हाल ही में आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में अहमदाबाद के चांगोदर क्षेत्र में गुजरात के अग्रणी सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज द्वारा संचालित एन.एम. पडलिया फार्मेसी कॉलेज में “महिला अधिकार एव स्वतंत्रता के लिए अनब्रेकेबल लड़ाई” के विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें इस कॉलेज के मैनेजिंग ट्रस्टी एव सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज के अध्यक्ष मगनभाई पटेल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे और अपने विचार प्रस्तूत किये। इस सेमिनार में शीतलबेन पटेल मुख्य वक्ता के रूप मे उपस्थित थीं।
इस सेमिनार में मुख्य अतिथि मगनभाई पटेल ने ३०० से अधिक फार्मेसी छात्र जिनमें अधिकतर महिला छात्र थीं,उन सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं देते हुए अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जब देश स्वतंत्र हुआ तो ८५% महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उस समय रीति-रिवाज, अंधविश्वास और बाल विवाह जैसी अनेक कुरीतियोंने महिलाओं का जीवन दयनीय बना दिया था।महिलाओं पर कई तरह के कामों का बोझ था,जैसे कुएं से पानी भरना, खेती करना, अनाज पीसना, घर में ५ से ७ बच्चों की देखभाल करना, चिकित्सा विज्ञान के विकास के अभाव में बच्चों में कुपोषण होना। इसके अलावा अगर कोई महिला विधवा हो जाती तो उसके बाल काट दिए जाते थे और उसे घर के एक कोने में बैठा दिया था और अपमानजनक भाषा का सामना करना पड़ता था।उस समय में राजा २०-२० रानियां रखते थे और यदि कोई राजा किसी दूसरे राजा के राज्य पर विजय प्राप्त कर लेता तो उसकी रानियों को प्रताड़ित किया जाता था,रानियों को अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए जौहर करना पड़ता था।
देश की आजादी के ७८ वर्षों में हमारी सरकारोंने महिलाओं के विकास और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए बहुत काम किया है, लेकिन विशेष रूप से हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी साहब और उनकी टीमने किया है। मोदी सरकार ने महिलाओं के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, महिला सशक्तिकरण, महिला उद्यमी और कई अन्य योजनाएं लागू की हैं, जिससे महिलाएं आज पुरुष समकक्ष बन गई हैं।
आज हमारे देश में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्यपाल, लोकसभा या राज्यसभा की अध्यक्ष जैसे विभिन्न पदों पर रहकर देश के विकास में अपना अमूल्य योगदान दे रही हैं, जबकि अमेरिका जैसे देश में लगभग २५० वर्षों में एक भी महिला राष्ट्रपति नहीं बन पाई है।
गुजरात के पूर्व शिक्षामंत्री और मुख्यमंत्री श्रीमती आनंदीबेन पटेलने गुजरात में शिक्षामंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किये है और आज वे वर्तमान में उत्तरप्रदेश राज्य की राज्यपाल है तब राम मंदिर निर्माण तथा महाकुंभ जैसे ऐतिहासिक कार्यक्रम उनकी अध्यक्षता में हुए जो बहुत ही सराहनीय है।श्रीमती आनंदीबेन पटेल के पति डॉ.मफतभाई पटेल जिनके पास तीन-चार विषयों में Ph.D डिग्री है और वे एक समाजसेवी और लेखक भी हैं। आरक्षण आंदोलन के कारण श्रीमती आनंदीबेन को बीच में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा, जो सही नहीं था, जो देश में महिलाओं के प्रति अनादर को प्रदर्शित करता है।
आज भी हमारे देश की महिलाएं भारत के सर्वोच्च पदों पर बिराजमान हैं, जो देश के लिए गर्व की बात है और इसका श्रेय अब तक की सरकारे एव हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्रभाई मोदी एव उनकी की टीम को जाता है।
