अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की आपत्ति और उसकी हालिया गतिविधियाँ भारत-चीन संबंधों में लगातार तनाव का कारण बनी हुई हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश को चीन “दक्षिण तिब्बत” कहकर अपना हिस्सा मानता है, जबकि यह भारत का अभिन्न अंग है। यह विवाद केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि हाल के वर्षों में चीन ने कई ऐसे कदम उठाए हैं जो भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के प्रत्यक्ष विरोध में हैं।
चीन की आपत्ति के ऐतिहासिक कारणों को ढूँढ़ें तो सामने आता है कि ब्रिटिश भारत, तिब्बत और चीन के बीच 1914 में शिमला समझौता हुआ था, जिसके तहत ‘मैकमोहन रेखा’ को सीमा रेखा के रूप में मान्यता दी गई थी। चीन ने इस समझौते को कभी स्वीकार नहीं किया और इस आधार पर वह अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता रहा है।
इसके अलावा, 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने अस्थायी रूप से अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था। हालांकि युद्ध के बाद चीन पीछे हट गया, लेकिन उसने इस क्षेत्र पर अपने दावे को कभी नहीं छोड़ा। हाल की चीनी गतिविधियों पर गौर करें तो आपको बता दें कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के दर्जनों स्थानों के चीनी नाम घोषित किए हैं। अप्रैल 2023 और मार्च 2024 में उसने चौथी बार ‘स्थानीय नामों’ की सूची जारी की और उन पर दावा जताया। यह कूटनीतिक दृष्टि से भारत की संप्रभुता को चुनौती देने का प्रयास है।
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इसके अलावा, चीन ने अगस्त 2023 में एक आधिकारिक मानचित्र जारी किया था जिसमें अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को चीन का हिस्सा दिखाया गया। भारत सरकार ने कड़ा विरोध दर्ज कराते हुए इसे “निराधार” और “अस्वीकार्य” बताया था। साथ ही चीन के विदेश मंत्रालय ने बार-बार यह बयान दोहराया है कि अरुणाचल प्रदेश “दक्षिण तिब्बत” का हिस्सा है। यह बयान संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी दोहराया जाता रहा है। हम आपको बता दें कि चीन ने सीमा के पास कई अवसंरचनात्मक परियोजनाएं (सड़कों, पुलों, गांवों) का निर्माण किया है। यह बदलाव सैन्य दृष्टिकोण से भारत के लिए चिंता का कारण बना हुआ है। कई रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि चीन ने एलएसी (LAC) के नज़दीक कई “डुअल पर्पज़” गांव बसाए हैं।
यही नहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री या अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की अरुणाचल यात्रा पर चीन ने बार-बार कड़ी आपत्ति जताई है, जिसे भारत ने पूरी तरह खारिज किया है। भारत सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि “अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और रहेगा।” भारत न केवल कूटनीतिक स्तर पर चीनी साजिशों का विरोध करता रहा है, बल्कि सीमा क्षेत्र में आधारभूत ढांचे को भी मज़बूत कर रहा है। भारत ने अरुणाचल में रक्षा चौकियों, सड़कों और हवाई पट्टियों का तेज़ी से विकास किया है। साथ ही चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर जो बांध बना रहा है वह भारत के लिए वाटर बम साबित हो सकता है। इससे होने वाले संभावित खतरे को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री पेमा खांडू काफी सतर्क हैं।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा है कि राज्य की सीमा के निकट चीन द्वारा बनाया जा रहा विशाल बांध एक ‘‘वाटर बम’’ होगा और यह सैन्य खतरे के अलावा, किसी भी अन्य समस्या से कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा कि यारलुंग सांगपो नदी पर दुनिया की सबसे बड़ी बांध परियोजना गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि चीन ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जो उसे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन करने के लिए मजबूर कर सकती थी। हम आपको बता दें कि ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बत में यारलुंग सांगपो नाम से जाना जाता है। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा, ‘‘मुद्दा यह है कि चीन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। कोई नहीं जानता कि वे कब क्या करेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘चीन से सैन्य खतरे के अलावा, मुझे लगता है कि यह किसी भी अन्य समस्या से कहीं ज्यादा बड़ा मुद्दा है। यह हमारी जनजातियों और हमारी आजीविका के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करने वाला है। यह काफी गंभीर मुद्दा है क्योंकि चीन इसका इस्तेमाल एक तरह के ‘वॉटर बम’ के रूप में भी कर सकता है।’’ हम आपको याद दिला दें कि यारलुंग सांगपो बांध के नाम से जानी जाने वाली इस बांध परियोजना की घोषणा चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ली केकियांग द्वारा 2021 में सीमा क्षेत्र का दौरा करने के बाद की गई थी। चीन ने 137 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत वाली इस पंचवर्षीय परियोजना के निर्माण को 2024 में मंजूरी दी थी। इससे 60,000 मेगावाट बिजली उत्पादन होने का अनुमान है, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत बांध बन जाएगा।
मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि अगर चीन ने अंतरराष्ट्रीय जल संधि पर हस्ताक्षर किए होते, तो कोई समस्या नहीं होती क्योंकि जलीय जीवन के लिए बेसिन के निचले हिस्से में एक निश्चित मात्रा में पानी छोड़ना अनिवार्य होता। उन्होंने कहा कि असल में, अगर चीन अंतरराष्ट्रीय जल-बंटवारे समझौतों पर हस्ताक्षर करता, तो यह परियोजना भारत के लिए वरदान साबित हो सकती थी। इससे अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश में, जहां ब्रह्मपुत्र नदी बहती है, मानसून के दौरान आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता था। पेमा खांडू ने कहा, ‘‘लेकिन चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, और यही समस्या है… मान लीजिए कि बांध बन गया और उन्होंने अचानक पानी छोड़ दिया, तो हमारा पूरा सियांग क्षेत्र नष्ट हो जाएगा। खास तौर पर, आदि जनजाति और उनके जैसे अन्य समूहों को… अपनी सारी संपत्ति, जमीन और विशेष रूप से मानव जीवन को विनाशकारी प्रभावों का सामना करते देखना पड़ेगा’’
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी वजह से भारत सरकार के साथ विचार-विमर्श के बाद अरुणाचल प्रदेश सरकार ने सियांग ऊपरी बहुउद्देशीय परियोजना नामक एक परियोजना की परिकल्पना की है, जो रक्षा तंत्र के रूप में काम करेगी और जल सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि चीन या तो अपनी तरफ काम शुरू करने वाला है या शुरू कर चुका है। लेकिन वे कोई जानकारी साझा नहीं करते। अगर बांध का निर्माण पूरा हो जाता है, तो आगे चलकर हमारी सियांग और ब्रह्मपुत्र नदियों में जल प्रवाह में काफी कमी आ सकती है।’’ पेमा खांडू ने कहा कि भारत की जल सुरक्षा के लिए, अगर सरकार अपनी परियोजना को योजना के अनुसार पूरा कर पाती है, तो वह अपने बांध से पानी की जरूरतें पूरी कर सकेगी। उन्होंने कहा कि भविष्य में अगर चीन पानी छोड़ता है, तो निश्चित रूप से बाढ़ आएगी, लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि इसी वजह से राज्य सरकार स्थानीय आदि जनजातियों और इलाके के अन्य लोगों के साथ बातचीत कर रही है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस मुद्दे पर और जागरूकता बढ़ाने के लिए जल्द ही एक बैठक आयोजित करने जा रहा हूं।’’
यह पूछे जाने पर कि सरकार चीन के इस कदम के खिलाफ क्या कर सकती है, मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार केवल विरोध दर्ज करा कर हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकती। उन्होंने कहा, ‘‘चीन को कौन समझाएगा? चूंकि हम चीन को वजह नहीं समझा सकते, इसलिए बेहतर है कि हम अपने रक्षा तंत्र और तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करें। इस समय हम इसी में पूरी तरह लगे हुए हैं।’’ हम आपको बता दें कि चीन का बांध हिमालय पर्वतमाला के एक विशाल खड्ड पर बनाया जाएगा, जहां से नदी अरुणाचल प्रदेश में प्रवाहित होने के लिए एक ‘यूटर्न’ लेती है।
साथ ही, चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू का कहना है कि ये नाम बदलने का खेल है, वरना हकीकत ये है कि हमारे राज्य की सीमा चीन से नहीं बल्कि तिब्बत से लगती है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक साक्षात्कार में कहा कि अगर यह तथ्यात्मक रूप से अज्ञानतापूर्ण लगता है तो जरा दोबारा विचार करें। वास्तव में अरुणाचल प्रदेश की 1,200 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा तिब्बत से लगती है, चीन से नहीं। हम आपको बता दें कि उनका यह बयान क्षेत्र की संवेदनशीलता और अरुणाचल प्रदेश पर चीन के दावे तथा राज्य के स्थानों के बार-बार नाम बदलने के उसके रुख के बीच आया है। उन्होंने कहा, ‘‘आधिकारिक तौर पर तिब्बत अब चीन के अधीन है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन मूल रूप से हम तिब्बत के साथ सीमा साझा करते हैं और अरुणाचल प्रदेश में हम तीन अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को साझा करते हैं- भूटान के साथ लगभग 150 किलोमीटर, तिब्बत के साथ लगभग 1,200 किलोमीटर, जो देश की सबसे लंबी सीमाओं में से एक है और पूर्वी हिस्से में म्यांमा के साथ लगभग 550 किलोमीटर।’’ मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत का कोई भी राज्य सीधे तौर पर चीन के साथ सीमा साझा नहीं करता केवल तिब्बत के साथ करता है और उस क्षेत्र पर चीन ने 1950 के दशक में जबरन कब्जा कर लिया था।
बहरहाल, चीन की अरुणाचल प्रदेश पर दृष्टि केवल एक सीमा विवाद नहीं है, यह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सीधी चुनौती है। भारत को कूटनीतिक, सैन्य और आंतरिक अवसंरचना विकास के माध्यम से इस चुनौती का साहसिक उत्तर देना होगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत को अपने पक्ष को और सशक्त रूप से प्रस्तुत करना चाहिए ताकि चीन की विस्तारवादी नीतियों पर वैश्विक स्तर पर सवाल उठाए जा सकें।