Friday, March 14, 2025
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Shaurya Path: PM Modi US-France Visit, China-Africa Relation, Russia-Ukraine War और Congo संबंधी मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रांस और अमेरिकी दौरे, चीन और अमेरिका संबंध, रूस-यूक्रेन युद्ध और कांगो में चल रहे आंतरिक संघर्ष से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार- 
प्रश्न-1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ्रांस दौरे का क्या महत्व रहा? इस दौरान जिन रक्षा उपकरणों की खरीद पर बात होनी थी वह भारत के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर- प्रधानमंत्री मोदी का दौरा भारत के लिए रणनीतिक और व्यापारिक, दोनों तरह से महत्वपूर्ण था और दोनों ही दिशा में प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने गहन एवं दीर्घकालिक रक्षा सहयोग पर जोर देते हुए भारत में ‘स्कॉर्पीन’ पनडुब्बियों के निर्माण में सहयोग की प्रगति की सराहना की तथा दोनों देशों ने मिसाइलों, हेलीकॉप्टर इंजन और जेट इंजन पर जारी चर्चाओं का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं की बातचीत के बाद जारी संयुक्त बयान के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने फ्रांसीसी सेना को पिनाका मल्टी-बैरल रॉकेट लॉन्च (एमबीआरएल) प्रणाली को करीब से देखने के लिए आमंत्रित किया और इस बात पर जोर दिया कि फ्रांस द्वारा इस प्रणाली का अधिग्रहण भारत-फ्रांस रक्षा संबंधों में एक और मील का पत्थर होगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दोनों नेताओं ने वैश्विक और क्षेत्रीय मामलों के अलावा असाधारण रूप से मजबूत और बहुआयामी द्विपक्षीय सहयोग के संपूर्ण पहलुओं पर द्विपक्षीय चर्चा की। उन्होंने कहा कि रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास साझेदारी को और मजबूत करने के लिए दोनों नेताओं ने डीजीए और डीआरडीओ के बीच रक्षा प्रौद्योगिकियों में सहयोग के लिए तकनीकी व्यवस्था के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास ढांचे को शीघ्र जारी करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं के बीच पश्चिम एशिया और यूक्रेन युद्ध सहित अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विस्तृत बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने स्वतंत्र, खुले, समावेशी, सुरक्षित और शांतिपूर्ण हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी साझा प्रतिबद्धता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने भारत में ‘स्कॉर्पीन’ पनडुब्बियों के निर्माण में सहयोग की प्रगति की सराहना की जिसमें स्वदेशीकरण भी शामिल है। उन्होंने कहा कि दोनों नेताओं ने 15 जनवरी को पी75 स्कॉर्पीन श्रेणी परियोजना की छठी और अंतिम पनडुब्बी आईएनएस वाघशीर के जलावतरण का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया है कि दोनों नेताओं ने रक्षा, अंतरिक्ष और असैन्य परमाणु सहयोग, स्वास्थ्य और लोगों के बीच संबंधों के क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की।

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प्रश्न-2. अमेरिका विदेशों को दी जा रही मदद कम कर रहा है ऐसे में चीन अपने लिये जगह बना रहा है। खासतौर पर चीन ने अफ्रीकी देशों को उनके अंतरिक्ष मिशन में जिस तरह सहयोग की पेशकश की है उसे एक उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
उत्तर- चीन ही नहीं बल्कि रूस भी इस अवसर का लाभ उठाने के प्रयास में है लेकिन चीन इस मामले में आगे निकल रहा है क्योंकि उसने अपने पांव फैलाने के प्रयास पहले ही शुरू कर दिये थे। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए मिस्र में काहिरा के बाहरी इलाके में एक अत्याधुनिक अंतरिक्ष प्रयोगशाला को घरेलू उपग्रहों का उत्पादन करने वाली अफ्रीका की पहली प्रयोगशाला माना जाता था। उन्होंने कहा कि ऐसी रिपोर्टें सामने आईं कि यहां सैटेलाइट उपकरण बीजिंग से आते हैं। उन्होंने कहा कि यहां असेंबल किया गया पहला उपग्रह, जिसे किसी अफ्रीकी राष्ट्र द्वारा बनाया गया पहला उपग्रह माना जाता है, मुख्य रूप से चीन में बनाया गया था और दिसंबर 2023 में वहां एक स्पेसपोर्ट से लॉन्च किया गया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मिस्र की उपग्रह प्रयोगशाला चीन के गुप्त विदेशी अंतरिक्ष कार्यक्रम के तहत आती है। उन्होंने कहा कि एक विदेशी समाचार एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसे पता चला है कि बीजिंग अपने वैश्विक निगरानी नेटवर्क को बढ़ाने और दुनिया की प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने की कोशिश को आगे बढ़ाने के लिए अफ्रीका में अंतरिक्ष गठबंधन बना रहा है। उन्होंने कहा कि चीन ने सार्वजनिक रूप से अफ्रीकी देशों को इस अंतरिक्ष सहायता की घोषणा की है, जिसमें उपग्रहों, अंतरिक्ष निगरानी दूरबीनों और ग्राउंड स्टेशनों का निर्माण भी शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की रिपोर्टें हैं कि बीजिंग के पास इस अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से एकत्र किए गए डेटा तक पहुंच है और चीनी कर्मचारी अफ्रीका में अपनी दीर्घकालिक उपस्थिति बनाए रखते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस, नामक एक थिंक टैंक के अनुसार बीजिंग की अफ्रीका में 23 द्विपक्षीय अंतरिक्ष साझेदारियाँ हैं, जिसमें सैटेलाइट इमेजरी और डेटा एकत्र करने के लिए उपग्रहों और ग्राउंड स्टेशनों के लिए फंडिंग भी शामिल है। उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष मिस्र, दक्षिण अफ्रीका और सेनेगल चीन के साथ सहयोग करने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी परियोजना है जो अमेरिका की चंद्र योजनाओं की प्रतिद्वंद्वी है। उन्होंने कहा कि पिछले साल सितंबर में बीजिंग में दर्जनों अफ्रीकी नेताओं के साथ चीनी राष्ट्रपति शी ने बैठक की थी और कहा था कि उनके लिए अगले तीन वर्षों में अफ्रीका के लिए 50 अरब डॉलर के चीनी ऋण और निवेश प्राथमिकता में होंगे। उन्होंने कहा कि शी का प्रशासन सार्वजनिक रूप से कहता है कि वह अफ्रीकी अंतरिक्ष कार्यक्रमों को बढ़ावा देने में मदद कर रहा है क्योंकि चीन चाहता है कि कोई भी देश पीछे न छूटे क्योंकि अर्थव्यवस्थाएं और सेनाएं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी पर तेजी से निर्भर हो रही हैं। उन्होंने कहा कि निजी तौर पर चीन को अपने निवेश के बदले कहीं अधिक मिल रहा है। उन्होंने कहा कि पेंटागन का भी कहना है कि अफ्रीका और विकासशील दुनिया के अन्य हिस्सों में चीन की अंतरिक्ष परियोजनाएं एक सुरक्षा जोखिम हैं क्योंकि बीजिंग संवेदनशील डेटा को छिपा सकता है, अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ा सकता है और अगर वे चीन के संचार पारिस्थितिकी तंत्र में तब्दील हो जाते हैं तो सरकारों को मजबूर कर सकते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे तो चीन अफ्रीका में जो अंतरिक्ष अवसंरचना और उपकरण स्थापित कर रहा है, उसका सामान्य नागरिक उपयोग है जैसे डेटा संचारित करना, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की निगरानी करना और अंतरिक्ष यान को उड़ाने में मदद करना। लेकिन उनके पास सैन्य अनुप्रयोग भी हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वे भविष्यवाणी कर सकते हैं कि अमेरिकी सैन्य उपग्रह कब ऊपर से गुजरेंगे और एंटी-सैटेलाइट हथियारों (एएसएटी) के उपयोग को समन्वित करने में मदद करेंगे। उन्होंने कहा कि चीन निर्मित विदेशी स्वामित्व वाले उपग्रहों की एक विस्तृत श्रृंखला तक पहुंच बीजिंग को सैन्य अभियानों को बेहतर ढंग से समन्वयित करने की क्षमता प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि ये उपग्रह चीन को दुनिया भर में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों की स्पष्ट तस्वीर भी दे सकते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चीन के विदेशी ग्राउंड स्टेशन, जैसे एक उसने इथियोपिया में बनाया है और दूसरा वह नामीबिया के साथ योजना बना रहा है, का उपयोग सैन्य अभियानों के समन्वय, मिसाइल प्रक्षेपणों पर नज़र रखने और अन्य देशों की अंतरिक्ष संपत्तियों की निगरानी के लिए किया जा सकता है। वे डेटा संग्रह बुनियादी ढांचे के एक विशाल वैश्विक नेटवर्क को भी जोड़ते हैं, जिसमें समुद्र के नीचे इंटरनेट केबल और 5जी नेटवर्क शामिल हैं। उन्होंने कहा कि कई मायनों में चीन की अंतरिक्ष कूटनीति उस रणनीति को प्रतिबिंबित करती है जिसे अमेरिका दशकों से लागू कर रहा है। उन्होंने कहा कि एक और चीज देखने को मिल रही है कि कुछ अफ्रीकी सरकारें चीन के बारे में अमेरिका की सुरक्षा चेतावनियों से थक गई हैं और इस बात में अधिक रुचि रखती हैं कि कौन-सा देश धन और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी प्रदान करने जा रहा है।