मगनभाई पटेलने आगे कहा कि आज के सेमिनार में शीतलबेन पटेल महिलाओं के कर्तव्य,अधिकार और कानून के बारे में बहुत कुछ बतानेवाले हैं, इसलिए मैं संक्षिप्त मे कहूंगा कि मेरे परिवार में ३ भाई और २ बहनें ५५ वर्ष से अधिक उम्र होने के बावजूद अमेरिका के नागरिक हैं,जबकि मेरा बेटा जतिन पटेल के पास ३० वर्षों से अमरीकी नागरिकता होने के बावजूद आज भारत में व्यापार-उद्योग कर रहे है,उनकी पत्नी दीप्तिबेन पटेल जो एक बिल्डर की बेटी होने के बावजूद कभी भी जतिनभाई को अमेरिका जाने के लिए आग्रह नहीं किया और संयुक्त परिवार की भावना से रहती हैं। मेरी धर्मपत्नी शांताबेन पटेल आज ८३ वर्ष की आयु में भी अनेक सामाजिक संगठनों में उच्च पदों पर कार्यरत हैं तथा महिलाओं एवं समाज के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं। हमारे पास कई वर्षों तक अमेरिकी ग्रीन कार्ड भी था, जिसे हमने १० बार अमेरिका जाने के बाद सरंडर कर दिया और भारत में देश और समाज की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर दिया है।
मगनभाई पटेलने आगे कहा कि आज तकनीक के माध्यम से हमारे देश की मूल गुजराती बेटी सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में आठ महीने बिताने के बाद पृथ्वी पर लौटी हैं। दुनियाभर के लोग हमारी गुजरात की इस बेटी को लाख-लाख बधाई देते हैं। यह हमारे देश की महिलाओं की ताकत है।अपने सेवाकार्यों की जानकारी देते हुए मगनभाई पटेलने बताया कि वर्ष १९६७ में जब मैं २४ साल की आयु का था तब सौराष्ट्र पटेल सेवा समाज का सचिव बना,बाद में उपप्रमुख और आज प्रमुख बना हु । इसके बाद अनेक सामाजिक संगठन एव सरकारी संस्थाओं में उच्च पदों पर रहकर अनेक सेवाकार्य कर रहा हु, जिसका मुझे आत्मसंतोष है।
अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए मगनभाई पटेलने एक प्रेरक अनुभव बताते हुए कहा कि वर्ष १९६६-६७ में अहमदाबाद के बापूनगर क्षेत्र में म्यू.इंड.एस्टेट में मेरा एक इंजीनियरिंग यूनिट था। उस समय मेरा बैंक अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में था और उस समय संत साहब और भेसानिया साहब एस.बी.आई बैंक के मैनेजर थे और उनके साथ मेरे बहुत अच्छे संबंध थे।उस समय संत साहब और भेसानिया साहब छोटे-बड़े घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए छोटे-बड़े लोन देते थे,उस समय जब अहमदाबाद में लगभग ६० जितनी मिलों की हालत खराब हो गई और मिलों के बंद होने के कारण कई लोगों की नौकरियां चली गईं, तब श्रमिकों को आर्थिक रूप से काफी मदद की गई।
श्रमिकों की महिलाओं को अगरबत्ती, कढ़ाई, सिलाई जैसे कुटीर उद्योगों के लिए सूक्ष्म ऋण उपलब्ध कराकर घर चलाने में मदद की गई, वहीं पुरुषोंने छोटे-बड़े कारोबार शुरू कर व्यवसाय में प्रवेश किया और धीरे-धीरे उन्हें अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में हीरा उद्योग, कपड़ा उद्योग और रियल एस्टेट से जुड़ने का अवसर मिला और सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात के लोग पूरी दुनिया में छा गए। रामसेतु के निर्माण में गिलहरी की तरह सेवा करने का जो अवसर मुझे मिला, उसका श्रेय केवल भारतीय स्टेट बैंक को जाता है।
