भारत और चीन के संबंधों में बीते कुछ वर्षों से चले आ रहे तनाव के बीच विदेश मंत्री एस. जयशंकर की चीन यात्रा और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात को बेहद अहम माना जा रहा है। यह मुलाकात इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जयशंकर की बीते छह वर्षों में पहली चीन यात्रा थी और ऐसे समय पर हुई है जब दोनों देशों के रिश्तों में सुधार के संकेत दिखाई दे रहे हैं। हम आपको याद दिला दें कि पूर्वी लद्दाख में लंबे समय तक चले सैन्य गतिरोध के बाद दोनों देशों के संबंध लगभग ठंडे पड़ गए थे। लेकिन अक्टूबर 2023 में दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को लेकर अहम सहमति बनी और तनाव कम करने के लिए सैन्य स्तर पर समाधान निकाला गया। उसी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कज़ान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान मुलाकात की और फिर से उच्च स्तरीय संवाद शुरू करने की नींव रखी गई। इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एस. जयशंकर की यह यात्रा और मुलाकात हुई है।
हम आपको यह भी बता दें कि एस. जयशंकर ने अपने दौरे के दौरान सोमवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी और उपराष्ट्रपति से द्विपक्षीय मुलाकात की थी। आज बीजिंग में एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक के दौरान जयशंकर ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। इस मुलाकात की जानकारी साझा करते हुए जयशंकर ने एक्स पर लिखा– “आज बीजिंग में एससीओ के अन्य विदेश मंत्रियों के साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश उन्हें सौंपे और भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में हाल के विकास से अवगत कराया। इस दिशा में हमारे नेताओं के मार्गदर्शन को हम महत्व देते हैं।”
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इसके अलावा, एससीओ (शंघाई सहयोग संगठन) की बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जिस दृढ़ता के साथ आतंकवाद के मुद्दे पर भारत का पक्ष रखा, उसने एक बार फिर यह साफ कर दिया कि भारत आतंकवाद को किसी भी परिस्थिति में स्वीकार करने को तैयार नहीं है और इसकी कोई भी सफाई या बहाना भारत को मंजूर नहीं है। यह बैठक विशेष रूप से इसलिए अहम थी क्योंकि इसमें चीन और पाकिस्तान दोनों ही मौजूद थे– ये वही देश हैं जिन पर भारत बार-बार आतंकवाद को प्रोत्साहित करने या उसे संरक्षण देने का आरोप लगाता है। इस पृष्ठभूमि में एस. जयशंकर का यह दोहराना कि एससीओ का मूल उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरवाद के खिलाफ लड़ना है, न सिर्फ एक कूटनीतिक संदेश था बल्कि पाकिस्तान और चीन के लिए स्पष्ट चेतावनी भी थी।
जयशंकर ने यह भी कहा कि आतंकवाद के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ (शून्य सहिष्णुता) की नीति सिर्फ भारत की नीति नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी है और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों को इसका ईमानदारी से पालन करना चाहिए। इस बयान के माध्यम से उन्होंने पाकिस्तान को घेरने का काम किया, जिसने पिछले वर्षों में बार-बार आतंकवादियों को पनाह देने के आरोप लगे हैं। साथ ही, चीन को भी यह संकेत दे दिया गया कि संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर आतंकी संगठनों और आतंकियों को बचाने की उसकी नीति वैश्विक जिम्मेदारियों के खिलाफ है। जयशंकर के इस कड़े रुख का संदेश सीधा और स्पष्ट था– भारत किसी भी बहुपक्षीय मंच पर अपने मूल हितों और सुरक्षा के मुद्दों से समझौता नहीं करेगा। देखा जाये तो भारत की विदेश नीति अब यह दिखा रही है कि कूटनीतिक सौहार्द के नाम पर वह आतंकवाद जैसे मुद्दों पर नरमी नहीं बरतेगा, चाहे वह बातचीत पाकिस्तान से हो या व्यापार चीन से। एससीओ बैठक में एस. जयशंकर ने न सिर्फ भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को दोहराया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खासकर चीन-पाकिस्तान को भी यह याद दिलाया कि भारत अब हर मंच पर आतंक के खिलाफ मुखर और निर्णायक भूमिका निभाता रहेगा। देखा जाये तो यह भारत के बदले हुए आत्मविश्वास और सख्त कूटनीतिक रवैये का प्रतीक है।
