सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि उसने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग वाली याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। इस याचिका में 14 और 15 मार्च की मध्य रात्रि में आकस्मिक आग लगने के दौरान उनके सरकारी आवास से कथित रूप से नकदी मिलने और निकाले जाने का आरोप है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने अधिवक्ता मैथ्यूज नेदुम्परा से कहा कि आपका मामला सूचीबद्ध हो गया है, जब उन्होंने पीठ से मामले की तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया। सीजेआई ने उनसे कोई सार्वजनिक बयान न देने को कहा और कहा कि वे रजिस्ट्री से सुनवाई की तारीख ले लेंगे।
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वकील ने पीठ से कहा कि केवल एक ही चीज़ (करने की ज़रूरत है) न्यायाधीश के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की जानी चाहिए। नेदुम्परा ने विवाद से संबंधित संचार और अन्य दस्तावेज़ों को सार्वजनिक करने के लिए सीजेआई की सराहना की। आपने एक शानदार काम किया है। मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि किसी व्यवसायी के पास इतनी बड़ी रकम पाई जाती तो प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग आदि एजेंसियां उसके पीछे पड़ जातीं।
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सर्वोच्च न्यायालय ने 1991 में के वीरास्वामी बनाम भारत संघ मामले में निर्णय दिया था कि किसी वर्तमान उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विरुद्ध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के अंतर्गत आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है। याचिका में इसे चुनौती दी गई है। उक्त निर्देश विशेषाधिकार प्राप्त पुरुषों/महिलाओं का एक विशेष वर्ग बनाता है, जो देश के दंड कानूनों से मुक्त है।