अपने भाषण के अंत में मगनभाई पटेलने आगे कहा कि आज हम सभी को शिक्षा के साथ-साथ देश की संस्कृति को भी समझना होगा, धर्म को भी समझना होगा, देश को भी समझना होगा। आज के दिन हम यह बात निश्चितता के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश की महिलाओंने देश की संस्कृति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है और धर्म के लिए अपना बलिदान भी दिया है। आज हमें यह भूलना होगा कि यह देश पुरुष प्रधान देश है। यदि पुरुष अपने सास-ससुर को अपना माता-पिता मानेंगे तो पत्नियां भी अपने पति के माता-पिता को विशेष सम्मान देंगी। पुरुष और महिला एक गाड़ी के दो पहियों की तरह हैं। दोनों को अपना जीवन समानांतर रूप से जीना होगा,तभी अगली पीढ़ी इससे प्रेरणा ले सकेगी, इसके साथ मै अपनी बात को यही विराम देता हूं।
इस सेमिनार में शीतलबेन पटेलने समाज में महिलाओं के अधिकार, कर्तव्य, जिम्मेदारी और सुरक्षा पर विस्तार से अपने विचार प्रस्तुत किए। शीतलबेन पटेल ने महिला कॉलेज, कच्छ-भुज से B.A की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद इदर आर्ट्स कॉलेज से मनोविज्ञान में M.A की डिग्री प्राप्त की, उसके बाद लॉ कॉलेज, मेहसाणा में तीन साल तक L.L.B पूरा करने के बाद अपराध विज्ञान पर L.L.M की डिग्री प्राप्त की है।छोटी उम्र से ही नेतृत्व क्षमता के कारण शीतलबेन ने ३ साल तक एक सार्वजनिक महिला कॉलेज में जीएस के रूप में काम किया और कई NCC शिविरों में भाग भी लिया,उस समय उन्हें NSS विभाग से सेनेट सदस्य के रूप में भी नियुक्त किया गया और महिला कॉलेज में सर्वश्रेष्ठ NSS उम्मीदवार होने के लिए उन्हें पदक भी मिला।शीतलबेन पटेल एस.एम.शाह लॉ कॉलेज में वर्ष 2000 से अतिथि व्याख्याता के रूप में निःशुल्क सेवाए दे रहे है साथ ही साथ ग्राहक सुरक्षा मंडल,महिला परामर्श केन्द्र,पुरुष परामर्श केन्द्र, पर्यावरण जागरूकता केन्द्र, मनोरोग चिकित्सा केन्द्र, जनहित निवारण केन्द्र जैसे अनेक सेवाकिय कार्यों में परिणामोन्मुखी कार्य कर चुकी हैं। उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के कई सामाजिक मुद्दों में काउंसेलिंग करके समस्या को सुलझाने के कई प्रयास किए हैं और कुछ मामलों में, जहां समाधान संभव नहीं था, उन मामलों को मध्यस्थता केंद्र में भेजकर समस्या को सुलझाने का सही काम किया है।
शीतलबेन पटेल:-
यहां उपस्थित ट्रस्टीगण,मेरे साथ आये हुए एडवोकेट डी.एम. त्रिवेदी,कॉलेज के प्रिंसिपल,स्टाफ तथा विद्यार्थी मित्र। विषय बहुत अच्छा है की केवल महिलाओं को ही सुरक्षा मिलती है,भाइयों को नहीं। यह विषय केवल महिलाओं के लिए ही है ऐसा नहीं है।
विषय है: महिला अधिकार एव लड़ाई। “लड़ाई” शब्द मुझे थोड़ा कठिन लगता है। वर्तमान में सरकारने कई कानून दिए हैं, मैं उनको दो भागों में अलग करूंगी और यह भी समझाने का प्रयास करूंगी कि हमारे गुजरात स्तर पर कानूनों की वर्तमान स्थिति क्या है।
आज १९वीं सदी से २०वीं सदी और अब २१वीं सदी तक का आजकी युवा पीढ़ी का जो तेज दौर चल रहा है उसे शायद एक वाक्य में कहा जाये तो आप और मैं सभी एक “टच युग” की ओर मोड़े जा रहे हैं जैसे हम अपने मोबाइल पर टच करते हैं और स्क्रीन चालू होता है ठीक वैसा।
हमारा स्वभाव ऐसा हो गया है कि हम उसी चीज और उसी परिस्थिति से तुरंत सामना करते हैं जिसके बारे में सभी सोचते हैं, लेकिन तेज गति के युग में, जो “टच युग” की ओर बढ़ रहा है, कहीं न कहीं हमारी भारतीय पीढ़ी अपने देश की संस्कृति, धर्म, शिक्षा और रीति-रिवाजों को छोड़कर विदेशी संस्कृति की ओर भाग रही है। सरकार ने कानून दिए हैं, महिलाओं के लिए घरेलू अधिनियम दिया है, हिंदू विवाह अधिनियम दिया है, भरण-पोषण अधिनियम दिया है और संपत्ति या संपदा के लिए सीवीसी में प्रावधान किए हैं। यदि महिलाओं को कहीं कोई समस्या आती है तो वे विवाह अधिकार के लिए आवेदन कर सकती हैं। यदि घर में ससुरालवालों द्वारा उत्पीड़न किया जाये तो वे घरेलू अधिनियम के अनुसार शिकायत दर्ज कर सकती हैं। यदि वे केवल भरण-पोषण चाहते हैं तो वे इसके लिए अलग से मामला दर्ज कर सकती हैं।