जहां तक जयशंकर की चीनी विदेश मंत्री के साथ वार्ता की बात है तो आपको बता दें कि इस द्विपक्षीय वार्ता में जयशंकर ने कहा कि बीते नौ महीनों में भारत-चीन संबंधों में “अच्छी प्रगति” हुई है, जिसका मुख्य कारण सीमा पर शांति और तनाव घटाना रहा है। उन्होंने कहा, “सीमा पर शांति ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक विश्वास और अच्छे संबंधों की बुनियाद है। अब समय आ गया है कि शेष मुद्दों पर भी गंभीरता से समाधान निकाला जाए, खासतौर पर डी-एस्केलेशन (तनाव घटाने) पर।”
जयशंकर ने यह भी दोहराया कि दोनों देशों के बीच मतभेद विवाद में न बदलें और प्रतिस्पर्धा कभी संघर्ष का रूप न ले। भारत-चीन के स्थिर और रचनात्मक संबंध न सिर्फ दोनों देशों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए लाभकारी होंगे। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव है जब दोनों देश आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर संबंधों को आगे बढ़ाएं। इसके साथ ही विदेश मंत्री ने चीन की निर्यात नीति और व्यापारिक प्रतिबंधों पर चिंता जताई, जो भारत के घरेलू निर्माण क्षेत्र को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने बीजिंग से कहा कि ऐसे ‘रोक-टोक वाले व्यापारिक उपायों’ से बचना चाहिए और द्विपक्षीय संबंधों में लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिए यात्रा सुगम बनाने, सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने और आपसी आदान-प्रदान को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाने चाहिए।
जयशंकर ने आतंकवाद पर भारत की सख्त नीति दोहराई और चीन को याद दिलाया कि इस संगठन का मूल उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरवाद से लड़ना है। उन्होंने कहा, “यह साझा चिंता है और भारत आशा करता है कि आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को सभी सदस्य देश पूरी मजबूती से लागू करें।” जयशंकर ने साथ ही सीमा पार नदियों के मसले पर भी सहयोग की आवश्यकता जताई और चीन से हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयरिंग (जल-स्तर आंकड़ों) को फिर से शुरू करने की बात रखी। इसके अलावा उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू होने के फैसले का स्वागत किया। यह यात्रा पांच वर्षों से रुकी हुई थी और इसे इस वर्ष से फिर से बहाल किया है।
जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग ने साझा हित के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा की तथा द्विपक्षीय यात्राओं और बैठकों सहित संपर्क में बने रहने पर सहमति व्यक्त की। उधर, बीजिंग में जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, वांग ने कहा कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में बड़ा परिवर्तन आया है और शक्तिशाली देशों द्वारा एकतरफा संरक्षणवाद एवं धौंस जमाए जाने जैसी चीजों ने विश्व के समक्ष गंभीर चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। उन्होंने कहा कि दो प्रमुख पूर्वी सभ्यताओं और प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं के नजदीक स्थित होने के कारण चीन और भारत को सद्भावना के साथ रहना चाहिए तथा पारस्परिक सफलता हासिल करनी चाहिए।
बहरहाल, एस. जयशंकर की यह यात्रा बताती है कि भारत अब चीन के साथ अपने संबंधों को बेहद व्यावहारिक और संतुलित नजरिए से देख रहा है। एक तरफ सीमा पर शांति की बात हो रही है तो दूसरी तरफ भारत अपने व्यापारिक हितों और रणनीतिक चिंताओं को खुलकर सामने रख रहा है। भारत जानता है कि चीन के साथ संबंध में हर कदम फूंक-फूंककर रखना होगा। हालांकि अभी संबंधों में पूरी तरह सामान्य स्थिति नहीं आई है लेकिन इस बार जो संवाद हो रहे हैं, वे भविष्य के लिए सकारात्मक संकेत जरूर हैं। आने वाले महीनों में प्रधानमंत्री मोदी की संभावित चीन यात्रा इस दिशा में अगला बड़ा कदम होगी।