प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह अमेरिका की ओर से शुरू की गयी टैरिफ वार, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास के बीच संघर्षविराम के भविष्य और नाटो छोड़ने संबंधी अमेरिका की धमकी से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ बातचीत की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-
प्रश्न-1. अमेरिका से चल रही टैरिफ वार के बीच चीन ने सैन्य आधुनिकीकरण के लिये रक्षा बजट बढ़ाकर 249 अरब डॉलर कर दिया है और कहा है कि शांति-संप्रभुता की रक्षा केवल ताकत से संभव है। इसके अलावा जेलेंस्की-ट्रंप में नोकझोंक के बाद चीन का यूरोपीय संघ के साथ संबंध बेहतर करने पर जोर दिख रहा है। इन मुद्दों को कैसे देखते हैं आप?
उत्तर- चीन ने अपने राष्ट्रीय रक्षा बजट में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि की घोषणा की है जिससे इस वर्ष इसका कुल रक्षा बजट 249 अरब अमेरिकी डॉलर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि लेकिन यदि इस खर्च की अमेरिका के खर्च से मुकाबला करें तो यह कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के बाद चीन के पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रक्षा बजट है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रस्तावित देश का नवीनतम रक्षा बजट 890 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है। उन्होंने कहा कि चीन की ओर से रक्षा बजट बढ़ाने की घोषणा युद्धपोतों और नई पीढ़ी के लड़ाकू विमानों को तेजी से विकसित करने सहित सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के अपने तीव्र प्रयासों के बीच की गई है।
इसे भी पढ़ें: Prabhasakshi Exclusive: Ukraine तेजी से अपनी जमीन खोता जा रहा है, यूक्रेन की एक तिहाई खनिज संपदा भी हथिया चुका है Russia
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग द्वारा चीन की संसद में प्रस्तुत मसौदा बजट रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष देश का नियोजित रक्षा व्यय लगभग 249 अरब अमेरिकी डॉलर है। उन्होंने कहा कि पिछले साल चीन ने अपना रक्षा बजट 7.2 प्रतिशत बढ़ाकर लगभग 232 अरब अमेरिकी डॉलर कर दिया था। उन्होंने कहा कि चीन का रक्षा व्यय भारत के 78.8 अरब अमेरिकी डॉलर से लगभग तीन गुना अधिक है। उन्होंने कहा कि चीन के रक्षा बजट के आंकड़ों को आलोचक काफी सतर्कता की दृष्टि से देखते हैं क्योंकि चीनी सेना द्वारा बड़े पैमाने पर सैन्य आधुनिकीकरण किया जा रहा है, जिसमें विमानवाहक पोतों का निर्माण, उन्नत नौसैनिक जहाजों के निर्माण में तेजी और आधुनिक ‘स्टील्थ’ विमानों का निर्माण शामिल है। उन्होंने कहा कि चीन की संसद के वार्षिक सत्र की शुरुआत के अवसर पर रक्षा व्यय सहित वार्षिक बजट की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री क्विंग ने कहा कि पिछले वर्ष चीन ने राष्ट्रीय रक्षा और सैन्य आधुनिकीरण के क्षेत्र में अच्छी प्रगति की है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि चीन ने रक्षा बजट में वृद्धि के मुद्दे पर कहा है कि शांति-संप्रभुता की रक्षा केवल ताकत से संभव है। उन्होंने कहा कि नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के प्रवक्ता लू किनजियान ने कहा कि ‘‘शांति की रक्षा के लिए ताकत जरूरी है।’’ उन्होंने कहा कि चीन का कहना है कि मजबूत राष्ट्रीय रक्षा क्षमताओं के साथ वह अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास से जुड़े हितों की बेहतर ढंग से रक्षा कर सकता है, एक प्रमुख देश के रूप में अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को बेहतर ढंग से निभा सकता है और विश्व शांति और स्थिरता की रक्षा कर सकता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक चीन और यूरोपीय संघ की नजदीकियों की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि यूक्रेन युद्ध समाप्त करने को लेकर अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच गहराते मतभेद, खासकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच बैठक में नोकझोंक के बाद चीन यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने पर जोर दे रहा है। उन्होंने कहा कि हाल ही में चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रवक्ता लू किनजियान ने कहा है कि चीन एकतरफा तरीके से लिए गए फैसले के खिलाफ 27 सदस्यीय यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ काम करने को तैयार है। उन्होंने बताया कि लोउ ने कहा है कि पिछले 50 वर्ष में तथ्यों ने बार-बार साबित किया है कि चीन और यूरोप के बीच हितों का कोई मौलिक टकराव या भू-राजनीतिक संघर्ष