या उसमें किसी प्रकार की सफलता मिलने की उम्मीद है?
उत्तर- अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि उन्हें उम्मीद है कि यूक्रेन के साथ रूस 30 दिन के युद्धविराम पर सहमत हो जाएगा। उन्होंने कहा कि इसके अलावा यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने इसे एक सकारात्मक कदम बताते हुए कहा है कि मॉस्को को इसे स्वीकार करने के लिए राजी करना अमेरिका पर निर्भर है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि अमेरिका और यूक्रेन के वरिष्ठ अधिकारियों ने मंगलवार को सऊदी अरब के जेद्दा में वार्ता की। वार्ता के दौरान रूस और यूक्रेन के बीच तीन साल से अधिक समय से जारी युद्ध को समाप्त करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें 30 दिन के युद्धविराम को स्वीकार करने का संकेत दिया गया। उन्होंने कहा कि जेद्दा में घोषणा के तुरंत बाद ट्रंप ने कहा कि कुछ समय पहले यूक्रेन ने युद्धविराम पर सहमति जताई थी। अब हम रूस से संपर्क करने जा रहे हैं और उम्मीद है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इस पर सहमत होंगे। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने कहा कि अगर हम रूस को राजी कर लेते हैं, तो यह बहुत बढ़िया होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं, तो हम लगातार इस संबंध में प्रयास करते रहेंगे क्योंकि युद्ध में लोग मारे जा रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ट्रंप ने रूस के साथ जल्द होने वाली बैठकों के बारे में भी बात की जो उनके विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के संदर्भ में था, जिनके रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात के लिए मॉस्को जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा है कि अमेरिकी पक्ष उनके देश के तर्कों को समझता है और उनके प्रस्तावों पर विचार करता है। उन्होंने कहा कि वे दोनों देशों की टीम के बीच रचनात्मक बातचीत के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के आभारी हैं। उन्होंने कहा कि जेलेंस्की ने जेद्दा से घोषणा के कुछ घंटों बाद कहा कि यूक्रेन इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए तैयार है। हम इसे एक सकारात्मक कदम के रूप में देखते हैं और इसे करने के लिए तैयार हैं। अब, रूस को भी ऐसा करने के लिए राजी करना अमेरिका पर निर्भर है। अगर रूस सहमत होता है, तो युद्धविराम तुरंत प्रभावी हो जाएगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ने इस बारे में एक वीडियो संदेश जारी किया, जिसका लिखित विवरण उनके आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर भी पोस्ट किया गया है। उन्होंने कहा कि आज की वार्ता के दौरान अमेरिकी पक्ष ने एक और भी बड़ा पहला कदम उठाने का प्रस्ताव रखा- 30 दिन का पूर्ण अंतरिम युद्धविराम, जिससे न केवल काला सागर में, बल्कि समूचे अग्रिम मोर्चे पर मिसाइल, ड्रोन और बम हमले रुकेंगे। उन्होंने कहा कि यूक्रेन की स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट है। यूक्रेन इस युद्ध की शुरुआत से ही शांति की बात करता रहा है और हम इसे जल्द से जल्द तथा विश्वसनीय तरीके से हासिल करने के लिए सबकुछ करना चाहते हैं ताकि युद्ध की वापसी न हो। उन्होंने कहा कि जेलेंस्की ने उन तीन प्रमुख बिंदुओं के बारे में भी बात की जो उनकी टीम ने जेद्दा में अमेरिकियों के साथ बैठक के दौरान प्रस्तावित किए थे। उन्होंने