अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह कहना कि “एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा”, सुनने में तो हास्यास्पद लगता ही है साथ ही यह व्यवहारिक रूप से असंभव भी है। इसके पीछे कई ठोस कारण हैं। जैसे- पाकिस्तान खुद कच्चे तेल के मामले में लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर है। उसका घरेलू उत्पादन बेहद कम है और ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व या अब अमेरिका से आने वाले आयात पर टिका है। ऐसे में पाकिस्तान के पास अधिशेष तेल उत्पादन नहीं है जिसे वह निर्यात कर सके।
इसके अलावा, पाकिस्तान की रिफाइनिंग क्षमता सीमित है और वर्तमान में यह पूरी तरह से अपनी घरेलू मांग को पूरा करने में ही संघर्ष कर रहा है। नई रिफाइनिंग इकाइयों और निर्यात-उन्मुख बुनियादी ढांचे के बिना तेल निर्यात करना असंभव है। साथ ही भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चले आ रहे राजनीतिक और सुरक्षा संबंध इतने तनावपूर्ण हैं कि ऊर्जा व्यापार जैसा महत्वपूर्ण कदम तुरंत संभव नहीं है। दोनों देशों के बीच व्यापार कई बार बंद होता रहा है, ऐसे में तेल जैसी रणनीतिक वस्तु का निर्यात राजनीतिक दृष्टि से भी असंभव है। इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर संकट से जूझ रही है। डॉलर भंडार की कमी, बढ़ता व्यापार घाटा और महंगाई को देखते हुए वह ऊर्जा आयात पर ही खर्च वहन नहीं कर पा रहा, निर्यात का विचार दूर की कौड़ी है।
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देखा जाये तो ट्रंप का बयान एक आशावादी या राजनीतिक बयानबाजी के तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि पाकिस्तान की वर्तमान आर्थिक, तकनीकी और राजनीतिक परिस्थितियों में भारत को तेल बेचना निकट भविष्य में संभव नहीं है। इसके लिए पाकिस्तान को न केवल अपनी ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ानी होगी, बल्कि भारत से संबंधों में अभूतपूर्व सुधार भी करना होगा, जो असंभव-सी बात है।
अमेरिका से डील को पाक को क्या फायदे होंगे?
वहीं अमेरिका के साथ पाकिस्तान की जो डील हुई है उसे पाकिस्तान के ही संदर्भ में देखें तो निश्चित रूप से इससे उसे लाभ होगा। अमेरिका के साथ हुई ऑयल डील पाकिस्तान के लिए ऊर्जा और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर सकती है। पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा फायदा यह है कि पाकिस्तान को अब कच्चे तेल के स्रोतों में विविधता मिलेगी। अब तक पाकिस्तान लगभग पूरा तेल आयात मध्य पूर्व से करता था, जिससे आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा आने पर उसका ऊर्जा संकट गहरा सकता था। अमेरिकी कच्चे तेल का आयात इस निर्भरता को कम करेगा और आपूर्ति के नए विकल्प उपलब्ध कराएगा।
दूसरा बड़ा लाभ ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा है। हम आपको बता दें कि अमेरिकी WTI (West Texas Intermediate) कच्चा तेल पाकिस्तान की रिफाइनिंग क्षमता के अनुरूप है और इसके लिए किसी अतिरिक्त तकनीकी बदलाव की आवश्यकता नहीं होगी। इससे रिफाइनिंग लागत पर दबाव नहीं बढ़ेगा और घरेलू स्तर पर ऊर्जा उपलब्धता स्थिर रहेगी। कूटनीतिक दृष्टि से यह डील अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में सुधार का संकेत भी देती है। अमेरिका के साथ बेहतर संबंध पाकिस्तान के लिए वैश्विक व्यापार और निवेश के नए अवसर खोल सकते हैं। साथ ही, यह डील पाकिस्तान को अमेरिका की राजनीतिक और आर्थिक सहायता पाने में मदद कर सकती है, खासकर तब जब देश आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
