भारत ने काबुल में अपने तकनीकी मिशन को दूतावास के दर्जे में अपग्रेड करने की घोषणा की है जो भारत-अफगानिस्तान संबंधों में एक ऐतिहासिक मोड़ है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और तालिबान सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के बीच नई दिल्ली में हुई द्विपक्षीय बातचीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत और अफगानिस्तान, दोनों राष्ट्र अपने साझा हितों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करने के इच्छुक हैं। देखा जाये तो यह कदम केवल राजनयिक रूप से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसके सामरिक और भू-राजनीतिक प्रभाव भी व्यापक हैं।
सबसे पहले, यह निर्णय भारत की दक्षिण और मध्य एशियाई रणनीति में स्थायित्व और प्रभाव को बढ़ाने की दिशा में एक स्पष्ट संकेत है। 2021 में अमेरिकी और NATO बलों की अफगानिस्तान से वापसी और तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत ने अपनी कूटनीतिक उपस्थिति को सीमित कर दिया था। चार साल के ठहराव के बाद तकनीकी मिशन को दूतावास में परिवर्तित करना यह दर्शाता है कि भारत अब तालिबान-शासित अफगानिस्तान के साथ अपनी व्यावहारिक और रणनीतिक भागीदारी को बढ़ाने का इरादा रखता है।
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भारत का यह कदम अफगानिस्तान के विकास में योगदान के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। जयशंकर ने न केवल काबुल में भारत की मदद और परियोजनाओं का जिक्र किया, बल्कि भारतीय कंपनियों को अफगानिस्तान में खनिज संसाधनों में निवेश के अवसरों के लिए आमंत्रित किया। यह आर्थिक पहलें दोनों देशों के बीच व्यापारिक और निवेश संबंधों को सशक्त करेंगी और अफगान अर्थव्यवस्था को वैध विकास मार्ग पर लाने में मदद करेंगी। साथ ही, यह कदम अफगानिस्तान को क्षेत्रीय सहयोग और वैश्विक निवेश के लिए आकर्षक बनाता है।
सामरिक दृष्टि से भी इस अपग्रेडेशन का प्रभाव महत्वपूर्ण है। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत और अफगानिस्तान को साझा रूप से सीमा पार आतंकवाद के खतरे का सामना करना है। यह कथन पाकिस्तान पर अप्रत्यक्ष टिप्पणी के रूप में भी लिया जा सकता है, क्योंकि पिछले कई दशकों में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पार आतंकवादी गतिविधियों को लेकर विवाद रहा है। अफगान विदेश मंत्री मुत्तकी ने भी कहा कि उनके देश की भूमि किसी भी अन्य राष्ट्र या समूह के खिलाफ उपयोग नहीं होगी, जो पाकिस्तान को संदेश है कि काबुल अब भारत के साथ अधिक निकटता से जुड़ रहा है।
पाकिस्तान के लिए यह नए भू-राजनीतिक समीकरण चुनौतीपूर्ण हैं। यदि भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय सहयोग सुदृढ़ होता है, तो इस्लामाबाद की रणनीतिक अहमियत कम हो सकती है। अफगानिस्तान पर पारंपरिक प्रभाव बनाए रखने के लिए पाकिस्तान ने वर्षों से शरणार्थी प्रवाह, राजनीतिक समर्थन और सुरक्षा गारंटी का इस्तेमाल किया है। अब काबुल के भारत के करीब आने से पाकिस्तान के इन पुराने लाभों में कमी आने की संभावना है। साथ ही, अफगानिस्तान में भारतीय निवेश और परियोजनाओं का विस्तार पाकिस्तान के आर्थिक और सामरिक प्रभुत्व को भी प्रभावित कर सकता है।
क्षेत्रीय भू-राजनीति की दृष्टि से यह कदम भारत के लिए एक बड़ा लाभ है। अफगानिस्तान पर प्रभाव बढ़ाने के साथ ही भारत ईरान, मध्य एशिया और चीन की गतिविधियों के बीच संतुलन बनाने में भी सक्षम होगा। अफगानिस्तान में स्थिरता और विकास सुनिश्चित होने से मध्य एशिया तक भारत की पहुँच और व्यापार मार्गों की सुरक्षा मजबूत होगी। इसके अलावा, अमेरिकी और यूरोपीय सहयोगियों के साथ तालमेल में यह भारत की वैश्विक कूटनीतिक स्थिति को भी सुदृढ़ करता है।
देखा जाये तो यहां मानवीय पहलू भी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत ने अफगानिस्तान में हालिया भूकंप राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दवाइयां, उपकरण और एम्बुलेंस भेजी। यह केवल कूटनीतिक शिष्टाचार नहीं, बल्कि वास्तविक सहयोग की मिसाल है, जो अफगान जनता में भारत के प्रति भरोसा और स्नेह बढ़ाता है। एशियाई सहयोग और लोगों के बीच संबंधों के विकास में यह कदम विशेष रूप से रणनीतिक है। भारत ने आज अफगानिस्तान की मदद के लिए एम्बुलेंस भी सौंपी हैं।
कुल मिलाकर, भारत और अफगानिस्तान के बीच संबंधों का यह नया अध्याय न केवल द्विपक्षीय सहयोग को मजबूती देता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा और आर्थिक विकास में भी योगदान करता है। पाकिस्तान के लिए यह एक चेतावनी भी है कि अब अफगानिस्तान का मोर्चा केवल उसके पक्ष में नहीं रहेगा। भारत की सक्रिय भागीदारी और काबुल के साथ मजबूत कनेक्शन से दक्षिण एशिया में सामरिक संतुलन और नई संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं।
आगे चलकर, यदि भारत अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं, व्यापारिक अवसरों और कूटनीतिक सहयोग को निरंतर बनाए रखता है, तो यह क्षेत्र में एक स्थायी सामरिक और आर्थिक स्थिति तैयार करेगा। ऐसे में केवल भारत और अफगानिस्तान ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए स्थिरता और सहयोग की नई राह खुल सकती है। यह संकेत साफ है कि नई दिल्ली अब अपनी पड़ोस नीति में अधिक निर्णायक, सक्रिय और रणनीतिक भूमिका निभाने को तैयार है।
कुल मिलाकर देखें तो भारत-अफगानिस्तान संबंधों का यह मजबूत पड़ाव क्षेत्रीय भू-राजनीति, सामरिक संतुलन और आर्थिक सहयोग के लिहाज से निर्णायक है। यह पाकिस्तान के पुराने प्रभाव को चुनौती देता है, दक्षिण एशिया में स्थिरता और सुरक्षा बढ़ाता है, और भारत की क्षेत्रीय नेतृत्व क्षमता को मजबूती प्रदान करता है।
बहरहाल, भारत, अफगानिस्तान संबंधों में इस सुधार को भारत की तालिबान शासन को वैधता देने जैसी कार्रवाई के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। भारत का फैसला केवल राजनयिक उपस्थिति और संवाद को बनाए रखने का कदम है। भारत ने अब तक तालिबान शासन को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है। जहां तक अफगान विदेश मंत्री के भारत दौरे के बात है तो आपको यह भी बता दें कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर से मुलाकात के अलावा उनकी कुछ और अधिकारियों से मिलने की योजना है ताकि अफगान संबंधी मुद्दों पर मदद हासिल की जा सके।
-नीरज कुमार दुबे