कभी-कभी पुरुषों को ऐसा लगता होगा कि सारे कानून महिलाओं को दे दिए गए हैं, शायद इसके अत्यधिक उपयोग के कारण ही महिलाओं के खिलाफ अत्याचारों से निपटने के लिए मुंबई, दिल्ली, बड़ौदा और अहमदाबाद में पुरुष परामर्श केंद्र शुरू किए गए हैं। पुरुषों की रैलियां भी वर्ष में एक या दो बार आयोजित की जाती हैं। इसका कारण यह है कि सरकार द्वारा दिए गए कानूनों का सही तरीके से उपयोग नहीं किया जा रहा है तथा केवल वहीं किया जा रहा है जहां इसकी आवश्यकता है। वर्तमान में, पीढ़ियों के बीच अंतराल के कारण मध्य पीढ़ी पीड़ित है, जिसमें नई पीढ़ी द्वारा मध्य पीढ़ी को स्थापित नहीं किया जा सका है और पुरानी पीढ़ी इसे छोड़ नहीं सकती।
अगर हम पहले कानून को देखें तो अगर किसी भी महिला को उसके ससुरालवालों द्वारा, या उसकी सहेलियों द्वारा, या उसके रिश्तेदारों द्वारा, या उसके माता-पिता द्वारा, या उसके परिवार के किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी तरह से मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है, चाहे वो उसे पढ़ाई करने से रोकना हो, उसे बाहर जाने से रोकना हो, या उसे मौज-मस्ती करने से रोकना हो, तो ये एक घरेलू कृत्य है। मैं आपको केवल इसकी सज़ाओं और प्रावधानों की परिभाषा समझाने का प्रयास करूंगी। वर्तमान विषय पर यदि किसी महिला को न केवल उसके ससुरालवालों द्वारा बल्कि उसके माता-पिता द्वारा भी रोका जा रहा है और उसे लगता है कि उसकी स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया जा रहा है, तो वह पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती है।
वर्ष २०१५ में जब डोमेस्टिक एक्ट आया तो हमारी जो संस्थाएं चल रही हैं, उनमें से कई अधिवक्ताओं ने मिलकर सरकार को लिखित में सूचित किया कि गुजरात में डोमेस्टिक एक्ट की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि जब स्कूल या कॉलेज में पढ़नेवाली छात्रा अपने दोस्तों के साथ कहीं जाना चाहती है तो अभिभावकों को यह उचित नहीं लगता और दिक्कत होती है। अगर वह बेटी पुलिस में शिकायत करती है तो माता-पिता को पुलिस थाने में जमानत देनी पड़ती है और वह बेटी या बेटा जो चाहे कर सकते हैं। यह एक ऐसा कृत्य है जिसके दुष्परिणाम गुजरात में कई स्थानों पर हो रहे हैं। घरेलू अधिनियम में केवल तभी मुआवजा मिल सकता है जब किसी महिला को उसके पति या ससुरालवालों द्वारा परेशान किया जाता है, घर से निकाल दिया जाता है, भरण-पोषण नहीं दिया जाता या उसके गहने छीन लिए जाते हैं। इस घरेलू अधिनियम में केवल महिलाओं के लिए ही प्रावधान नहीं है, पुरुष भी इस संबंध में आवेदन कर सकते हैं। उस अधिनियम के अनुसार, केवल महिलाओं को ही परेशान नहीं किया जा रहा ; आज स्थिति पूरी तरह से पलट गई है।
भाइयों की शिकायत है कि कानून पुरुषों की उतनी रक्षा नहीं कर रहा है जितनी महिलाओं की कर रहा है और इसीलिए वे पूछ रहे हैं कि हमें कहां जाना चाहिए। हम जितना अत्याचार महिलाओ पर कर रहे है उससे कहीं अधिक अत्याचार हम पर हो रहा है। यदि हिंदू विवाह अधिनियम किसी महिला को उसके ससुरालवाले नहीं बुलाते तो वह अपने वैवाहिक अधिकारों की पूर्ति के लिए आवेदन कर सकती है, जिसमें वह भरण-पोषण की मांग कर सकती है। यदि पति ने बिना किसी कारण के उसे छोड़ दिया और पत्नी नहीं जाना चाहती तो वह तलाक ले सकती है। संपत्ति के बंटवारे के लिए भी कानून है। जब विवाह हो जाता है और विवाह प्रमाणपत्र आ जाता है तो पति के नाम की संपत्ति में से ५०% पर पत्नी का अधिकार हो जाता है।
