Wednesday, October 15, 2025
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Vanakkam Poorvottar: Delimitation और Hindi को लेकर Tamilnadu CM Stalin जो राजनीतिक चालें चल रहे हैं उसके मायने समझिये

तमिलनाडु सरकार ने विभिन्न मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है और एक ऐसा विमर्श गढ़ा जा रहा है कि मोदी सरकार तमिलनाडु के लोगों पर हिंदी थोपना चाहती है और संसदीय सीटों के परिसीमन के दौरान राज्य की सीटें घटा कर राष्ट्रीय राजनीति में उसका दबदबा कम करना चाहती है। इन आरोपों पर सफाई देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि परिसीमन की प्रक्रिया तमिलनाडु सहित दक्षिणी राज्यों को प्रभावित नहीं करेगी। वहीं केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु सरकार की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विरोध को ‘राजनीतिक’ करार दिया है। उन्होंने कहा है कि तीन भाषा के फॉर्मूले में छात्रों पर हिंदी नहीं थोपी जा रही और राज्य सरकार स्कूली शिक्षा पर कोई भी तीन भारतीय भाषाएं चुन सकती है। 
केंद्रीय मंत्रियों के स्पष्टीकरण के बावजूद तमिलनाडु सरकार अपने विमर्श को आगे बढ़ा रही है। इसी सिलसिले में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने लोकसभा सीटों के परिसीमन मुद्दे पर एक सर्वदलीय बैठक बुलाई। ऐसा तब है कि जब अभी देश में परिसीमन प्रक्रिया शुरू होने की कोई सुगबुगाहट ही देखने को नहीं मिल रही है। हम आपको बता दें कि सर्वदलीय बैठक में दक्षिणी राज्यों के सांसदों और पार्टी प्रतिनिधियों वाली एक संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) के गठन का प्रस्ताव रखा गया है। चेन्नई में हुई बैठक में प्रस्ताव पेश करते हुए स्टालिन ने कहा कि संसद में सीट की संख्या में वृद्धि की स्थिति में 1971 की जनगणना को इसका आधार बनाया जाना चाहिए। साथ ही, उन्होंने जोर देकर कहा कि 2026 से 30 वर्षों के लिए लोकसभा सीट के परिसीमन को लेकर 1971 की जनगणना को आधार बनाया जाना चाहिए और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संसद में इस बारे में आश्वस्त करना चाहिए।

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हम आपको बता दें कि प्रस्ताव के मुताबिक संयुक्त कार्रवाई समिति ऐसी मांगों को आगे बढ़ाएगी और लोगों के बीच जागरूकता पैदा करेगी। बैठक में सर्वसम्मति से जनसंख्या के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया का विरोध किया गया कहा गया कि यह ‘‘संघवाद और दक्षिणी राज्यों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व के अधिकारों के लिए खतरा होगा।’’ बैठक में रेखांकित किया गया कि तमिलनाडु संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के खिलाफ नहीं है। हालांकि, प्रस्तावित प्रक्रिया को पिछले 50 वर्षों के दौरान सामाजिक-आर्थिक कल्याण उपायों को अच्छी तरह से लागू करने के लिए सजा नहीं बनना चाहिए। बैठक में कहा गया कि केंद्र ने राज्य की आवाज सुनने से इनकार कर दिया, जहां 39 लोकसभा सांसद हैं। अगर यह संख्या कम कर दी गई तो यह राज्य के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सर्वदलीय बैठक इस बात को समझने के लिए है कि परिसीमन के मुद्दे पर राज्य को हाशिये पर धकेल दिया गया है, जिससे उसे अपने अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। स्टालिन ने आरोप लगाया, ‘‘दक्षिण भारत के सिर पर परिसीमन की तलवार लटक रही है और तमिलनाडु इससे बुरी तरह प्रभावित होगा।’’ हम आपको बता दें कि मुख्य विपक्षी दल ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक), कांग्रेस और वामपंथी दल, अभिनेता से नेता बने विजय की तमिलगा वेट्री कषगम (टीवीके) सहित अन्य ने बैठक में हिस्सा लिया। बैठक का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), तमिल राष्ट्रवादी नाम तमिलर काची (एनटीके) और पूर्व केंद्रीय मंत्री जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस (मूपनार) ने बहिष्कार किया।
