Friday, August 1, 2025
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Vanakkam Poorvottar: Assam में मियांलैंड की मांग पर बवाल, CM Himanta Biswa Sarma बोले- सपना कभी पूरा नहीं होगा

असम के गोलाघाट जिले में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद कुछ लोगों द्वारा की गयी “मियांलैंड” की मांग ने पूरे राज्य में व्यापक आक्रोश पैदा कर दिया है। इस मांग को मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने हालांकि दृढ़ता के साथ खारिज कर दिया है लेकिन यह मांग दर्शा रही है कि कुछ तत्व असम में खतरनाक खेल खेल कर सामाजिक तानेबाने को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। देखा जाये तो मियांलैंड की मांग न केवल भारत के संवैधानिक ढांचे को चुनौती देती है, बल्कि पहचान की राजनीति, अवैध घुसपैठ और मूल निवासियों के अधिकारों पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है।
हम आपको बता दें कि नगालैंड सीमा से सटे संवेदनशील क्षेत्र उरियामघाट में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान एक अवैध अतिक्रमणकारी ने कहा, “अगर बड़े लोग बोडोलैंड की मांग कर सकते हैं, तो हम मियां लोग भी मियांलैंड की मांग कर सकते हैं। अगर 35 लाख बोडो को बोडोलैंड मिल सकता है, तो हम 1.4 करोड़ मियां मुसलमान अपना अलग राज्य क्यों नहीं मांग सकते?” देखा जाये तो बोडोलैंड आंदोलन से अतिक्रमणकारियों का अपनी तुलना करना न केवल गलत है, बल्कि यह राज्य के मूल निवासियों के संघर्ष का अपमान भी है। बोडोलैंड आंदोलन दशकों तक शांतिपूर्ण संघर्ष और जातीय पहचान पर आधारित था, जबकि मियांलैंड की मांग अवैध भूमि अतिक्रमण और संदेहास्पद नागरिकता वाले लोगों द्वारा की जा रही है।

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हम आपको बता दें कि “मियां” शब्द असम में बंगाली भाषी मुसलमानों के लिए प्रयुक्त होता है, जिनमें से अधिकांश बांग्लादेश से आए प्रवासियों के वंशज माने जाते हैं। हम आपको यह भी बता दें कि 1971 के बाद से लगातार अवैध घुसपैठ ने असम के कई जिलों की जनसांख्यिकी को गंभीर रूप से बदल दिया है। यह वही मुद्दा है जिसने 1979–1985 के असम आंदोलन को जन्म दिया था और अंततः असम समझौते तक पहुंचाया। परंतु दशकों बाद भी मूल निवासियों का मानना है कि इन वादों को पूरी तरह निभाया नहीं गया।
हम आपको बता दें कि गोलाघाट जिले के रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में लगभग 11,000 बीघा भूमि अवैध कब्जे में थी। यहां सुपारी की खेती और तस्करी जैसी अवैध गतिविधियां पनप रही थीं। सरकार ने पहले चरण में 4.2 हेक्टेयर भूमि को शांतिपूर्वक अतिक्रमणमुक्त कराया और 120 से अधिक अवैध दुकानों एवं ढांचों को ढहा दिया। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब मियां पहचान को टकरावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया हो। हम आपको याद दिला दें कि साल 2020 में पूर्व कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में “मियां म्यूजियम” बनाने का प्रस्ताव रखा था।
देखा जाये तो धार्मिक या भाषाई आधार पर अवैध बसने वालों द्वारा किसी अलग राज्य की मांग करना पूर्णतः असंवैधानिक है। बोडोलैंड आंदोलन वैध जातीय पहचान और लंबे संघर्ष पर आधारित था, जबकि मियांलैंड की मांग का कोई ऐतिहासिक या संवैधानिक आधार नहीं है। यह न केवल असम की अखंडता के लिए खतरा है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी चुनौती देता है। हम आपको बता दें कि असमिया, आदिवासी और मूल मुस्लिम समुदायों ने इस मांग का विरोध किया है। छात्र संगठनों, नागरिक समाज और सांस्कृतिक मंचों ने “असम की धरती पर नहीं बनेगा मियांलैंड” के नारे लगाए हैं। साथ ही इस मुद्दे पर कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई की चुप्पी को लेकर भी व्यापक आलोचना हो रही है। लोगों का आरोप है कि यह कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति का उदाहरण है।
वहीं, असम भाजपा ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस शासन के दौरान दशकों तक बांग्लादेशी घुसपैठ ने असम की जनसांख्यिकी को बदल दिया है। भाजपा प्रवक्ता किशोर कुमार उपाध्याय ने धुबरी, बारपेटा, दर्रांग, मोरीगांव और दक्षिण सालमारा जैसे जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में तीव्र वृद्धि के आंकड़े प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि यह प्रवृत्ति मूल निवासियों को अल्पसंख्यक बना रही है और अब इसे रोका जाना जरूरी है।
वहीं, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने एक बार फिर अतिक्रमण और अवैध घुसपैठ के खिलाफ अपनी सरकार की नीति स्पष्ट कर दी है। उन्होंने राज्य मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए जानकारी दी कि राज्य सरकार अब तक 182 वर्ग किलोमीटर भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त करा चुकी है। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि अब वही घुसपैठिए ‘मियांलैंड’ नामक अलग राज्य की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री सरमा ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि उनका यह सपना भारत में कभी पूरा नहीं होगा, हां, यदि वे चाहें तो बांग्लादेश या अफगानिस्तान में इसके लिए प्रयास कर सकते हैं और सरकार उन्हें वहां पहुंचाने में मदद करने के लिए तैयार है।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने प्रेस वार्ता में घोषणा की कि गुवाहाटी शहर में अवैध रूप से बसे लोगों और अतिक्रमणकारियों की पहचान के लिए सर्वे कराया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस सर्वे का असर असम के मूल निवासियों पर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यह कदम विशेषकर उन लोगों के खिलाफ है जो गुवाहाटी की पहाड़ियों में गैरकानूनी रूप से बस गए हैं। देखा जाये तो हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में असम सरकार अवैध घुसपैठियों की पहचान, गिरफ्तारी और देश से बाहर भेजने की दिशा में देश में अग्रणी बन चुकी है। असम सरकार का अतिक्रमण के खिलाफ यह कठोर रुख एक स्पष्ट संदेश है कि राज्य की भूमि पर अवैध कब्जा किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का कहना है कि असम के हित और सुरक्षा के लिए यह कार्रवाई हर हाल में जारी रहेगी।
बहरहाल, असम का इतिहास अपनी पहचान और भूमि की रक्षा का रहा है। आज राज्य को सीमापार घुसपैठ के साथ ही आंतरिक राजनीति के उन प्रयासों से भी खतरा है जो असम की जनसांख्यिकी और सांस्कृतिक वास्तविकता को बदलने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का संदेश स्पष्ट है- असम में अलगाववाद को जगह नहीं है, अवैध अतिक्रमण पर सख्त कार्रवाई होगी और राज्य की सांस्कृतिक व भौगोलिक अखंडता की हर कीमत पर रक्षा की जाएगी।
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