ये तो हुई कानूनों की बात, लेकिन मौजूदा पीढ़ी में सरकार ने कुछ ऐसे कानून दिए हैं, जिनसे कई सवाल खड़े हुए हैं। सरकार ने इनके क्रियान्वयन के लिए मापदंड निर्धारित कर दिए हैं। विवाह पंजीकरण अनिवार्य हो गया है, जन्म पंजीकरण अनिवार्य हो गया है, और इसी तरह मृत्यु पंजीकरण भी अनिवार्य हो गया है।
परिसीमा अधिनियम के अनुसार मृत्यु पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया था, ताकि यदि कोई पुत्र मृत्यु के बाद दावे के लिए आवेदन या पंजीकरण नहीं करता है, तो संपत्ति पर उसका अधिकार रद्द कर दिया जाएगा। इस तथ्य के बावजूद कि महिलाओं को कानून के तहत अनेक सुरक्षा और अधिकार प्रदान किए गए हैं, महिलाओं की समस्याएं दिन-प्रतिदिन क्यों बढ़ती जा रही हैं? मेरे २५ वर्षों के कानूनी अनुभव के दौरान मैंने कई मामलों में मध्यस्थ के रूप में काम किया है। अपने अनुभव से मैं कह सकती हूं कि ९५% मामले अकारण होते हैं,५% मामलों में से ३% मामलों में महिलाएं अपने ससुरालवालों द्वारा अत्याचार या अन्य उत्पीड़न के खिलाफ अदालत में शिकायत दर्ज करती हैं,२% मामलों में महिलाओं को उनके ससुरालवालों द्वारा १० से १५ वर्षों तक छोड़ दिया जाता है,प्रताड़ित किया जाता है या घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जाता है,लेकिन वे कानूनी मदद लेने के लिए अदालत नहीं जाती हैं। आज के समाज में एक ज्वलंत समस्या यह है कि संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। इस समस्या के लिए कुछ हद तक पुरुष और महिला दोनों जिम्मेदार हैं। आजकल कई मामलों में दो से तीन बच्चों की माताएं अपने पति के अलावा अन्य पुरुषों के साथ भाग जाती हैं।जब विद्यार्थी के जीवन में समस्याएं आती हैं, तो वे यह नहीं समझ पाते कि उनके माता-पिता उनके शुभचिंतक हैं, बल्कि वे यह मान लेते हैं कि उनके माता-पिता ही उनके दुश्मन हैं।
एक उदाहरण के रूप में बताऊ तो शादी के ढाई महीने बाद एक बेटी पैदा होती है। उसका प्रेम विवाह होता है। वह अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर कोर्ट में शादी कर लेती है और भाग जाती है। शादी के कुछ समय बाद उसे पता चलता है कि उसका पति कोई सरकारी अधिकारी नहीं है बल्कि एक साधारण कर्मचारी है जिसके पास न तो बंगला है और नाही वह एक अमीर परिवार का बेटा है। इन सभी तथ्यों को जानने के बाद बेटी अपना विवाहित जीवन नहीं निभा पाती और अपने पिता के घर भी नहीं लौट पाती। इसलिए वह आत्महत्या करना चाहती है क्योंकि उसने अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर भागकर शादी की होती है। दूसरी ओर बेटीने भागकर शादी की होती है इसलिए माता-पिता को भी समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। एक तरफ बेटी आत्महत्या करने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ लाचार माता-पिता भी आत्महत्या करने की बात करते हैं। अंततः न्यायाधीश, वकील, कानून और समाज के श्रेष्ठ लोगों को एक समझौते पर पहुंचने के लिए एक साथ लाया जाता है और निर्णय लिया जाता है, तथा बेटी को तलाक दे दिया जाता है।
यदि माता-पिता द्वारा खोजे गए घर में कोई समस्या है, तो क्या माता-पिता सहयोग करेंगे या समुदाय के पांच लोग आकर सहयोग करेंगे? जब कोई बेटा या बेटी अपने माता-पिता की पहुंच से बाहर हो जाए तो आपके पास कोई विकल्प नहीं होगा। आजकल पुरुष भी इसी तरह के गंभीर सवालों का सामना कर रहे हैं। पत्नी अपने पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत या अदालती मामला दर्ज कराती है, लेकिन वास्तविक स्थिति इसके विपरीत है – पत्नी अपने पति को प्रताड़ित कर रही है।