हम आपको बता दें कि सत्तारुढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) परिसीमन की कवायद का कड़ा विरोध कर रही है। पार्टी अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री स्टालिन का दावा है कि इससे तमिलनाडु में लोकसभा की सीट कम हो जाएंगी। उन्होंने आश्चर्य जताया है कि क्या राज्य को पिछले कुछ साल में जनसंख्या नियंत्रण उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दंडित किया जा रहा है। हम आपको यह भी याद दिला दें कि हाल ही में स्टालिन ने युवाओं को शादी के तुरंत बाद बच्चे पैदा करने की सलाह दी और कहा कि अधिक जनसंख्या अधिक संसदीय सीटें पाने का मानदंड प्रतीत होती है। स्टालिन ने एक विवाह समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि कई साल पहले नवविवाहितों को सलाह दी जाती थी कि वे शादी के तुरंत बाद बच्चे पैदा न करें। उन्होंने कहा कि हालांकि, अब यह सलाह नहीं दी जानी चाहिए और इसकी कोई जरूरत भी नहीं है। स्टालिन ने कहा कि ऐसा इसलिए क्योंकि अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि अधिक जनसंख्या होने पर ही अधिक सांसद सुनिश्चित होंगे क्योंकि परिसीमन की प्रक्रिया जनसंख्या के आधार पर होगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ने जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान दिया और इसमें सफल रहा लेकिन अब राज्य इसका परिणाम भुगत रहा है। उन्होंने दूल्हा-दुल्हन से अपील करते हुए कहा, ‘‘मैं आपसे यह नहीं कहूंगा कि आप जल्दबाजी में बच्चे पैदा न करें, बल्कि तुरंत बच्चे पैदा करें; और उन्हें सुंदर तमिल नाम दें।’’
बहरहाल, देखा जाये तो द्रमुक नेता अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पहले अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान हटाने के लिए जिस तरह ‘बांटो और राज करो’ की नीति पर अमल कर रहे हैं वह कोई नई बात नहीं है। हाल ही में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने दावा किया था कि द्रविड़ विचारधारा ने पिछले 60-70 वर्षों में आर्यों और द्रविड़ों के बीच मतभेदों की कहानी गढ़ी है। उन्होंने कहा था कि भारतीय साहित्य में आर्य शब्द का इस्तेमाल जाति के रूप में नहीं किया गया है। उन्होंने कहा था कि संगम या वैदिक साहित्य में से किसी ने भी आर्य शब्द का इस्तेमाल जाति के रूप में नहीं किया है।
राज्यपाल ने डीजी वैष्णव कॉलेज में ‘सिंधु सभ्यता: इसकी संस्कृति और लोग- पुरातात्विक अंतर्दृष्टि’ पर दो दिवसीय सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कहा, ‘‘वास्तव में, तमिल साहित्य में भी आर्य शब्द का इस्तेमाल जाति के रूप में नहीं किया गया है। पिछले 60-70 वर्षों में द्रविड़ विचारधारा ने आर्यों और द्रविड़ों के बीच मतभेदों की कहानी गढ़ी है।’’ रवि ने अपने भाषण में इस बात पर रोशनी डाली कि किस तरह वेदों के माध्यम से इस सभ्यता द्वारा दिए गए ज्ञान ने हजारों वर्षों से भारत और उसकी संस्कृति के विचार और पहचान को आकार दिया है और कैसे सृष्टि की एकता और सार्वभौमिक भाईचारे के इसके मूल्य हमारे व्यक्तिगत, राष्ट्रीय और वैश्विक दृष्टिकोण को परिभाषित और प्रेरित करते रहते हैं। उन्होंने लोगों से इस सभ्यता को लंबे समय से चली आ रही बौद्धिक और राजनीतिक हिंसा से बचाने का आग्रह किया, जो यूरोपीय उपनिवेशवादियों के साथ-साथ ‘मार्क्सवादी और द्रविड़ विचारधाराओं से जुड़े लोगों द्वारा विकृतियों और गलत व्याख्याओं के माध्यम से की गई है, जिन्होंने आर्य आक्रमण और आर्य जाति के सिद्धांतों का झूठा प्रचार किया।’
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