विश्व के कई नेता आज मिस्र में एकत्रित हुए हैं, जहां अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की गई गाजा शांति योजना के ढांचे को अंतिम रूप देने के लिए उच्च स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया गया है। इस सम्मेलन में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्ताह अल-सिसी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सह-अध्यक्षता कर रहे हैं। साथ ही तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष भी सम्मेलन में मौजूद हैं लेकिन इस महत्वपूर्ण मंच पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गैर-मौजूदगी ने कूटनीतिक दृष्टि से कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मोदी की अनुपस्थिति में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने किया।
हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी को व्यक्तिगत रूप से सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, फिर भी उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। देखा जाये तो इस फैसले के पीछे कई परतें हैं, जो केवल औपचारिकता या व्यस्त कार्यक्रम से अधिक हैं। सबसे प्रमुख कारण पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ का सम्मेलन में उपस्थित होना हो सकता है। अप्रैल में पहलगाम हमले और उसके बाद भारतीय सैन्य प्रतिक्रिया ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया है। ऐसे में भारत संभवतः यह संदेश देना चाहता है कि वह पाकिस्तान के साथ सीधे संवाद में भी अपनी स्थिति स्पष्ट रखता है और किसी मंच पर शहबाज शरीफ़ के साथ सार्वजनिक रूप से उपस्थित होने से बचना चाहता है।
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हम आपको याद दिला दें कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले में 26 लोगों की मृत्यु ने भारत को सख्त कदम उठाने के लिए प्रेरित किया था। इसके तहत सिंधु जल संधि को निलंबित करना और अटारी-वाघा सीमा चौक को बंद करना जैसे कदम शामिल हैं। इस पृष्ठभूमि में मोदी का मिस्र नहीं जाना न केवल एक संवेदनशील सुरक्षा संकेत है, बल्कि यह दिखाता है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों और सुरक्षा प्राथमिकताओं को किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच से ऊपर रखता है।
इसके अलावा, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी भी एक महत्वपूर्ण कारक रही होगी। दरअसल ट्रंप पिछले कुछ महीनों में बार-बार यह दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष समाप्त करने में भूमिका निभाई है। भारतीय कूटनीति इस प्रकार के ‘फोटो-ऑप’ और झूठे शांति दावों से सावधान रही है। मोदी की गैर-मौजूदगी इस संदेश को भी स्पष्ट करती है कि भारत अपनी संप्रभुता और सैन्य निर्णयों पर किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं करता।
यह रणनीति मोदी की पिछली यात्राओं से भी मेल खाती है। सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक अधिवेशन और जून में जी-7 सम्मेलन के दौरान उन्होंने अमेरिका जाने से परहेज किया था। विशेष रूप से जी-7 सम्मेलन के समय ट्रंप द्वारा भारत-पाकिस्तान विवाद के समाधान के दावे के बीच मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति के निमंत्रण के बावजूद वाशिंगटन नहीं गये थे। यह दिखाता है कि मोदी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजनीति के ड्रामे से बचते हुए, अपने देश की कूटनीतिक स्वायत्तता पर केंद्रित हैं।
मोदी की यह कूटनीति न केवल पाकिस्तान के प्रति स्पष्ट संदेश देती है, बल्कि यह अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ भारत की रणनीतिक बातचीत की परिपक्वता को भी दर्शाती है। हाल के दिनों में भारत और अमेरिका के संबंधों में नरमी आई है, विशेषकर जब अमेरिका ने रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर 50 प्रतिशत शुल्क लगाया था। मोदी ने इस फैसले के दौरान अमेरिका से बातचीत करने में संकोच किया और अपने 75वें जन्मदिन पर ही ट्रंप से संवाद किया। इसके बावजूद, भारत ने अमेरिकी शर्तों और दावों को बिना किसी समझौते के स्वीकार नहीं किया।
मिस्र सम्मेलन में मोदी की गैर-मौजूदगी यह स्पष्ट करती है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर दिखावटी शांति या किसी और के दावों के लिए अपने राष्ट्रीय हितों का त्याग नहीं करेगा। यह रणनीति ‘सावधानी और सम्मान’ पर आधारित है— जहां भारत अपने निर्णय स्वयं लेता है और किसी बाहरी हस्तक्षेप को चुनौती देता है। साथ ही, यह मोदी की कूटनीति की एक विशेष शैली को भी उजागर करता है: न केवल तत्काल राजनीतिक लाभ पर ध्यान देना, बल्कि दीर्घकालिक रणनीतिक संतुलन बनाए रखना।
मोदी की अनुपस्थिति का तीसरा आयाम यह भी है कि यह वैश्विक मंचों पर भारत की छवि को ‘स्वायत्त, सशक्त और निर्णायक’ के रूप में प्रस्तुत करता है। भारत यह संदेश देता है कि वह विश्व राजनीति में केवल निमंत्रणों और समारोहों का पालन करने वाला देश नहीं है, बल्कि वह अपने हितों और सुरक्षा रणनीतियों के अनुरूप कदम उठाने वाला स्वतंत्र राष्ट्र है।
इस प्रकार, प्रधानमंत्री मोदी का मिस्र न जाना केवल एक व्यक्तिगत या अनौपचारिक निर्णय नहीं है। यह निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय छवि और कूटनीतिक स्वायत्तता का संयोजन है। इससे पाकिस्तान, अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों को स्पष्ट संदेश जाता है कि भारत अपने हितों के लिए किसी भी मंच पर समझौता नहीं करेगा। मोदी की यह कूटनीति ‘सक्षम, सोच-समझकर, और परिपक्व’ है, जो शांति और सुरक्षा के महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने कदमों की स्पष्टता और मजबूती को दर्शाती है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी का मिस्र न जाना भारत की कूटनीतिक परिपक्वता और राष्ट्रीय हितों की प्राथमिकता का संकेत है। यह केवल पाकिस्तान के साथ तनाव का परिणाम नहीं है, बल्कि अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के साथ संवाद में भी सतर्कता और रणनीतिक सोच की उपज है। मोदी की यह नीति न केवल भारत की सुरक्षा और स्वायत्तता को सुनिश्चित करती है, बल्कि विश्व मंच पर उसकी गंभीर और सम्मानजनक भूमिका को भी मजबूत करती है।
-नीरज कुमार दुबे