समानता के लिए चल रही लड़ाई में यह बात भुला दी जाती है कि हमारे पास समानता तो है, लेकिन महिलाएं सीमाओं या बंधनों में रहती हैं, यह कहते हुए कि हमारी संस्कृति ऐसा कहती है, इसलिए हम इस तरह व्यवहार करेंगे। बंद दरवाजों के पीछे भी महिलाओं को दर्जा तो दिया गया है, लेकिन कानून द्वारा दी गई आजादी, जैसे अपनी मर्जी से घूमने की आजादी, का इस्तेमाल करने की बजाय हम स्वतंत्र की बजाय स्व्छंदी बन जाती हैं। इसी स्वार्थ के कारण आज संयुक्त परिवार टूट रहे हैं।
अगर किसी की बेटी या बहन का मामला हो और ससुराल वाले उन्हें परेशान कर रहे हों तो परिवार वाले कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। लेकिन जब उनके परिवार में आई बहू को अपनी मर्जी से घूमने-फिरने और कपड़े पहनने से रोका जाता है, तो एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की समानता के बारे में क्यों भूल जाता है? अधिकतर, महिलाएं ही ऐसी रोकथाम में बाधा डालती हैं। वह एक महिला दूसरी महिला की समानता को भूल जाती है और दूसरी महिला की दुश्मन बन जाती है।
जहाँ अधिकार लिये जाने हैं, वहाँ कर्तव्य भी निभाये जाने चाहिए। समानता तभी संभव होगी जब एक महिला दूसरी महिला को आगे बढ़ने में सहयोग देगी। आगे बढ़ने के लिए आपको अपनी लकीर लंबी करनी सीखनी होगी, दूसरों की लकीरें मिटाना नहीं। वर्तमान पीढ़ी की समस्या यह है कि जब बेटियां शादी करके ससुराल जाती हैं तो वे अपने कर्तव्यों को भूल जाती हैं।
एक ज्वलंत समस्या यह भी है कि माता-पिता या बेटियां विदेश में बसे पात्र को प्रथम प्राथमिकता देते हैं और फंस जाते हैं, तथा कई वास्तविक मामलों में धोखाधड़ी भी होती है। मोबाइल फोन का उपयोग समझदारी से करना चाहिए,अन्यथा यह व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर सकता है। बेटियों को एक निजी सलाह यह भी है कि चाहे वह आपका दोस्त हो, प्रेमी हो, या आपके माता-पिता द्वारा चुना गया व्यक्ति हो या जिससे आप शादी करने जा रही हों, ऐसी तस्वीरें या वीडियो साझा न करें जो आपकी सीमाओं का उल्लंघन करती हों। यह तय करना आपके हाथ में नहीं है कि कोई इन तस्वीरों का उपयोग कैसे करेगा, इसलिए सावधानी बरतना जरूरी है। लड़कियों के कपड़े ऐसे होने चाहिए जो भारतीय संस्कृति की गरिमा को बनाए रखें। यदि आप विदेशी कपड़े पहनने के शौकीन हैं, तो आपको अपने परिवार के साथ रहते समय इन्हें पहनना चाहिए, तथा लड़कियों या लड़कों की पार्टी में ऐसे परिधान नहीं पहने चाहिए।
महिलाओं को अपनी प्रतिभा को इतना मजबूत बनाना चाहिए कि सामनेवाला व्यक्ति उन पर बुरी नजर न डाल सके। ईश्वरने महिलाओं को ऐसी अद्भुत शक्ति दी है कि वे सामनेवाले व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है,यह उसकी आंखों से ही जान लेती हैं। ऐसे समय में अगर कोई महिला अपनी आंखों से सामनेवाले व्यक्ति को जवाब दे, तो सबसे अधिक संभावना है कि वह पुरुष आगे बढ़ना बंद कर देगा।२५% तक महिलाएं असामाजिक तत्वों के कारण उत्पीड़न और बलात्कार की शिकार होती हैं। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए महिलाओं को सरकारी कार्यक्रमों के माध्यम से या अन्य संस्थाओं द्वारा संचालित कराटे कक्षाओं में शामिल होकर आत्मरक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहिए। आप अपने बैग या बटुए में मिर्च पाउडर या एक स्पैटुला अपने बचाव के लिए रख सकती हैं।