ग्रेटर नोएडा के अखलाक लिंचिंग केस में उत्तर प्रदेश सरकार को एक बड़ा कानूनी झटका लगा है। सूरजपुर की जिला अदालत ने लिंचिंग आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने से जुड़ी योगी सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। जो याचिका मुकदमा वापस लेने के लिए जारी की दायर की गई थी। उसे अदालत ने साफ कर दिया है कि यह मामला बंद नहीं होगा और आरोपियों के खिलाफ ट्रायल जारी रहेगा। यूपी सरकार की ओर से दाखिल की गई केस वापसी की अर्जी पर अदालत ने सुनवाई के बाद तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने अभियोजन पक्ष यानी प्रोसीक्यूशन जो पक्ष है उसको उसकी दलीलों को आधारहीन और महत्वहीन यानी बेसलेस एंड इर्रेलेवेंट बताया। कहा कि केस वापस लेने के लिए कोई ठोस कानूनी वजह सामने नहीं रखी गई। इस फैसले के साथ ही यह साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की वो कोशिश जिसके जरिए अखलाक लिंचिंग के आरोपियों को राहत दिलाने की बात कही जा रही थी अब कानूनी तौर पर आगे नहीं बढ़ पाएगी। यह याचिका यूपी सरकार ने अक्टूबर 2025 में ट्रायल कोर्ट में दाखिल की थी। यह फैसला कानूनी और लोकतांत्रिक नजरिये, दोनों ही तरह से महत्वपूर्ण है। यह निर्णय बताता है कि न्याय व्यवस्था भावनाओं के हिसाब से नहीं चलती।
इसे भी पढ़ें: Unnao rape case: कुलदीप सेंगर की जमानत पर बवाल, महिलाएं बोलीं- यह अन्याय है, न्याय चाहिए
10 साल पुरानी घटना
सितंबर 2015 में ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा में भीड़ ने अखलाक की इस शक में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी कि उसके घर में गोमांस है। मॉब लिंचिंग की इस वारदात ने तब पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस मामले में 18 अभियुक्तों पर अभी केस चल रहा है और फिलहाल सभी जमानत पर हैं। इस साल अक्टूबर में अचानक से यूपी सरकार ने केस वापस लेने का फैसला ले लिया।
सरकार का तर्क
यूपी सरकार ने हवाला देते हुए सभी आरोपियों के खिलाफ मामला वापस लेने और नियोजनको संयुक्त निदेशक के अनुमति मांगने के लिए अदालत में याचिका निर्देशों के बाद सहायक जिला सरकारी अधिवक्ता (आपराधिक) द्वारा यह आवेदन दायर किया गया था। कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि अखलाक हत्याकांड में शामिल सभी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा आगे बढ़ेगा और मामले की नियमित सुनवाई होगी।
इसे भी पढ़ें: बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा जारी, दीपू चंद्र दास के बाद एक और की पीट-पीटकर हत्या, कानून-व्यवस्था पर सवाल
मॉब लिंचिंग में बेटा भी हुआ जख्मी, 19 पर था दर्ज हुआ था केस
28 सितंबर 2015 की रात प्रतिबंधित मांस को लेकर अफवाह फैली और भीड़ ने अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। पूरे देश में आक्रोश फैल गया था। अखलाक के बेटे दानिश (22) को भी गंभीर चोट लगी थी। पुलिस ने जांच के बाद कुल 19 लोगों को आरोपी बनाया था। सभी पर हत्या, दंगा भड़काने और जान से मारने की धमकी देने जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया था।
अखलाक के अधिवक्ता बोले-दर्ज होंगे बयान
अखलाक पक्ष के अधिवक्ता यूसुफ सैफी ने बताया कि अदालत ने अभियोजन पक्ष की ओर से लगाई गई याचिका को निरस्त कर दिया है। अभियोजन को आगे गवाहों के बयान दर्ज कराने को कहा गया है। अदालत ने पुलिस आयुक्त और डीसीपी को निर्देशित किया कि अगर जरूरत हो तो गवाहों को सुरक्षा दी जाए। इससे पहले इस केस में 12 और 18 दिसंबर को भी सुनवाई हो चुकी थी, लेकिन अभियोजन पक्ष के समय मांगने के कारण फैसला नहीं हो पाया था। सुनवाई के दौरान सीपीएम नेता नेता वृंदा करात भी कोर्ट पहुंची और कहा कि यह न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम है। इस फैसले से देश में महत्वपूर्ण संदेश जाएगा। यूपी सरकार ने न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश की थी। इससे पहले बिलकिस बानो केस में भी ऐसा करने का प्रयास किया गया था।

