भारत की पहली कूटनीतिक जीत की पहली आवाज दुनिया ने महसूसी की। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा में सुरक्षा परिषद सुधारों को लेकर जो अहम बैठक हुई उसमें मुस्लिम देश कुवैत ने खुलकर भारत का समर्थन कर दिया है। वहीं तुर्की के राष्ट्रपति रिचप तैयब एर्दोगान मुस्लिम देशों को स्थायी सीट देने की बात करते रहे हैं अब उनकी रणनीति पर पानी फिर गया है। इस बार भारत के लिए एक मजबूत बयान संयुक्त राष्ट्र में खुद अंतर सरकारी वार्ता के अध्यक्ष ने भी दे दिया।
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इस मुद्दे पर विचार पूरी सदस्यता और संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है। निसंदेह भारत इसमें एक प्रमुख दावेदार होगा। इसका निर्णय व्यापक सदस्यता द्वारा लिया जाएगा। पिछले वर्ष मुझे अपने सम्मानित सह अध्यक्ष एक्सेल मार्शिक के साथ भारत जानें और वहां उच्च स्तर पर बातचीत करने का अवसर मिला। निश्चित रूप से भारत आज विश्व मंच पर एक प्रमुख खिलाड़ी है। लेकिन ये 193 देशों की सदस्यता वाला संगठन है और विचार सभी के लिए और संयुक्त राष्ट्र की पूरी सदस्यता के लिए प्रतिनिधित्वकारी होना चाहिए। अगर ये निर्णय लिया जाता है कि परिषद का विस्तार 21 से 27 सदस्यों तक किया जाए। तो निश्चित रुप से भारत उसमें एक दावेदार होगा और व्यापार सदस्यता द्वारा लिए गए निर्णय का विषय बनेगा।
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अगर बात भारत की इस मांग की करें तो भारत दशकों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है। भारत के साथ ब्राजील, जर्मनी और जापान भी इसी मुहिम में है। जिसे जी-4 ग्रुप कहा जाता है। ये देश मांग कर रहे हैं कि सुरक्षा परिषद में जो पांच स्थायी सदस्य हैं अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस इनके साथ 21वीं सदी के असली शक्तीशाली देशों को भी स्थायी सीट दी जाए। आज वैश्विक राजनीति का चेहरा बदल चुका है और भारत जैसी उभरती महाशक्ति को नजरअंदाज करना अब संभव नहीं है। कुछ समय पहले तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोगान ने यूएनजीए में एक मांग रखी थी कि सुरक्षा परिषद में किसी मुस्लिम देश को भी स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए।
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तुर्किए खुद इसके लिए आगे बढ़ना चाहता था या फिर पाकिस्तान जैसे देश को आगे करना चाहता था। लेकिन भारत ने इस प्रस्ताव को सख्ती से खारिज कर दिया। भारत ने साफ किया स्थायी सदस्यता का आधार धर्म नहीं बल्कि वैश्विक योगदान और सामर्थ्य होना चाहिए। ये भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत थी। जिसने तुर्किए की चाल को उसी वक्त नाकाम कर दिया। अब जरा सोचिए की कुवैत की तरफ से ये बयान ऐसे वक्त में सामने आया है जब खाड़ी देशों से उसके रिश्तें नए आयाम छू रहे हैं।