अक्सर महिलाओं का यौन उत्पीड़न उनके अपने ही करीबी परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिनमें चाचा, चचेरे भाई शामिल होते हैं। कई दूरदराज के इलाकों में पिता द्वारा अपनी बेटियों के साथ हुए बलात्कार के मामले भी प्रकाश में आए हैं। कुछ असामाजिक तत्व तीन-चार साल की बच्चियों के साथ बलात्कार करते हैं। हर महिला को यह सीखना होगा कि वह इन समस्याओं से खुद को कैसे बचाए तथा अपने या अपनी आसपास की महिलाओं को कैसे सुरक्षित रखे। यात्रा के दौरान यदि कोई उन्हें जानबूझकर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए सेफ्टी पिन या ब्रोच अपने साथ रख सकती हैं।
एक ज्वलंत समस्या यह है कि बेटी का रिश्ता तय करने से पहले माता-पिता वर पक्ष की संपत्ति,धन,सोना आदि देखते हैं, लेकिन लड़के की योग्यता नहीं देखते। कई मामलों में, ऐसे लड़को को माता-पिता स्वयं ही उन्हें अपनी संपत्ति से वंचित कर देते हैं। ऐसे समय में आमने-सामने बातचीत के माध्यम से तलाक करना पड़ता है। इसलिए विवाह का निर्णय लेने से पहले हमेशा दूसरे पक्ष की संपत्ति नहीं बल्कि चरित्र देखें। कोरोना काल के बाद ५०-५५ आयु वर्ग में तलाक के मामले सामने आए हैं। एक शिक्षक दम्पति ने विवाह के १८ से २० वर्ष बाद,जबकि उनका बेटा दसवीं कक्षा में पढ़ रहा था तब तलाक ले लिया,क्योंकि वे घर में एक-दूसरे के साथ व्यापारिक मानसिकता से व्यवहार कर रहे थे। उन्होंने इस शर्त पर तलाक लिया कि उनके बेटे के नाम पर बैंक में १६,६१,००० रुपए जमा किए जाएं और बेटा अपनी इच्छानुसार दोनों माता-पिता के साथ रह सके।
नई पीढ़ी की समस्याओं को देखते हुए जिस प्रकार से विवाह विच्छेद हो रहे हैं, उस पर आज चिंतन करने की अति आवश्यकता है, ताकि भविष्य में पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित पांच वर्षीय अनुबंध आधारित विवाह की कुप्रथा हमारे समाज में प्रवेश न कर सके। महिलाओं को आत्मनिर्भर होने की जरूरत है। हर महिला के पास अपने नाम पर एक मकान होना चाहिए।
आज भी विवाह के ३५ वर्ष बाद भी तलाक हो रहे हैं। ३५ साल की उम्र में एक महिला अपने माता-पिता के पास भी नहीं लौट सकती, बच्चे उसे रखने को तैयार नहीं,उसके पति ने उसे तलाक दे दिया है। ऐसे समय में महिला कहां जाएगी? अगर कोई पति किसी महिला को भरण-पोषण के नाम पर दस से पंद्रह लाख रुपये देता है तो क्या वह उससे मकान खरीद लेगी? या भविष्य में चिकित्सा उपचार के लिए धन सुरक्षित रख पायेगी ? एक महिला को नौकरी कौन देगा जब वह ३५ साल की शादी उम्र तक पहुंचते-पहुंचते ५५-६० साल की हो जाएगी? मैं आशा करती हूं कि भविष्य किसी को भी तलाक जैसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े लेकिन एक महिला के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह अपने भविष्य को अपनी समझ और प्रेम से प्रबंधित करे।
आजकल पति-पत्नी दोनों ही पैसा कमाते हैं, जिसके कारण दोनों ही अपने बच्चों को समय देना और उनका पालन-पोषण करना भूल जाते हैं और उन्हें आया के भरोसे छोड़ देते हैं। यदि पति अच्छा कमाता है तो पत्नी को बच्चो पर ध्यान देना चाहिए और सुखी वैवाहिक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। जब पति अच्छे पद या स्थिति में होता है, और उसकी जन्मदिन पार्टी या मीटिंग में जाने की योजना बनती है, तो पति की इच्छा के बावजूद पत्नी अपने सास-ससुर को अनपढ़ या ग्रामीण बताकर उन्हें साथ न ले जाने की जिद करती है, तथा उनके लिए बासी नाश्ता या फ्रिज में रखा हुआ या बाहर से पैक किया हुआ खाना मंगवाने का प्रस्ताव रखती है। पति को जन्म देनेवाली माँ घर पर होती है और पत्नी के दूर के रिश्तेदारों पार्टी में होते है !