नहीं है; बल्कि, वे साझेदार हैं जो एक-दूसरे की सफलता में योगदान करते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहता है, जिसे वह चीनी उत्पादों, विशेष रूप से एआई से लैस अपने ई-वाहनों और बैटरियों के लिए एक आकर्षक बाजार मानता है। उन्होंने कहा कि वैसे यूरोपीय संघ ने स्वदेशी मॉडलों की सुरक्षा के लिए चीनी ई-वाहनों पर भारी शुल्क लगाया है। उन्होंने कहा कि चीन हाल में जेलेंस्की और ट्रंप के बीच बैठक में नोकझोंक के बाद रणनीतिक गठबंधनों में आए तेज बदलाव का भी फायदा उठाना चाहता है। उन्होंने कहा कि दरअसल यूक्रेन को लेकर अलग-अलग रुख के कारण अमेरिका-यूरोपीय संघ के घनिष्ठ संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इसके अलावा ट्रंप के रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बेहतर हो रहे संबंधों को लेकर भी चीन बेचैन है। उन्होंने कहा कि चीन और रूस के बीच अमेरिका और उसके सहयोगियों से खतरों के मद्देनजर वर्षों से एक करीबी गठबंधन बना हुआ है। उन्होंने कहा कि एक मार्च को पुतिन ने अपने शीर्ष सुरक्षा अधिकारी सर्गेई शोइगु को यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अमेरिका के साथ रूस की वर्तमान वार्ता के बारे में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को जानकारी देने के लिए बीजिंग भेजा था। उन्होंने कहा कि लेकिन फिर भी चीन काफी सतर्क है और रूस तथा अमेरिका के ठीक होते संबंधों पर नजर रखे हुए है।
प्रश्न-2. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ऐसे संकेत मिले हैं कि रूस शांति के लिए तैयार है और यूक्रेन बातचीत का इच्छुक है। क्या आपको लगता है कि अब युद्धविराम जल्द ही देखने को मिल सकता है?
उत्तर- इसके जवाब में उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों में रूस-यूक्रेन संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया है लेकिन युद्ध के मैदान पर नहीं बल्कि सत्ता के गलियारों में। उन्होंने कहा कि लेकिन जहां तक युद्ध क्षेत्र की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका से सैन्य और खुफिया सूचना मिलना बंद होने के बाद यूक्रेनी सैनिक तेजी से जंग हारते दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के बड़े भूभाग पर रूस कब्जा जमा चुका है और उसके पास अब तक यूक्रेन की लगभग एक तिहाई खनिज संपदा भी जा चुकी है। ऐसे में सवाल उठता है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की अमेरिका से जो खनिज समझौता करने जा रहे हैं उसमें वह अपनी कितनी खनिज संपदा बताएंगे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वहीं युद्धक्षेत्र की बात करें तो आपको बता दें कि रूसी सेना ने उन हजारों यूक्रेनी सैनिकों को लगभग घेर लिया है, जिन्होंने पिछले साल गर्मियों में रूस के कुर्स्क क्षेत्र में घुसकर सबको चौंका दिया था। यूक्रेन को लग रहा था कि उसकी सेना की इस बढ़त को देखते हुए मास्को शांति वार्ता करने पर मजबूर होगा लेकिन रूस ने अब उस क्षेत्र में यूक्रेन की बढ़त को पूरी तरह खत्म कर दिया है। मानचित्रों से पता चलता है कि पिछले तीन दिनों में कुर्स्क में यूक्रेन की स्थिति तेजी से खराब हुई है। रूसी जवाबी हमले ने यूक्रेनी सेना को बड़ा नुकसान पहुँचाया है और उसकी मुख्य आपूर्ति लाइनों को भी ध्वस्त कर दिया है। बताया जा रहा है कि इस समय कुर्स्क में यूक्रेन के लिए स्थिति बहुत ख़राब है। रूसी सेना ने यूक्रेन के अंदर ऊर्जा और गैस के बुनियादी ढांचे को भी रात भर में क्षतिग्रस्त कर दिया है। देखा जाये तो यह अमेरिका द्वारा यूक्रेन के साथ खुफिया जानकारी साझा करने पर रोक लगाने के बाद से रूस का पहला बड़ा मिसाइल हमला था। यूक्रेनी अधिकारियों ने कहा कि इस हमले में एक बच्चे सहित दस लोग घायल हो गए।
प्रश्न-3. इजराइल की नई शर्तों को देखते हुए लग रहा है कि हमास के साथ संघर्षविराम का भविष्य खतरे में है। इस बारे में आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- हमास जिस तरह की हरकतें कर रहा है उसको देखते हुए वाकई संघर्षविराम का भविष्य खतरे में लग रहा है। उन्होंने कहा कि बताया जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के मध्य पूर्व के लिए दूत स्टीव विटकॉफ, हमास नेताओं और मिस्र तथा कतर के मध्यस्थों के बीच नए फॉर्मूले पर चर्चा हुई है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी-मिस्र वार्ता में युद्ध की समाप्ति के बाद गाजा के शासन पर चर्चा हुई, जिसमें उन लोगों के नाम भी शामिल थे जो पट्टी का प्रबंधन करेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें हैं कि चर्चा सकारात्मक रूप से समाप्त हुई।