प्रश्न-3. रूस-यू्क्रेन युद्ध में ताजा अपडेट क्या है? क्या मोदी-ट्रंप मिलकर इस युद्ध का समाधान निकाल पाएंगे?
उत्तर- मोदी-ट्रंप मुलाकात में इस मामले पर चर्चा हुई और उम्मीद है कि अब जल्द ही यूएई में होने वाली वार्ता के दौरान जब ट्रंप और व्लादीमिर पुतिन आमने सामने बैठेंगे तो इस युद्ध का समापन हो जायेगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत के दरवाजे खोल दिए हैं, जिससे शांति की उम्मीदें बढ़ गई हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि देखना होगा कि अपनी शर्तों पर युद्ध का समापन चाह रहे रूस की हर बात क्या यूक्रेन मान लेगा। उन्होंने कहा कि वैसे एक बात तो दिख रही है कि पुतिन ने ट्रंप का न्यौता स्वीकार कर संकेत दिया है कि वह भी अब युद्ध के समापन के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा कि अपने तीन साल पूरे करने जा रहा यह युद्ध अब शीघ्र ही समाप्त हो सकता है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ट्रंप प्रशासन स्पष्ट कर चुका है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता नहीं दी जायेगी। यही नहीं ट्रंप तो रूस को वापस जी-7 में लाना चाहते हैं। उन्होंने कहा है कि बराक ओबामा ने रूस को जी-7 से बाहर कर गलती की थी। उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूसी राष्ट्रपति को “हत्यारा तानाशाह” और “ठग” बताया था, लेकिन ट्रंप ऐसी सोच नहीं रखते। उन्होंने कहा कि ट्रंप ने तो 2024 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान भी वादा किया था कि वह पद की शपथ लेने के बाद “24 घंटों” के भीतर युद्ध समाप्त कर देंगे। उन्होंने कहा कि यदि ट्रंप के प्रयास सफल होते हैं, तो यह उनकी बड़ी सफलता और दुनिया के लिए बड़ी राहत की बात होगी। उन्होंने कहा कि इस बात के साफ संकेत मिल रहे हैं कि यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को बेमन से रूस की शर्तों को स्वीकार कर युद्ध मैदान से बाहर होना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी प्रशासन यह भी कह चुका है कि भविष्य में कोई भी अमेरिकी सैनिक यूक्रेन के लिए प्रतिबद्ध नहीं होगा, यूक्रेन को नाटो में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया जाएगा और रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने से पहले यूक्रेन के 2014 से पहले की सीमाओं पर लौटने के विकल्प को वस्तुतः खारिज कर दिया जाएगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इस मुद्दे पर मोदी-ट्रंप ने जो वार्ता की उस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध समाप्त कराने के अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों का स्वागत किया तथा इस बात पर जोर दिया कि संघर्ष का समाधान युद्ध के मैदान में नहीं खोजा जा सकता तथा शांति के लिए वार्ता और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है। उन्होंने कहा कि मोदी ने कहा कि भारत युद्ध के मामले में तटस्थ नहीं रहा है और वह शांति का पक्षधर है। उन्होंने कहा कि मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दिए अपने संदेश का जिक्र किया जिसमें उन्होंने पुतिन से कहा था कि ‘यह युद्ध का युग’ नहीं है। उन्होंने कहा कि वहीं ट्रंप ने कहा कि उन्होंने पुतिन के साथ लंबी और सार्थक बातचीत की और वह युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत की दिशा में आगे बढ़ने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यहां तक कहा कि वह और पुतिन अपनी-अपनी टीम द्वारा तुरंत बातचीत शुरू किए जाने पर सहमत हुए।
प्रश्न-4. कांगो में चल रहे आंतरिक युद्ध का कारण क्या है और वहां के प्रकरण से दुनिया को क्या सीख लेने की जरूरत है?