माता-पिताने कई कष्ट और तकलीफे उठाकर अपने बेटे को डॉक्टर,इंजीनियर या कलेक्टर बनाने के लिए शिक्षित करते है और पत्नी ने उसे दूर कर लिया हो यह बताते हुए कि उसका पति केवल उसका है और सास-ससुर से कोई लेना-देना नहीं है। कई महिलाएं अपने बच्चों को उनकी नाना-नानी के स्नेह से वंचित रखती हैं और उन्हें कहती हैं कि अगर वे अपनी दादी-नानी के पास जाएंगे तो वे संक्रमित हो जाएंगे और बीमार पड़ जाएंगे। शादी के बाद एक महिला का असली घर उसका ससुराल होता है। अपने ससुरालवालों के साथ शांतिपूर्वक रहें और अपने पति की आय के अनुसार खर्च करें। किसी और की कमाई को देखकर अपने पति को परेशान न करें।
पुरुष अपने परिवार के लिए दोपहर में काम करता है, जबकि महिला और बच्चे एसी में आराम करते हैं। आदमी सुबह का बनाया हुआ ठंडा टिफिन खाता है और पूरा परिवार गरम रोटियां खाता है। यह सब भूलकर पत्नी अपने पति की कम आय की शिकायत करती है। यदि पत्नी ऐसे पति का साथ दे तो वह अवश्य ही उन्नति करेगा। लेकिन कम आय के बावजूद पत्नी की मांगें जारी रहती हैं और आदमी कर्ज में डूबकर ब्याज के चक्र में फंस जाता है और कई बार आत्महत्या भी कर लेता है। खुशहाल जीवन जीना और उसे बर्बाद करना केवल एक महिला के हाथ में है।
आज के माता-पिता के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे अपनी बेटियों का मार्गदर्शन करें, उन्हें आत्मरक्षा सिखाएं और उन्हें समझाएं कि ससुराल ही उनका असली घर है। महिलाएं शब्दों से भी नुकसान पहुंचाती हैं। यदि उनकी मां बुलाती हैं तो वे कहते हैं “मेरी मां” और यदि उनकी सास बुलाती हैं तो वे कहते हैं “तुम्हारी मां।” अपने पति को अपने माता-पिता के कर्तव्यों को पूरा करने से न रोकें। अपने पति के माता-पिता को अपने माता-पिता की तरह समझें, यदि उनका जन्मदिन या शादी की सालगिरह आनेवाली हो तो उसे मनाएं, उन्हें समय दें, उनसे बात करें। यदि आप अपनी सास से घरेलू व्यवस्था या लेन-देन के बारे में पूछेंगी तो वह स्वतः ही आपका सम्मान करेंगी। पुरुषों को भी अन्य महिला से संबंध बनाने से पहले यह विचार करना चाहिए कि एक महिला अपने माता-पिता, परिवार और बाकी सब कुछ छोड़कर उस पुरुष पर भरोसा करके आपके घर आई है। उन्हें उस महिला को नये वातावरण में ढलने में मदद करनी चाहिए। अपने पति की कम आय में भी घर चलाना सीखे।अगर तुम काम नहीं कर सकती तो ट्यूशन करके अपने पति का हाथ बंटाओ। विदेश में शादी करने से पहले सौ बार सोचें। बेटियों को अपनी शर्तों पर ही विवाह करना चाहिए,अपने ससुराल को ही अपना सच्चा घर मानना चाहिए तथा वहीं विवाह करना चाहिए जहां उनके माता-पिता उन्हें कहें।
यदि विवाह में कोई समस्या है तो महिला जहां भी रहती है, वैवाहिक अधिकारों के लिए न्यायालय से मदद ले सकती है। यदि पत्नी की आय पति से अधिक है तो पति को अपनी पत्नी की आय के बावजूद उसे भरण-पोषण देना होगा। यदि पति की मृत्यु हो जाए और सास-ससुर जीवित हों तो सास-ससुर से भरण-पोषण की मांग कर सकती है। यदि बच्चों में केवल बेटियां हैं, तो माता-पिता कमाने वाली बेटी से भरण-पोषण ले सकते हैं। यदि पति की मृत्यु के बाद पत्नी को पति के स्थान पर नौकरी मिल जाती है, तो पत्नी को अपने ससुरालवालों को भरण-पोषण देना होगा। यदि ससुरालवालों ने संपत्ति अपने बेटे के नाम कर दी है और बेटा उन्हें घर से बाहर निकाल देता है,तो ऐसी स्थिति में ससुरालवाले संपत्ति वापस पा सकते हैं।
इस सेमिनार में कॉलेज के प्रिन्सिपल डॉ. जितेन्द्र भंगालेने स्वागत प्रवचन दिया तथा उपस्थित विद्यार्थिनीयों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मगनभाई पटेल एवं मुख्य वक्ता शीतलबेन पटेल द्वारा दिए गए वक्तव्य को अपने जीवन में उतारने की सलाह दी तथा भविष्य में इस प्रकार के सेमिनार आयोजित करने की भी इच्छा व्यक्त की थी।