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उम्मीद है कि यदि कोई नई रुकावट नहीं आई तो गाजा युद्धविराम समझौते का दूसरा चरण जल्द लागू हो सकता है। उन्होंने कहा कि लेकिन यह हैरत की बात है कि इज़रायल को बंधक सौदे के दूसरे चरण के बारे में किसी भी प्रगति के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि हमास को समझना होगा कि अब हालात पूरी तरह बदल चुके हैं यदि उसने किसी तरह की गलत हरकत की तो ट्रंप और नेतन्याहू मिलकर उसे पूरी तरह बर्बाद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यदि इजराइली तोपें फिर से गरजीं तो बचा खुचा गाजा भी तबाह हो जायेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि उधर हमास का कहना है कि ट्रंप द्वारा फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध बार-बार दी गई धमकियाँ इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को गाजा युद्धविराम से पीछे हटने और गाजा की घेराबंदी को तेज़ करने के लिए समर्थन का प्रतीक हैं। उन्होंने कहा कि ट्रम्प ने बुधवार को कहा था कि हमास “सभी बंधकों को अभी रिहा करे, बाद में नहीं,” जिसमें मृत बंधकों के अवशेष भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हमास को चेतावनी देते हुए ट्रंप ने यह भी कहा था कि अगर हमास ने मांग नहीं मानी तो उसके लिए सब कुछ खत्म हो जाएगा। उन्होंने कहा कि हमास के प्रवक्ता अब्देल-लतीफ अल-कनौआ ने मीडिया को भेजे संदेश में कहा है कि “शेष इजरायली कैदियों को रिहा करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि समझौता दूसरे चरण में चला जाए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जनवरी में लागू हुए गाजा युद्ध विराम समझौते पर ट्रम्प के दूत के साथ बातचीत की गई थी। उन्होंने कहा कि ट्रम्प के दूत ने बाइडन प्रशासन के दूतों के साथ भी वार्ता में भाग लिया था। उन्होंने कहा कि दूसरे चरण के समझौते में शेष बंधकों को रिहा करने का आह्वान किया गया है। उन्होंने कहा कि माना जा रहा है कि दूसरे चरण के समझौते की अवधि के दौरान युद्ध को समाप्त करने के लिए अंतिम योजनाओं पर बातचीत की जाएगी। उन्होंने कहा कि युद्ध विराम का पहला चरण शनिवार को समाप्त हो गया और तब से इज़राइल ने गाजा में प्रवेश करने वाले सभी सामानों पर पूर्ण नाकाबंदी लगा दी है, जिसमें मांग की गई है कि हमास युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत शुरू किए बिना शेष बंधकों को रिहा करे। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर फिलिस्तीनियों का कहना है कि नाकाबंदी से गाजा के खंडहरों में रहने वाले 2.3 मिलियन लोगों के बीच भुखमरी हो सकती है।
प्रश्न-4. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले से ही नाटो के आलोचक रहे हैं। यदि अमेरिका नाटो से बाहर आता है तो इसके क्या प्रभाव होंगे?
उत्तर- ट्रंप ने पहले भी धमकी दी थी कि यदि अन्य सदस्य अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने में विफल रहे तो नाटो को रूसी बस के नीचे फेंक दिया जाएगा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस सैन्य गठबंधन के आलोचक रहे हैं। जब वह पहली बार राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़े थे तब भी उन्होंने इस गठबंधन को “अप्रचलित” बताया था और अगस्त 2019 में तो उन्होंने यहां तक कहा था कि नाटो मर चुका है। अपने दूसरे कार्यकाल में भी ट्रंप नाटो के आलोचक रहे हैं। पद संभालने के कुछ ही दिनों बाद, ट्रंप ने कहा कि अमेरिका इस गठबंधन के सदस्यों की रक्षा कर रहा था, लेकिन वे “हमारी रक्षा नहीं कर रहे थे।” उन्होंने नाटो सदस्यों को अपने सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने के लिए कहा। अभी नाटो सदस्य अपनी जीडीपी का दो प्रतिशत ही रक्षा पर खर्च करते हैं जिससे अमेरिका नाराज है। ट्रंप की शिकायत है कि अमेरिका अपने बजट से नाटो में बहुत अधिक योगदान देता है जबकि यूरोपीय संघ के सदस्य रक्षा पर बहुत कम खर्च करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक, अमेरिका नाटो के वार्षिक बजट का लगभग छठा हिस्सा योगदान देता है। उन्होंने कहा कि लेकिन ट्रंप नाटो से बाहर निकलने का फैसला करते हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए कानूनी रूप से सिरदर्द पैदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि दरअसल नाटो से बाहर निकलने के राष्ट्रपति के फैसले के लिए या तो दो-तिहाई सीनेट की मंजूरी होनी चाहिए या फैसले को कांग्रेस के एक अधिनियम के माध्यम से अधिकृत होना चाहिए। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति चाहें तो इस नियम को दरकिनार कर सकते हैं लेकिन यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।