कहा कि ये तीन प्रमुख बिंदु हैं- आसमान में शांति यानी मिसाइल हमलों, बमों और लंबी दूरी के ड्रोन हमलों को रोकना; समुद्र में शांति तथा इस पूरी स्थिति में वास्तविक विश्वास-निर्माण के कदम, जिस बारे में कूटनीति जारी है और जिसका मुख्य रूप से आशय युद्धबंदियों एवं बंदियों (सैन्य और नागरिक दोनों) की रिहाई तथा यूक्रेनी बच्चों की वापसी से है, जिन्हें जबरन रूस स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि हालांकि रूस की ओर से इस बारे में अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। इस बीच, जेद्दा से घोषणा आने के तुरंत बाद ट्रंप सरकार ने यूक्रेन के साथ सैन्य सहायता और खुफिया जानकारी साझा करने पर लगा अपना निलंबन हटा लिया है। उन्होंने कहा कि यह कदम एक सप्ताह पहले युद्ध को समाप्त करने के बारे में बातचीत के लिए जेलेंस्की को मजबूर करने के एक स्पष्ट प्रयास में उठाया गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक युद्ध क्षेत्र की बात है तो उसमें ताजा अपडेट यह है कि यूक्रेनी सेना ने पिछले 24 घंटों में 64 ड्रोन और 54 गोला-बारूद का उपयोग करके रूस के बेलगोरोड क्षेत्र में 12 नगर पालिकाओं पर हमला किया है, लेकिन इसमें कोई हताहत नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि इसके अलावा रूस ने यूक्रेन के कुर्स्क में पांच गांवों पर फिर से कब्ज़ा करने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि रूस द्वारा यह बढ़त मॉस्को द्वारा यह कहे जाने के एक दिन बाद सामने आई है कि उसके सैनिकों ने कुर्स्क में 12 और बस्तियों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया है- जो 100 वर्ग किलोमीटर (38.6 वर्ग मील) में फैली हुई हैं, जहाँ अगस्त 2024 में यूक्रेनी सैनिकों ने आश्चर्यजनक हमला किया था। उन्होंने कहा कि क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा है कि हमारी सेना द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि हमारे सैनिक कुर्स्क क्षेत्र में सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं, और उन क्षेत्रों को मुक्त करा रहे हैं जो आतंकवादियों के नियंत्रण में थे।
प्रश्न-3. सीरिया में ताजा संघर्ष में हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी, आखिर इस संघर्ष का कारण क्या था? अब सीरिया की नई सरकार और कुर्दों के बीच जो समझौता हुआ है क्या उससे शांति कायम हो पायेगी?
उत्तर- पूर्व असद शासन के बचे हुए समर्थकों के खिलाफ सैन्य अभियान ने देश में हालिया वर्षों की सबसे खराब हिंसा को जन्म दिया है। सुरक्षा बलों और पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थकों के बीच चल रही कार्रवाई और लड़ाई में सैंकड़ों लोग मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय ने कहा है कि हिंसा के दौरान महिलाओं और बच्चों सहित पूरे परिवार मारे गए। उन्होंने कहा कि असद के प्रति वफादार सशस्त्र समूहों और नए सीरियाई शासन के प्रति वफादार बलों के बीच झड़पों के रूप में शुरू हुआ यह संघर्ष जल्द ही सांप्रदायिक हत्याओं में बदल गया, जिसमें हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि अब अमेरिका की मध्यस्थता के चलते सीरियाई शासन और कुर्द लड़ाकों के बीच समझौता हो गया है और फिलहाल तो वहां शांति दिखाई दे रही है।
प्रश्न-4. बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी क्या है और क्यों यह पाकिस्तान के सुरक्षा बलों से भिड़ रही है?
