रूस और बेलारूस द्वारा शुरू किया गया “ज़ापाद-2025” सैन्य अभ्यास केवल एक नियमित युद्धाभ्यास नहीं है; यह NATO की सीमा के पास एक स्पष्ट शक्ति प्रदर्शन और राजनीतिक संदेश भी है। बाल्टिक और बारेंट्स सागर में फैले इस अभ्यास ने यह संकेत दे दिया है कि रूस न केवल अपनी सैन्य तैयारी को मजबूत कर रहा है, बल्कि पश्चिमी दुनिया को चेतावनी देने की रणनीति भी अपना रहा है। यह अभ्यास, ऐसे समय में हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध अपने निर्णायक चरण में है और सीमाओं के पार सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा रहा है।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने अभ्यास के उद्देश्य को सैन्य प्रशिक्षण और कमांडरों की क्षमता सुधारना बताया है। इस प्रशिक्षण के तहत पहले चरण में काल्पनिक हमले का सामना करने की तैयारी होगी, जबकि दूसरे चरण में “यूनियन स्टेट” की अखंडता बहाल करने और मित्र राष्ट्रों के सहयोग से दुश्मन को कुचलने पर जोर होगा। हालांकि Kremlin ने इसे किसी विशेष देश के खिलाफ नहीं बताया, लेकिन पोलैंड में ड्रोन घटनाओं ने पश्चिम में चिंता बढ़ा दी है। देखा जाये तो यह पहली बार है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष का प्रत्यक्ष प्रभाव NATO के सदस्य देशों की सीमाओं तक पहुँच गया है।
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दूसरी ओर, पोलैंड की प्रतिक्रिया इस खतरे की गंभीरता को दर्शाती है। देश ने अपने हवाई क्षेत्र में घुस आए रूसी ड्रोन को नष्ट किया, बेलारूस सीमा को बंद कर दिया और NATO सहयोगियों की मदद ली। यह घटना केवल सैन्य प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि यूरोप में सामूहिक सुरक्षा का एक संकेत भी है। इसके अलावा, फ्रांस ने तुरंत तीन राफेल जेट्स तैनात किए, जबकि डेनमार्क ने अपने हवाई सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ करने के लिए बड़े पैमाने पर यूरोपीय निर्मित हवाई रक्षा प्रणाली खरीदने का निर्णय लिया। यह स्पष्ट संदेश है कि यूरोप रूस की बढ़ती धमकियों को गंभीरता से ले रहा है और सामरिक तैयारियों में तेजी ला रहा है।
इस तनावपूर्ण परिदृश्य में, यूक्रेन ने भी अपनी रणनीति को तेज किया है। रूस के उत्तर-पश्चिमी पोर्ट Primorsk पर ड्रोन हमलों ने रूस के ऊर्जा आपूर्ति तंत्र को चुनौती दी है। यूक्रेन की ये कार्रवाई यह दर्शाती है कि युद्ध केवल मोर्चों तक सीमित नहीं है; यह रूस के घरेलू ऊर्जा संसाधनों और आर्थिक हितों तक फैल गया है। रूस ने ड्रोन हमलों से निपटने के लिए व्यापक हवाई रक्षा तंत्र लगाया और क्रूड निर्यात योजनाओं में बदलाव किया, लेकिन नागरिकों में चिंता और भय स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।
संपूर्ण परिदृश्य यह संकेत देता है कि यूरोप-पूर्व में सुरक्षा और शक्ति संतुलन अब पहले से कहीं अधिक जटिल और संवेदनशील हो गया है। रूस के अभ्यास, पोलैंड की सक्रिय प्रतिक्रिया और यूक्रेन के रणनीतिक हमले मिलकर यह दर्शाते हैं कि यह क्षेत्र अब केवल सैन्य संघर्ष का केंद्र नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन और ऊर्जा सुरक्षा का प्रमुख स्थल बन गया है।
निश्चित रूप से, “ज़ापाद-2025” केवल सैन्य तैयारी नहीं, बल्कि यूरोप में रणनीतिक और राजनीतिक संदेश भी है। NATO और यूरोपीय देश यह स्पष्ट कर रहे हैं कि वे किसी भी तरह की धमकी या आक्रामकता के प्रति सतर्क हैं। वहीं, यूक्रेन की कार्रवाई यह संकेत देती है कि संघर्ष केवल मोर्चे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके बहुआयामी प्रभाव पूरे क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं।
इसलिए, इस समय यूरोप में सुरक्षा परिदृश्य अधिक संवेदनशील, अस्थिर और रणनीतिक दृष्टि से जटिल बन गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने NATO और रूस के बीच शक्ति संतुलन को चुनौती दी है और यह स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी सैन्य या राजनीतिक घटना का प्रभाव केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी देखने को मिल सकता है।
बहरहाल, रूस और बेलारूस का “ज़ापाद-2025” अभ्यास और पोलैंड, फ्रांस, डेनमार्क की सक्रिय सुरक्षा प्रतिक्रिया इस बात का प्रतीक है कि यूरोप में सुरक्षा केवल राष्ट्रीय सीमाओं तक सीमित नहीं रही। यह अब सामरिक तैयारी, ऊर्जा सुरक्षा और राजनीतिक संदेशों का समन्वित क्षेत्र बन गया है। NATO और पश्चिमी देश इस चुनौती के प्रति सजग हैं, लेकिन रूस-यूक्रेन संघर्ष का विस्तार और उसकी अप्रत्याशित घटनाएं यूरोप में अस्थिरता की संभावनाओं को भी बढ़ा रही हैं। रूस के शक्ति प्रदर्शन और NATO के सीमाओं पर बढ़ते खतरे ने यूरोप के सुरक्षा दृष्टिकोण को पूरी तरह बदल दिया है। अब सतर्क रहना और सामरिक तैयारी करना ही यूरोप की स्थिरता और सुरक्षा की गारंटी हो सकती है।
– नीरज कुमार दुबे