उत्तर- वहां बरसों से चल रहे आंतरिक संघर्ष से एक चीज तो स्पष्ट है कि यूएन शांति सेना वहां के हालात को काबू कर पाने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि कांगो में ही सबसे बड़ी यूएन शांति सेना तैनात है जिस पर अरबों रुपया खर्च होता है लेकिन वहां के हालात कभी भी सामान्य नहीं हो पाते हैं। उन्होंने कहा कि कई रिपोर्टें दर्शाती हैं कि यूएन शांति सेना पर ही विद्रोहियों का समर्थन करने के आरोप लग जाते हैं। उन्होंने कहा कि वहां सबसे बड़ी समस्या है कि स्थानीय लोगों को दबाया जाता है और उनकी बात नहीं सुनी जाती जिसके चलते संघर्ष बढ़ते रहते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि कांगो के पड़ोस में स्थित रवांडा द्वारा समर्थित M23 विद्रोहियों ने दक्षिण किवु प्रांत में कांगो के सरकारी बलों पर हमला किया है, जिससे शांति की संभावना कम हो गयी है। उन्होंने कहा कि पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीकी नेताओं के शिखर सम्मेलन में तत्काल और बिना शर्त युद्धविराम के आह्वान के तीन दिन बाद भारी गोलाबारी शुरू हुई। उन्होंने कहा कि विद्रोहियों ने प्रमुख शहर गोमा सहित पूर्वी डीआर कांगो में बड़े पैमाने पर भूमि पर कब्जा कर लिया है और वे अब क्षेत्र के एक अन्य प्रमुख शहर दक्षिण किवु की राजधानी बुकावु की ओर बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी की शुरुआत से वहां पर अब तक लगभग 2,900 लोग मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि अनुमान है कि लगभग 700,000 अन्य लोगों को अपने घरों से मजबूर होना पड़ा और हजारों लोग घायल हो गए हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एम23 सहित विद्रोही समूहों के गठबंधन, कांगो रिवर एलायंस का कहना है कि उसके लड़ाके अपनी लड़ाई बुकावु तक ले जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि कई मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हजारों शरणार्थी, जो कहीं और भाग गए हैं, उन्हें M23 द्वारा घर लौटने के लिए मजबूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि एम23 ने इस आरोप का खंडन किया है, लेकिन कई रिपोर्टों में कहा गया है कि विस्थापितों के लिए बनाये गये कई बड़े शिविरों को नष्ट कर दिया गया है और उनके निवासियों को संघर्ष क्षेत्रों में अपने गांवों में वापस जाने के लिए मजबूर किया गया है। उन्होंने कहा कि एम23, जो जातीय तुत्सी लोगों से बना है, का कहना है कि वे अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, जबकि डीआर कांगो की सरकार का कहना है कि विद्रोही पूर्वी क्षेत्र की विशाल खनिज संपदा पर नियंत्रण चाहते हैं।
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