उत्तर- बलूचिस्तान में स्थानीय लोग पाकिस्तान सरकार के अत्याचार सहते सहते अब तंग आ चुके हैं और बांग्लादेश की तरह आजाद होना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान से आजादी पाने के लिए ही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का गठन हुआ और इन्हें जिस प्रकार का कड़ा प्रशिक्षण दिया जाता है वह हैरानी भरा तो है साथ ही वह उनके मन में जमे आक्रोश का स्तर भी दर्शाता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान में करीब 3 करोड़ की आबादी वाले पश्तून समुदाय पर जमकर अत्याचार होते हैं। पश्तून लोगों के साथ मारपीट, उन्हें गायब कर देने, उनके साथ बुरे बर्ताव और उनकी महिलाओं के साथ यौन अत्याचार की घटनाएं आम हैं। उन्होंने कहा कि पश्तूनी लोग पाकिस्तान के साथ कितनी भी मजबूती से खड़े रहें हों लेकिन वहां की सरकार उन्हें गद्दार मानती है और उनके साथ उसी तरह का व्यवहार करती है। उन्होंने कहा कि संघ प्रशासित कबायली इलाके जिसे फाटा भी कहा जाता है, वहां अक्सर कर्फ्यू लगा रहता है। इस इलाके में स्कूल, कॉलेज और अस्पताल बनाने की बात तो छोड़ दीजिये यहां के लोगों के घर-बार भी अक्सर तोड़ दिये जाते हैं और उनके सामान पर कब्जा कर लिया जाता है तथा उन्हें सड़कों पर जीवन बिताने के लिए छोड़ दिया जाता है। यही कारण है कि विदेशों में भी जहाँ-जहाँ पश्तून रहते हैं, वह लोग वहाँ-वहाँ की राजधानियों में पाकिस्तानी दूतावास के बाहर अक्सर विरोध प्रदर्शन करते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान के इस समय जो हालात नजर आ रहे हैं उसको देखते हुए बलूचिस्तान ही नहीं बल्कि विभिन्न राज्यों में स्वायत्त देश बनाने की मांग उठ रही है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो स्वाभाविक रूप से पाकिस्तान चार हिस्सों में बंट सकता है। इसमें से सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान में भारत के प्रति सकारात्मक आवाजें आ रही हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के कई नागरिक खुले तौर पर कह रहे हैं कि पाकिस्तान की दुर्गति को देखकर यही लगता है कि हम हिन्दुस्तान के साथ ही रहे होते। उन्होंने कहा कि बलूच लोग खुली हवा में सांस लेने के लिए दशकों से तड़प रहे हैं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में बलूच होना ही उनके लिए सबसे बड़ा गुनाह होता है। उन्होंने कहा कि बलूचों को मारने और किस्म-किस्म के अत्याचार करने का जैसे पाकिस्तानी सेना और पुलिस को लाइसेंस मिला हुआ है। उन्होंने बताया कि अब इस खेल में चीन भी शामिल हो चुका है। उन्होंने बताया कि बलूचों की बहन-बेटियों को पाकिस्तानी सेना के जवान सरेआम उठा ले जाते हैं और उनके साथ कई-कई दिन तक बलात्कार किया जाता है। उन्होंने कहा कि डर के चलते लड़कियां स्कूल और कॉलेज नहीं जातीं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि पाकिस्तान की ओर से क्षेत्र में किसी विदेशी पत्रकार या न्यूज चैनल, सोशल वर्कर या विदेशी प्रतिनिधि को नहीं जाने दिया जाता जिससे कभी सच सामने नहीं आ पाता। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में बलूचों के वजूद पर और ज्यादा खतरा मंडरा रहा है क्योंकि उनके लिए सरकारी नौकरियों में कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई लड़ने वाले कई क्रांतिकारी नेताओं को पाकिस्तान की सेना ने बंधक बनाया हुआ है इसलिए वहां जो विरोध की चिंगारी उठ रही थी वह अब भड़क गयी है और पूरी ट्रेन को बंधक बना लिया गया। उन्होंने कहा कि हैरानी देखिये कि पाकिस्तानी सुरक्षा बल 48 घंटे बीतने के बाद भी कुछ नहीं कर पाये हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग रिहा किये गये हैं उन्हें खुद बंधक बनाने वालों ने रिहा किया है और बताया है कि महिलाओं और बच्चों को जाने दिया गया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि बलूचिस्तान को आजादी के समय अलग देश की मान्यता मिली थी। यह पाकिस्तान का स्वाभाविक हिस्सा नहीं था। पाकिस्तान ने हमला करके बलूचिस्तान पर कब्जा किया था। तब से ही बलूचिस्तान के नागरिक पाकिस्तान की ज्यादतियों के विरोध में आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब बलूचिस्तान के लोगों ने जिस तरह आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है उसको देखते हुए कल को यह क्षेत्र पाकिस्तान से अलग होकर वापस स्वतंत्र राष्ट्र बन जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। 
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