यदि यह आयात सौदा व्यावसायिक रूप से सफल रहता है, तो पाकिस्तान हर महीने नियमित रूप से अमेरिकी कच्चा तेल आयात कर सकेगा। इससे घरेलू बाजार में ऊर्जा की उपलब्धता बढ़ेगी, आयात बिल पर सकारात्मक असर पड़ेगा और ऊर्जा क्षेत्र में लंबे समय तक स्थिरता बनी रहेगी। देखा जाये तो यह ऑयल डील पाकिस्तान के लिए न केवल ऊर्जा आपूर्ति को सुरक्षित करने का एक अवसर है बल्कि अमेरिका के साथ संबंधों में नई मजबूती लाने का भी संकेत है। हालांकि, इसका पूरा लाभ तभी मिलेगा जब पाकिस्तान इसे दीर्घकालिक रणनीति में बदल सके और घरेलू उत्पादन व मांग को संतुलित कर सके।
अमेरिका से तेल लाने की तैयारी में जुटा पाकिस्तान
दूसरी ओर, पाकिस्तान और अमेरिका के बीच ऑयल डील होने के बाद पाकिस्तान की सबसे बड़ी रिफाइनिंग कंपनी Cnergyico ने अक्टूबर में अमेरिकी ऊर्जा कंपनी Vitol से 10 लाख बैरल (1 मिलियन बैरल) कच्चा तेल आयात करने की घोषणा कर भी दी है। कंपनी के उपाध्यक्ष उसामा कुरैशी ने बताया कि यह पाकिस्तान का अमेरिकी कच्चे तेल का पहला आयात होगा, जो हाल ही में हुए एक ऐतिहासिक व्यापार समझौते के बाद संभव हुआ है।
उसामा कुरैशी के अनुसार यह अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) लाइट क्रूड का एक परीक्षण कार्गो है, जो इस महीने ह्यूस्टन से रवाना होगा और अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में कराची पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि यदि यह आयात व्यावसायिक रूप से लाभकारी साबित हुआ और आपूर्ति स्थिर रही, तो कंपनी हर महीने कम से कम एक कार्गो आयात करने पर विचार कर सकती है। यह खेप केवल घरेलू प्रसंस्करण के लिए होगी और पुनर्विक्रय के उद्देश्य से नहीं।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि पाकिस्तान के वित्त और पेट्रोलियम मंत्रालयों ने अप्रैल में शुल्क बढ़ोतरी की धमकी के बाद स्थानीय रिफाइनरियों को अमेरिकी कच्चे तेल के विकल्प तलाशने के लिए प्रोत्साहित किया था। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान तेल के मामले में पूरी तरह दूसरों पर निर्भर है। वित्त वर्ष 2024-25 में इसके तेल आयात का मूल्य 11.3 अरब डॉलर था, जो कुल आयात बिल का लगभग 20% है।
हम आपको बता दें कि Cnergyico वर्तमान में प्रति दिन 1,56,000 बैरल कच्चे तेल को प्रोसेस करने की क्षमता रखती है और कराची के पास देश का एकमात्र सिंगल-पॉइंट मूरिंग टर्मिनल संचालित करती है, जिससे यह बड़े टैंकरों को संभाल सकती है। कंपनी अगले पांच-छह वर्षों में दूसरी ऑफशोर टर्मिनल लगाने और अपनी रिफाइनरी को अपग्रेड करने की योजना बना रही है। स्थानीय मांग में सुस्ती के कारण कंपनी फिलहाल 30-35% क्षमता पर काम कर रही है, लेकिन कुरैशी को उम्मीद है कि घरेलू मांग बढ़ने और स्थानीय उत्पादन को प्राथमिकता मिलने पर उत्पादन दर बढ़ाई जाएगी।
बहरहाल, पाकिस्तान द्वारा अमेरिकी कच्चे तेल का यह पहला आयात ऊर्जा स्रोतों के विविधीकरण, मध्य पूर्व पर निर्भरता कम करने और अमेरिका के साथ संबंध सुधारने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है। Cnergyico के लिए यह एक बड़ा अवसर है, क्योंकि इससे न केवल ऊर्जा आपूर्ति सुरक्षित होगी, बल्कि भविष्य में घरेलू मांग बढ़ने पर उत्पादन क्षमता में भी तेजी आ सकती है। यह कदम दक्षिण एशिया की ऊर्जा और कूटनीतिक परिदृश्य में नए समीकरण पैदा कर सकता है। लेकिन कुल मिलाकर देखें तो इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेचेगा।
-नीरज कुमार दुबे